राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित तीर्थराज पुष्कर का सालाना मेला मंगलवार झंडारोहण के साथ शुरू हो गया. अजमेर से करीब आठ किलोमीटर दूर अरावली की पहाडियों के बीच स्थित पुष्कर में सैकेडों विदेशी और देशी पर्यटकों के बीच झंडारोहण किया गया. झंडारोहण के बाद रंग बिरंगी परिधानों में देशी और विदेशी पर्यटकों के बीच रस्साकसी, नगाडा सहित अन्य प्रतियोगिताएं हुई.
विदेशी पर्यटकों ने राजस्थानी परिधान में प्रतियोगिताओं में भाग लिया. पुष्कर सरोवर में आज शाम को दीपदान का आयोजन होगा. पुलिस अधिकारी के अनुसार पुष्कर मेले को देखते हुए पुष्कर नगरी में सुरक्षा के कडे प्रबंध किये गये है. मेला क्षेत्र में असामाजिक तत्वों पर करीबी नजर रखने के लिए काफी संख्या में सादा वर्दीधारी पुलिसकर्मी भी तैनात किये गये है.
इस मेले में बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटकों के साथ साथ हजारों हिन्दू भी आते हैं. भक्तगण एवं पर्यटक श्री रंग जी, ब्रह्मा एवं अन्य मंदिरों के दर्शन कर आत्मिक लाभ प्राप्त करते हैं एवं अपने को पवित्र करने के लिए पुष्कर झील में स्नान भी करते हैं. पुष्कर का पशु मेला मरुस्थल के गांवों के लोगों के कठोर जीवन में एक नवीन उत्साह का संचार करता है.
लोग रंग बिरंगे परिधानों में सजधजकर जगह जगह पर नृत्य गान आदि समारोहों में भाग लेते हैं. उक्त मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है. आम मेलों की ही तरह इनमें दुकानों की लगती है. दुकानों में खाने-पीने के स्टॉल, सर्कस, झूले, मदारी के करतब, रंगबिरंगी चूडियां, कपड़े और न जाने क्या-क्या मिलते हैं.
तमाम पर्यटक इन कार्यक्रमों का आनंद लेने से पूर्व सरोवर के घाटों पर जाते हैं. जहां उस समय संध्या आरती और सरोवर में दीपदान का समय होता है. हरे पत्तों को जोड़कर उनके मध्य पुष्प एवं दीप रखकर जल में प्रवाहित कर दिया जाता है. मेला स्थल से थोड़ी दूरी पर पुष्कर नगरी का माहौल एक तीर्थनगरी जैसे पवित्र होता है.
कहा जाता है कि कार्तिक मास में हिंदू मान्यताओं में स्नान का महत्व वैसे भी काफी ज्यादा है. इसलिए साधु भी यहां बडी संख्या में नजर आते हैं. मेले के आरम्भिक दिनों में जहां पशुओं की ख़रीदने बेचने पर जोर रहता है, वहीं बाद के दिनों में पूर्णिमा के नजदीक आते-आते धार्मिक गतिविधियों का जोर प्रारम्भ हो जाता है.