शरद पूर्णिमा को चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है और माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा से कुछ विशेष दिव्य गुण प्रवाहित होते हैं. इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा व रस पूर्णिमा भी कहा जाता है. कई वैद्य इस दिन जीवन रक्षक विशेष औषधियों के निर्माण करते हैं. हिंदू परंपरा में रस पूर्णिमा का विशेष स्थान है.
गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या ने बताया कि दशहरा से लेकर पूर्णिमा तक चंद्रमा से एक विशेष प्रकार का रस झरता है, जो अनेक रोगों में संजीवनी की तरह काम करता है. इसे औषधि रूप देने के लिए पूर्णिमा के दिन घरों की छतों पर खीर बनाकर रखते हैं. जब चांद की किरणें खीर पर पड़ती हैं तो वह अमृतमयी औषधि के रूप में काम करती है.
डॉ. पण्ड्या ने कहा कि रोगों की उत्पत्ति की जड़ हमारी त्रुटिपूर्ण जीवन शैली है. आहार-विहार से लेकर मानसिक तनाव तथा दैवीय प्रतिकूलताओं से लेकर वैक्टीरिया, वायरस के कारण हमारी जीवन शक्ति क्षीण हो रही है. उन्होंने कहा, इससे उबरने के लिए जड़ी-बूटियों द्वारा स्वास्थ्य संरक्षण कल्प के विभिन्न सुगम प्रयोग भी दिए हैं जो आज भी परीक्षित करने पर कसौटी पर खरे उतरे हैं.
शरद पूर्णिमा के दिन इसे परखा भी जाता है. उन्होंने कहा, इससे उबरने के लिए जड़ी-बूटियों द्वारा स्वास्थ्य संरक्षण कल्प के विभिन्न सुगम प्रयोग भी दिए हैं जो आज भी परीक्षित करने पर कसौटी पर खरे उतरे हैं. शरद पूर्णिमा के दिन इसे परखा भी जाता है. उन्होंने कहा, “जीवन शैली ठीक रहने पर हमें कभी रोग-शोक सता नहीं सकते हैं. हम पंचतत्वों आकाश, वायु, जल, मिट्टी,अग्नि के माध्यम से स्वस्थ रह सकते हैं.