गुजरात में 12वीं क्लास के एग्जाम में 99.99 पर्सेंटाइल हासिल करने के बाद वर्शील शाह पूरे देश में चर्चा में हैं। इसका कारण यह है कि इतनी शानदार सफलता के बाद भी वे संन्यास लेकर जैन संत बन गए। अब वे संत मुनिराज सुवीर्य रत्न विजयजी महाराज बन चुके हैं। उनकी लाइफ स्टाइल बदल चुकी है।जब वर्शील और उनके परिवार से इस बारे में बात की तो पता चला कि वर्शील की संत बनने की प्रबल इच्छा थी, लेकिन उनके पिता ऐसा नहीं चाहते थे।
वर्शील के पिता जिगर कनुभाई शाह कहते हैं कि मैं चाहता था कि बेटा हायर एजुकेशन हासिल करे और देश की सेवा करे, लेकिन बेटे की इच्छा देखते हुए दीक्षा की इजाजत दे दी।जिगरभाई कहते हैं मेरी महत्वाकांक्षा को ठेस तो लगी है, लेकिन बेटे की बेहतरी के लिए गृह त्याग की इजाजत दी है।
गुजरात के खेड़ा जिले के बारसद गांव के मूल निवासी वर्शील शाह के दादा कनुभाई हीरालाल शाह 70 साल पहले गांव से अहमदाबाद कपड़ा का बिजनेस करने आए थे। बाद में वहीं बस गए।वर्शील के पिता जिगर भाई इनकम टैक्स ऑफिशियल हैं और उनकी मां अमीबेन हाउसवाइफ हैं।अपनी दादी भानूमतिबेन कनुभाई शाह के लाडले रहे वर्शील का बचपन से ही अध्यात्म की ओर झुकाव रहा है।
वे माता-पिता और बहन के साथ अक्सर देरासर जाते थे और प्रवचनों को बड़े गौर से सुनते थे।वर्शील से छह साल बड़ी उनकी बहन जैनी जिगरभाई शाह ने भी 12वीं कॉमर्स बोर्ड की परीक्षा में 99.99 पर्सेंटाइल के साथ टॉप किया था।संत बनने के बाद वर्शील अब जमीन पर ही सोएंगे और सूरज डूबने के बाद पानी भी नहीं पिएंगे।
अब तक सभी सुख सुविधा के बीच पले-बढ़े वर्शील पूरी लाइफ नंगे पांव चलेंगे। ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे।खाने-पीने को लिमिट में रखने के साथ ही वे अपने पास रुपए-पैसे, बैंक अकाउंट, जगह-जमीन, धन-दौलत कुछ नहीं रखेंगे।बिजली और मॉडर्न इक्विपमेंट्स का इस्तेमाल नहीं करेंगे। हमेशा सफेद कपड़े ही पहनेंगे, कुदरत को नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी साधन का इस्तेमाल नहीं करेंगे।
वे पांच महाव्रतों का पालन करेंगे। अपरिग्रह का पालन करेंगे यानी जीवन में किसी चीज का संग्रह नहीं करेंगे।केवल चातुर्मास में 4 महीने एक जगह रहेंगे। बाकी महीनों में सदैव विचरण करते रहेंगे। घर कभी नहीं जाएंगे। किसी भी महिला को स्पर्श नहीं करेंगे।वर्शील के मामा नयन भाई ने बताया कि उसे बचपन से ही माता-पिता ने आत्मविश्वासी बनाया।
गर्मी की छुटि्टयों या दशहरा-दीवाली की छुटि्टयों में वह घूमने या रिश्तेदारों के यहां जाने के बजाय गुरु महाराज कल्याण रत्न विजयजी के यहां जाता था।अहमदाबाद में वसंतकुंज में वर्शील और उसका परिवार रहता है। वहां पास ही में बड़े गुरुजी महाराज का आना-जाना होता है।
वर्शील उनकी बातें सुनकर प्रभावित होता था। वह गुरु महाराज की बातें सुनकर घर में उस पर अमल करने की बातें करता था।वर्शील जब 6 साल का था, उस वक्त वह रात में खाना नहीं खाता था, क्योंकि जैन धर्म में सूरज डूबने के बाद भोजन को निषेध माना जाता है।