रॉबर्ट वाड्रा ने पहली बार अपने साक्षात्कार में राजनीतिक बातें की हैं. उसमें पहले की तरह राजनीति से दूर रहने का संकेत नहीं है.इसके विपरीत, उन्होंने राजनीति में आने का संकेत दिया है. कहा है कि वो 20 वर्ष से नेहरू-इंदिरा परिवार के हिस्सा हैं, लेकिन न राजनीति में आने के लिए उनको 20 वर्ष लगेंगे न किसी संसदीय क्षेत्र को जीतने में. इसका अर्थ क्या है? हम अपने अनुसार इसका अर्थ लगाने के लिए स्वतंत्र हैं.
एक अर्थ यह निकाला जा सकता है कि वाड्रा राजनीति में संभवत: आना चाहते हैं किंतु इसका निर्णय नहीं लिया है. इसका अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि वह कह रहे हैं कि राजनीति में तो हम कभी भी आ सकते हैं, लेकिन आने का हमारे पास मकसद होगा और वह मकसद होगा बदलाव का. यानी जब हम महसूस करेंगे कि बदलाव ला सकते हैं तब राजनीति में आएंगे. बहरहाल, उनके साक्षात्कार से काफी अर्थ निकाले जा सकते हैं.
व्यक्ति पर चौतरफा हमला हो और उसमें उसका कुछ न बिगड़े तो उसके अंदर धीरे-धीरे आत्मविश्वास पैदा होता है. यही वाड्रा प्रदर्शित कर रहे हैं. लोक सभा चुनाव के पूर्व उनके कथित भूमि घोटाले को लेकर जितनी चर्चाएं हुई उसके अनुपात में कार्रवाई नहीं हुई.लगता था भाजपा सरकार आई और वाड्रा के खिलाफ जांच आरंभ हुई तथा उसमें भ्रष्टाचार के पहलू इतने साफ हैं कि उनका जेल जाना निश्चित है. भाजपा ने दामादश्री नाम से पुस्तिका निकाली जिसमें अनेक धाराओं के अंदर उनको दोषी साबित किया गया थ.
मामला इतना ही स्पष्ट था, तो फिर उनके खिलाफ त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए थी. परिणाम भी उन्हें भुगतना चाहिए था. ऐसा हुआ नहीं. राजस्थान सरकार ने अवश्य कहा कि उनको क्लीन चिट नहीं मिली है लेकिन कार्रवाई कहां तक पहुंची इसका पता किसी को नहीं है. हरियाणा सरकार ने न्यायमूर्ति ढींगरा की अध्यक्षता में जांच के लिए एक आयोग बना दिया है. आयोग की जांच कहां तक बढ़ी है, इसकी जानकारी देश को नहीं है.
हां, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का बयान हमारे सामने अवश्य है कि वाड्रा को तुरंत जेल जाना पड़ेगा. उनके तुरंत की अवधि कितनी है, इसका भी हमें पता नहीं. ऐसी स्थिति में वाड्रा का आत्मविश्वास बढ़ा है तो इसे बिल्कुल अस्वाभाविक नहीं माना जा सकता. वाड्रा कह रहे हैं कि वह काफी आत्मसात कर सकते हैं, और लोगों को उनके बारे में सच का पता चल जाएगा. उन्होंने कहा कि राष्ट्र को मेरे बारे में सच जानना चाहिए और मेरा मानना है कि आने वाले समय में लोग जानेंगे.
वाड्रा ने साक्षात्कार के माध्यम से कई और संदेश भी दिए हैं. पहली बार राष्ट्रवाद का पासा भी फेंका है. कहा कि मैं नहीं कहता कि देश के खिलाफ जाओ. भारतीय होने पर मुझे फख्र है.अपनी आइडियोलॉजी के बारे में उन्होंने वही कहा जो राहुल गांधी या कांग्रेस के नेता बोलते हैं. मसलन, हमारे देश में डायर्वसटिी यानी विविधता है. मजहब के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए. हमें हर तरह की ओपिनियन यानी विचार को मानना चाहिए. आखिर, इन बातों का अभिप्राय क्या है? उनका वर्तमान सरकार के बारे में जनमत का आकलन भी है.
जैसे वे कहते हैं कि केंद्र सरकार से लोग परेशान हैं, और बगावत करेंगे. क्या वे यह बताना चाहते हैं कि उनके पास व्यवसाय के साथ राजनीति में आने की भी योग्यता है. उनके पास राष्ट्र और राजनीति की समझ है, और उसके अनुसार वे काम कर सकते हैं यानी यहां भी उनको परिवार की मदद की आवश्यकता नहीं है.वह देश को बताना चाहते हैं कि वे खुद योग्य हैं. उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि मजबूत है. उनको आगे बढ़ने के लिए प्रियंका के नाम के सहारे की जरूरत नहीं है.
लेकिन देश जानता है कि रियल इस्टेट में उनकी प्रगति कैसे हुई. अगर उस परिवार से उनके संबंध नहीं होते तो बड़ी कंपनियां उनके साथ साझेदारी नहीं करतीं. हरियाणा और राजस्थान की तत्कालीन सरकारें इस तरह से उनकी परियोजनाओं के लिए जमीन सुलभ नहीं करातीं. आज भी वे बचे हुए हैं, तो इसलिए कि भाजपा सरकारों को भय है कि उनको गिरफ्तार कर लिया गया तो उसकी राजनीतिक प्रतिक्रिया ज्यादा तीखी होगी. इसलिए प्रियंका के नाम के सहारे की उनको आवश्यकता नहीं है, इस बात से कोई सहमत नहीं होगा.
प्रश्न यह भी पैदा होता है कि वाड्रा सारा कुछ क्यों कह रहे हैं? उनमें खुद योग्यता है, प्रियंका के सहयोग की उनको केवल व्यवसाय में ही नहीं राजनीति में भी आवश्यकता नहीं है. ऐसा उन्हें कहने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई? क्या परिवार के अंदर उनको लेकर मतभेद हैं? क्या परिवार के अंदर ही प्रश्न उठा है कि उनने कुछ ऐसे काम किए जिससे परिवार की बदनामी हो रही है या बाहर से कुछ लोग ऐसा बोलकर परिवार को प्रभावित कर रहे हैं? तो क्या इन सबका जवाब उन्होंने दिया है? पहली नजर में ऐसा ही लगता है.
एक साथ स्वयं को परिवार से सक्षम बताना, योग्य बताना, राष्ट्रवादी घोषित करना तथा राष्ट्र एवं राजनीति की समझ रखने का संदेश देते हुए किसी क्षेत्र से चुनाव जीतने की क्षमता की भी घोषणा कर देना आदि यूं ही नहीं हो सकता.यह भी कहा जा रहा है कि उन्होंने इसके माध्यम से परिवार को संदेश दिया है कि उनको या प्रियंका में से किसी को राजनीति में लाया जाए. परिवार पर करीबी नजर रखने वाले जानते हैं कि प्रियंका सोनिया और राहुल के साथ राजनीति में आने के लिए पहले से तैयार हैं, लेकिन उन्हें मौका नहीं दिया जा रहा है. इसके पीछे शायद राहुल को सुरक्षित रखने का भाव हो. हो सकता है कि 10 जनपथ के रणनीतिकारों को लगता हो कि प्रियंका के आने से राहुल की आभा पर असर पड़ जाएगा.