अखिलेश सरकार ने न्यू रेवेन्यू कोड-2016 लागू कर दिया है। इसके साथ ही 1901 का लैंड रेवेन्यू एक्ट खत्म हो गया। नए रेवेन्यू कोड का फायदा दलितों और किसानों को होगा। दलित अब बिना परमिशन किसी को भी अपनी जमीन बेच सकेंगे। किसानों को भी कोर्ट के ज्यादा चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। बुधवार को कैबिनेट की मीटिंग कैंसिल होने के बाद शाम को कैबिनेट बाई सर्कुलेशन में न्यू रेवेन्यू कोड को मंजूरी दी गई।
रेवेन्यू डिपार्टमेंट की 234 एक्ट और 16 चैप्टर में अमेंडमेंड कर रेवेन्यू से रिलेटेड नियमों की कठिनाइयों को आसान कर दिया गया है।न्यू रेवेन्यू कोड के तहत अब रेवेन्यू कोर्ट में नए दायर हुए केसों की सुनवाई की जाएगी।न्यू रेवेन्यू कोड के लागू होने के बाद कोई भी शख्स अपने एग्रीकल्चर लैंड का दूसरे के नाम पट्टा भी कर सकता है।ठियाबंदी के बाद लगाए सुरक्षा चिन्हों की रखवाली और उनकी हिफाजत करना लैंड ओनर की ही जिम्मेदारी होगी।लैंड सीलिंग एक्ट और आपसी बंटवारे के लिए अब तहसील स्तरीय कोर्ट के ज्यादा चक्कर नहीं लगाने होंगे।
लंबे समय तक अब फाइनल ऑर्डर जारी होने का इंतजार नहीं करना होगा। ऐसे मामले रेवेन्यू कोर्ट में सुने जा सकेंगे।इसके अलावा प्राइवेट लैंड की मीटरिंग (पैमाइश) कराना भी आसान हो जाएगा।कोई भी लैंड ओनर 1000 रुपए जमा कर अपनी जमीन की पैमाइश करा सकेगा।प्रदेश सरकार ने न्यू रेवेन्यू कोड को दो फेज में लागू किया है।गाइडलाइन बनाने और कर्मियों के ट्रेनिंग जैसे प्रवाधानों को 19 दिसंबर 2015 को लागू किया गया था। दूसरा फेज गुरुवार से लागू हुआ।
न्यू रेवेन्यू कोड के तहत दलित किसी को भी अपनी जमीन बेच सकेंगे। इसके लिए उन्हें किसी अथॉरिटी के परमिशन की जरूरत नहीं है।हालांकि, इसके लिए तीन शर्तें सरकार की ओर से लागू की गई हैं। पहली शर्त- जमीन बेचने वाला दूसरी जगह बस गया हो, दूसरी शर्त- वह किसी जानलेवा रोग से पीड़ित हो, तीसरी शर्त- कोई उसका उत्तराधिकारी न हो।अभी तक दलितों को पट्टे पर (Land on lease) जमीन दी जाती थी। न्यू रेवेन्यू कोड के लागू होने के बाद अब दलितों को अपनी जमीन की ओनरशिप (मालिकाना हक) मिल गई है।
उत्तर प्रदेश भूमि राजस्व कानून 1901 में बना था। बाद में इसके बदले 1926 और 1939 उत्तर प्रदेश काश्तकारी (टेनेन्सी) कानून बनाए गए। 1951 में उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमिसुधार कानून बनाया गया। इस कानून के अधीन किसानों के पुराने वर्गीकरण को समाप्त कर किसानों को चार श्रेणियों में बांटा गया। भूमिधर, सीरदार, आसामी और अधिवासी। इस कानून के पहले किसानों को सात श्रेणियों में रखा जाता था, जिनमें खुदकाश्त, मौरूसी काश्तकार, सीरदार, काश्तकार और शिकम काश्तकार आदि शामिल थे।