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जीनोम सिक्वेन्सिंग की सुविधा विकसित करने वाला पहला राज्य बना राजस्थान

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश पर एसएमएस मेडिकल कॉलेज में जीनोम सिक्वेन्सिंग की सुविधा प्रारम्भ कर दी गई है. राज्य स्तर पर टोटल जीनोम सिक्वेन्सिंग की सुविधा उपलब्ध होने की दृष्टि से राजस्थान देश का पहला राज्य बन गया है.

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉ. रघु शर्मा ने बताया कि कोविड-19 की रोकथाम को दृष्टिगत रखते हुये प्रदेश में जीनोम सिक्वेन्सिंग की सुविधा उपलब्ध कराई गई है. जीनोम सिक्वेन्सिंग की तकनीक से वॉयरस के नये वेरियेन्ट के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकेगी.

उन्होंने बताया कि एसएमएस मेडिकल कॉलेज में करीब 1 करोड रूपये व्यय कर जीनोम सिक्वेन्सिंग की व्यवस्था प्रारम्भ की गई है.डॉ. शर्मा ने बताया कि जीनोम सिक्वेन्सिंग के लिये अब तक प्रदेश से सैंपल केन्द्र सरकार की इण्डियन कौसिंल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा राजस्थान के लिये निर्धारित दिल्ली स्थिति आईजीआईबी लैब में भिजवाये जा रहे थे.

प्रदेश से प्रतिदिन 10 के अनुसार माह में निर्धारित 300 सेम्पल भिजवाये जा रहे थे, लेकिन इनकी रिपोर्टस् समय पर प्राप्त नहीं हो पा रही थी.एसएमएस मेडिकल कॉलेज में स्थापित मशीन पर सेम्पलिंग कार्य 15 जून से कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है.

इस मशीन की क्षमता प्रतिदिन 20 सैम्पल जॉच करने की हैं एवं शीघ्र ही इसकी क्षमता को बढ़ाकर प्रतिदिन 80 सैंपल की जांच की जायेगी. सैंपल की जांच रिपोर्ट 3 से 4 दिन में प्राप्त हो रही है.24 जून तक देश में कोविड-19 के करीब 100 सैंपल की जीनोम सिक्वेन्सिंग की गई है.

जांच रिपोर्ट के अनुसार इनमें से लगभग 90 प्रतिशत डेल्टा वेरियन्ट पाया गया है. शेष 10 प्रतिशत कोविड-19 का बी 1.1 वेरियन्ट मिला है. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि प्रदेश में जिनोम सिक्वेन्सिंग की सुविधा सुलभ होने से कोविड-19 के बदलते वेरियन्टस् पर प्रभावी निगरानी की जा सकेगी.

सरल भाषा में कहें तो जीनोम सीक्वेंसिंग एक तरह से किसी वायरस का बायोडाटा होता है. कोई वायरस कैसा है, किस तरह दिखता है, इसकी जानकारी जीनोम से मिलती है. इसी वायरस के विशाल समूह को जीनोम कहा जाता है.

वायरस के बारे में जानने की विधि को जीनोम सीक्वेंसिंग कहते हैं. इससे ही कोरोना के नए स्ट्रेन के बारे में पता चला है.असल में, मानव कोशिकाओं के भीतर आनुवंशिक पदार्थ होता है जिसे डीएनए, आरएनए कहते हैं.

इन सभी पदार्थों को सामूहिक रूप से जीनोम कहा जाता है. वहीं, स्ट्रेन को वैज्ञानिक भाषा में जेनेटिक वैरिएंट कहते हैं. सरल भाषा में इसे अलग-अलग वैरिएंट भी कह सकते हैं. इनकी क्षमता अलग-अलग होती है. इनका आकार और इनके स्वभाव में परिवर्तन भी पूरी तरह से अलग होता है.

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