पैसेंजर सेफ्टी को लेकर बोले रेल मंत्री पीयूष गोयल

रेलवे मिनिस्टर पीयूष गोयल ने रेलवे बोर्ड के अफसरों की एक अहम मीटिंग की। इसमें गोयल ने कहा कि पैसेंजर्स की सेफ्टी सबसे ज्यादा अहम है। जिन रेलवे ट्रैक्स पर खतरा है वहां नई लाइनें बिछाईं जाएं। गोयल ने कहा कि एक साल में जितने भी अनमैन्ड रेलवे गेट हैं, उन्हें खत्म किया जाए। गोयल को पिछले रविवार को ही रेलवे मिनिस्टर बनाया गया है।

मीटिंग में इस बात पर विचार किया गया कि अनमैन्ड क्रॉसिंग और ट्रैक में खराबी हादसों की सबसे बड़ी दो वजहें हैं।गोयल की इस मीटिंग में रेलवे बोर्ड के तमाम आला अफसर शामिल हुए। मिनिस्टर ने उन्हें ट्रैक रिप्लेसमेंट जल्दी करने के ऑर्डर दिए। उन्होंने कहा कि नई लाइन्स बिछाने का काम तय वक्त में ही पूरा किया जाना चाहिए।

 

मीटिंग में शामिल एक अफसर ने न्यूज एजेंसी को बताया कि विंटर सीजन के दौरान सभी इंजनों में एंटी फॉग लाइट्स लगाने पर भी विचार हुआ। मिनिस्टर ने कहा कि इससे एक्सीडेंट्स कम किए जा सकेंगे।कैबिनेट फेरबदल के बाद गोयल पिछले हफ्ते ही रेलवे मिनिस्टर बने हैं। उनके पहले सुरेश प्रभु रेलवे मिनिस्टर थे। उन्होंने नरेंद्र मोदीको इस्तीफे की पेशकश की थी।

बाद में उनकी मिनिस्ट्री बदल दी गई।गोयल ने मीटिंग में कहा कि पुराने कोच को नए LBH कोच से रिप्लेस करने का काम तेजी से किया जाए। उन्होंने कहा कि पैसेंजर्स की सेफ्टी सबसे ज्यादा अहम है और इस पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता।रेल मंत्रालय ने साइंटिस्ट डॉ. अनिल काकोदकर की चेयरमैनशिप में हाई लेवल सेफ्टी रिव्यू कमेटी बनाई थी।

इसने 2012 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसमें रेलवे सेफ्टी पर पांच साल में 1 लाख करोड़ रुपए खर्च करने की सिफारिश की गई थी। कमेटी ने 20 हजार करोड़ की लागत से पांच साल के अंदर 19 हजार किलोमीटर के ट्रंक रूट में एडवांस सिग्नलिंग सिस्टम लगाने को कहा था। यहां ट्रंक रूट के मायने उन रूट्स से हैं जहां हाई ट्रैफिक डेंसिटी है।

काकोदकर कमेटी ने एक अहम सिफारिश यह भी की थी कि रेलवे को ICH डिजाइन वाले पुराने कोच को बदलकर उनसे कहीं ज्यादा सेफ LHB कोच अपनाने चाहिए। इसके लिए 2012 से 2017 के बीच 10 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की बात कही गई थी।ICF के कोचेज में इस्तेमाल की जाने वाली स्विस तकनीक 1950 के दौरान की है।

पहले इस तकनीक ने हादसों के दौरान कई जानें बचाईं, लेकिन अब स्पीड और ट्रैक से जुड़ी कुछ परेशानियां सामने आ रही है। काकोदर कमेटी के मुताबिक ICF कोचेज ट्रेनों की मौजूदा ऑपरेशनल स्पीड 100-120Kmph के लिए सुरक्षा के नजरिए से ठीक नहीं हैं।जर्मन मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के लिंक हॉफमैन बुश कोचेज का ट्रायल इंडिया में किया जा चुका है।

इसका मकसद हल्के, तेज और सुरक्षित कोचेज का प्रोडक्शन करना है। कपूरथला स्थित रेलवे कोच फैक्ट्री को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर एग्रीमेंट भी मिल गया है। डाटा के मुताबिक, 63 हजार रेल कोचेज में से 53 हजार ICF हैं। अभी फिलहाल 8 हजार LBH कोचेज ऑपरेशनल हैं और वो भी ज्यादातर राजधानी और शताब्दी ट्रेनों में।

LBH कोचेज 160Kmph की स्पीड भी हैंडल कर सकते हैं। ये हल्के और कम आवाज करने वाले हैं। इनकी एयरकंडीशनिंग भी बेहतर है। ये लंबे और चौड़े हैं और इनमें 10% ज्यादा पैसेंजर आ सकते हैं। LBH की उम्र जहां 35 साल है, वहीं ICF कोचेज की 25 साल। सबसे बड़ी बात ये कि LBH कोचेज ज्यादा सेफ हैं। 2012 में काकोदर कमेटी और सैम पित्रोदा कमेटी ने ICF कोचेज को पूरी तरह LBH कोचेज से रिप्लेस करने की रिकमंडेशन दी थी।

मई 2010 में गुवाहाटी राजधानी एक्सप्रेस बिहार के नौगीचा में डिरेल हो गई थी। इसमें LBH कोचेज लगे थे, इस हादसे में एक भी जान नहीं गई। इसके बाद जुलाई 2011 में यूपी के फतेहपुर में कालका मेल डिरेल हो गई, जिसमें ICF कोच लगे थे। इस हादसे में 70 लोगों की जान गई और 300 से से ज्यादा लोग घायल हुए। इसके बाद आई काकोदर कमेटी में कई स्टडीज के आधार पर ICF और LBH के इस फर्क को बताया गया।LBH कोचेज में लगा एंटी टेलेस्कोपिंग फीचर और एडवांस्ड कपलिंग सिस्टम डिरेलमेंट के दौरान डिब्बों को एक के ऊपर एक चढ़ने से रोकता है।

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