राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने विभिन्न भाषाओं के देश-विदेश के 30 विद्वानों को उनके योगदान के लिए सम्मानित किया.मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में इन विद्वानों को सम्मानित किया, जिनमें एक विदेशी और शेष देशी विद्वान हैं.उन्होंने इन विद्वानों को वर्ष 2015 के राष्ट्रपति पुरस्कार तथा महर्षि बादरायण व्यास सम्मान प्रदान किये. राष्ट्रपति पुरस्कार पाने वालों में संस्कृत के 15 विद्वान डॉ. शशि तिवारी, प्रो लक्ष्मीर झा, प्रो. सुधाकर दीक्षित, प्रो. जी महाबलेर भट्ट, एस एम वीरराघवाचार, वेद रत्न केशव सीताराम जोगलेकर, प्रो. ए हरिदास भट्ट, पं. श्रीकृष्णशासी काशीनाथशासी जोशी, प्रो रामकिशोर शुक्ल, ब्रमश्री गुल्लपल्लि वेंकटनारायण घनपाठी, प्रो. हरिदत्त शर्मा, प्रो ओमप्रकाश पांडे, डॉ कैलाश चन्द्र दवे, पं. जगन्नाथ शासी तेलंग और डॉ. वाचस्पति मैठाणी शामिल थे.
इसके अलावा फि़नलैंड के संस्कृत विद्वान आस्को पापरेला को भी यह सम्मान दिया गया.अरबी के दो विद्वान डॉ. ए. निारुदीन और प्रो. मोहम्मद हस्सान खान तथा फारसी के तीन विद्वान प्रो. गुलाम रसूल जान, प्रो. मोहम्मद मुनव्वर मसूदी और प्रो. एहसान करीम बर्क तथा पालि/प्राकृत के लिए प्रो. प्रद्युम्न दुबे को राष्ट्रपति पुरस्कार प्रदान किया.
मुखर्जी ने संस्कृत के पांच तथा अरबी, फ़ारसी और पाली के एक-एक विद्वान को महर्षि बादरायण व्यास सम्मान प्रदान किया. प्रो. विरूपाक्ष वि. जड्डीपाल, डॉ. रत्नमोहन झा, डॉ. विष्णुपद महापा, डॉ. प्रसाद प्रकाश जोशी और डॉ. देवी प्रसाद मिश्र को संस्कृत, डॉ. हईफा शाकरी को अरबी, डॉ. इमरान अहमद चौधरी को फारसी तथा डॉ. धम्मदीप पंढरी वानखेडे को पालि के लिए महर्षि बादरायण व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया.