उत्तराखंड हाइकोर्ट में हरीश रावत सरकार के संकट में आने के बाद लगाये गये राष्ट्रपति शासन पर सुनवाई हुई.इस मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि अगर राष्ट्रपति के फैसले गलत हो सकते हैं तो हर विषय न्यायिक समीक्षा के तहत आ जाता है. अदालत ने कहा कि हम राष्ट्रपति की बुद्धिमत्ता पर संदेह नहीं कर रहे हैं, लेकिन सब कुछ न्यायिक समीक्षा के तहत आता है.अदालत ने कहा कि ये फैसले राजा के वैसे फैसलों की तरह नहीं हैं कि उनकी कोई समीक्षा ही नहीं कर सकता है.
सुनवाई की शुरुआत में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सदन में विनियोग विधेयक फेल हो गया था और सरकार अल्पमत में थी. उन्होंने विधि आयोग की सिफारिश और मद्रास हाई कोर्ट के फैसले का हवाला भी दिया. इस पर कोर्ट ने पूछा कि बिल गिर गया है, यह आप कैसे कह सकते हैं? यह कैसे प्रमाणित होता सकता है?इस पर केंद्र ने दलील दी कि एकमात्र विभाग के बजट में भी कटौती मत विभाजन की मांग संवैधानिक बाध्यता है और स्पीकर इसे स्वीकारने को बाध्य हैं.
कोर्ट ने पूछा कि राज्यपाल ने रिपोर्ट में 9 बागियों का जिक्र क्यों नहीं किया, सिफारिश 27 भाजपा विधायकों का ही हवाला क्यों दिया तो इसके जवाब में केंद्र ने कहा कि ये सवाल राष्ट्रपति ने नहीं उठाया, चाहते तो सिफारिश पुनर्विचार को लौटा सकते थे. इस पर कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति राजा नहीं हैं. न्यायपालिका के साथ राष्ट्रपति भी गलत हो सकते हैं. कैबिनेट ने सिफारिश की, राष्ट्रपति ने मान ली.कोर्ट ने 35 विधायकों को लेकर कहा कि राज्यपाल ने 35 का जिक्र क्यों नहीं किया, जबकि आप इसी को आधार बना रहे हैं.
राज्यपाल ने 9 बागियों का जिक्र नहीं किया तो केंद्र की कैबिनेट को कैसे पता चला कि मत विभाजन की मांग करने वाले 68 के सदन में 35 विधायक थे.गौरतलब है कि 18 मार्च से ही उत्तराखंड में सियासी धमासान शुरू हो गया था. राज्य सरकार के विधानसभा में बजट को पेश करने के दौरान क्रॉस वोटिंग हुई थी. प्रस्ताव विफल हो गया, फिर भी विधानसभा अध्यक्ष ने इसे पास कर दिया. इसके बाद से ही बागी विधायक हरीश रावत के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे.
विनियोग विधेयक पर विपक्ष की मत विभाजन की मांग नहीं मानी जाने पर 35 विधायकों ने सरकार से असंतोष जताया. इसके बाद हरिश रावत को बहुमत साबित करने का वक्त मिला लेकिन स्टिंग सामने आने के बाद रावत से यह मौका छिन गया और केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी.इस बीच गृह मंत्रालय के सूत्रों ने उत्तराखंड हाईकोर्ट की टिप्पणी को गलत बताया है और कहा है कि सरकार इस टिप्पणी को निरस्त कराने या वापस लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट जा सकती है. गृह मंत्रालय इसे राष्ट्रपति पर निजी टिप्पणी मान रहा है.