नीति आयोग ने प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का सुझाव दिया है.चुनाव आयोग ने भी इसी तरह का सुझाव दिया है. आयोग का कहना है कि सरकार गिरने की स्थिति में नया नेता सरकार चलाए और वैकल्पिक सरकार पर सहमति न बनने की स्थिति में राष्ट्रपति देश के प्रशासक के तौर पर राज करे.
देश में बार-बार चुनाव होने से देश के किसी न किसी हिस्से में आदर्श चुनाव आचार संहिता लगी रहती है, जिसके कारण नीतिगत निर्णय लेने में दिक्कतें पेश आती हैं. 2014 के आम चुनाव से लेकर 2016 तक 15 राज्यों के चुनाव हो चुके हैं. चुनाव कालाधन और भ्रष्टाचार की जननी है.1967 तक देश में एक साथ ही चुनाव होते थे, लेकिन उसके बाद राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह चक्र टूट गया.
विधि आयोग ने 1999 में अपनी 170 वीं रिपोर्ट में चुनाव सुधार की सिफारिश की थी, तब से एक ही दिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की चर्चा चल रही है. संसद की स्थायी समिति ने भी सरकार, चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों से रायमशविरा किया था, लेकिन कोई पक्की बात उभरकर सामने नहीं आई.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 नवम्बर को पत्रकारों के सामने इस विषय पर चर्चा करने की अपील की थी.आयोग सरकार के लिए थिंक टैंक का काम कर रहा है. पीएम की अपील के बाद आयोग ने एक चर्चा पत्र तैयार कर लिया है, जिसके तहत एक साथ चुनाव के पक्ष-विपक्ष में तमाम बिंदुओं पर चर्चा की गई है.