पीएनबी में हुए 11,356 करोड़ के घोटाले के बाद इसके 18 हजार कर्मचारियों को तीन दिन के अंदर ट्रांसफर कर दिया गया है। यह कार्रवाई सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (सीवीसी) के आदेश पर की गई है। इस फैसले का सबसे ज्यादा असर ब्रांच में 3 साल से जमे अफसरों और 5 साल से जमे कर्मचारियों पर होगा।
पीएनबी फ्रॉड के खुलासे के बाद सीवीसी ने पब्लिक सेक्टर के बैंकों को एक एडवाइजरी जारी की थी। इसमें बैंकों को उनकी किसी एक ब्रांच में 31 दिसंबर, 2017 तक 3 साल पूरे कर चुके अफसरों का ट्रांसफर करने का आदेश दिया गया था।यह नियम बैंक के उन कर्मचारियों पर भी लागू होता है, जो एक ही ब्रांच में 5 साल से ज्यादा समय से जमे हुए हैं।
नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स ने इस कदम का विरोध किया है। यूनियन के उपाध्यक्ष अश्विनी राणा ने इसे तुगलकी फरमान बताया।उन्होंने कहा कि बैंकों के लिए यह समय बहुत ही कठिन होता है, क्योंकि मार्च में बैंकों की क्लोजिंग होती है। आमतौर पर सभी बैंकों में अप्रैल से जुलाई के बीच ही प्रमोशन और ट्रांसफर होते हैं। यूनियन ने सरकार से यह फैसला टालने की मांग की है।
हीरा कारोबारी नीरव मोदी और गीतांजलि ग्रुप्स के मालिक मेहुल चौकसी इस घोटाले के मुख्य आरोपी हैं। इन दोनों ने गोकुलनाथ शेट्टी के साथ मिलकर इस घोटाले को अंजाम दिया। इस मामले गोकुलनाथ और खरत समेत 12 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।इस पूरे फ्रॉड को लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) के जरिए अंजाम दिया गया।
यह एक तरह की गारंटी होती है, जिसके आधार पर दूसरे बैंक अकाउंटहोल्डर को पैसा मुहैया करा देते हैं। अब यदि अकाउंटहोल्डर डिफॉल्ट कर जाता है तो एलओयू मुहैया कराने वाले बैंक की यह जिम्मेदारी होती है कि वह संबंधित बैंक का बकाया चुकाए।पीएनबी के कुछ अफसरों ने नीरव मोदी को गलत तरीके से लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) दी।
इसी एलओयू के आधार पर मोदी और उनके सहयोगियों ने दूसरे बैंकों से विदेश में कर्ज ले लिया। पीएनबी ने भले ही दूसरे लेंडर्स के नाम का जिक्र नहीं किया, लेकिन समझा जाता है कि पीएनबी से जारी एलओयू के आधार पर यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक ने भी क्रेडिट ऑफर कर दिया था।