महंगाई ने मानो कमर तोड़कर रख दी है. हालात ऐसे हैं कि घर के इस्तेमाल की हर चीज महंगी हो गई है. रसोई गैस से लेकर पेट्रोल-डीजल तक, सब्जी से लेकर दूध तक, राशन से लेकर खाद्य तेल तक की कीमत ने आंखों से आंसू निकाल दिए हैं.
महिलाओं पर किचन का बजट कम करने का दबाव आ गया है. घर के सदस्यों का पेट भी भरना है, लेकिन बजट भी नियंत्रित रखना है. ये ऐसी परीक्षा है जिसमें महिलाएं तमाम कोशिशों के बाद भी फेल साबित होंगी.
महंगाई ने पिछले कुछ महीनों में अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं. ऐसे में बिहार में विपक्ष ने कमर कस ली है. सरकार के खिलाफ आक्रोश अब सड़क पर आने वाला है, क्योंकि विपक्षी दलों ने सड़क पर उतरकर आंदोलन की तैयारी कर ली है.
सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर महंगाई कम करने का दबाव बनाने की कोशिश हो रही है.बिहार के मुख्य विपक्षी दल RJD और उसके सहयोगी दल कांग्रेस ने महंगाई के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनाई है. केन्द्र के साथ-साथ बिहार सरकार को भी बड़े स्तर पर घेरने की तैयारी है.
इसकी शुरुआत कांग्रेस कर रही है. शनिवार, 17 जुलाई को कांग्रेस ने राजधानी पटना में साइकिल मार्च का फैसला किया है. पटना के बोरिंग रोड से ऐतिहासिक गांधी मैदान तक साइकिल मार्च के जरिए सरकार से महंगाई को लेकर नाराजगी जताने की तैयारी है.
पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों की वजह से ये मार्च साइकिल के जरिए करने का कांग्रेस ने फैसला किया है.दरअसल, पेट्रोल ने देश के इतिहास में पहली बार 100 रुपए प्रति लीटर का स्तर पार किया है. इसके अलावा डीजल भी शतक लगाने के करीब पहुंच चुका है.
ऐसे में लोगों के लिए अब गाड़ी से चलना मुश्किल हो गया है. वहीं ईंधन के दाम बढ़ने से माल ढुलाई भी महंगा हो गया है. बाकी चीजों के दाम पर भी इसका असर पड़ा है और महंगाई बढ़ गई है. ऐसे में कांग्रेस का साइकिल मार्च विरोध जताने के लिए है.
शनिवार को कांग्रेस के प्रदर्शन के बाद रविवार, 18 जुलाई और सोमवार, 19 जुलाई को मुख्य विपक्षी दल RJD सड़क पर उतरेगी. RJD ने प्रखंड स्तर से जिलास्तर तक मोर्चा खोलने की तैयारी की है. इसके लिए अन्य विपक्षी दलों से भी RJD ने सड़क पर उतरकर आंदोलन करने का आह्वान किया है.
आम जनता को महंगाई के मुद्दे पर साथ जोड़ने के लिए RJD के नेता और कार्यकर्ता जी-जान से जुट गए हैं. पार्टी ने प्रखंड मुख्यालय से लेकर जिला मुख्यालय तक आंदोलन की तैयारी की है.RJD और कांग्रेस का कहना है कि साल 2014 से पहले जब देश में महागठबंधन की सरकार थी, तब BJP ने महंगाई को मुद्दा बनाकर देशभर में माहौल तैयार किया.
जनता ने जब इनको मौका दिया तब इन्होंने जनता को खून के आंसू रुला दिया है. उज्जवला योजना के तहत महिलाओं को रसोई गैस देने के बाद गैस के दाम इतने बढ़ा दिए कि लोगों के लिए सिलिंडर लेना मुश्किल हो गया. जब साल 2014 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत 125 से 135 डॉलर प्रति बैरल थी, तब महागठबंधन सरकार के दौर में देश में पेट्रोल की कीमत 70 से 72 रुपए प्रति लीटर थी.
आज कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 75 डॉलर प्रति बैरल से भी कम है, लेकिन पेट्रोल की कीमत 100 रुपए प्रति लीटर के पार है. ये मोदी सरकार का ही कमाल हो सकता है. खाद्य तेल की कीमत पहली बार 200 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई है. ये भी मोदी सरकार की नीतियों का फल है. यही सरकार के अच्छे दिन हैं.
जनता की जेब से ये सरकार डाका डालकर पैसे निकाल रही है.बिहार में जब मुख्य विपक्षी दल सड़क पर आंदोलन करने जा रहे हैं, तब सत्तापक्ष के पास बचाव के लिए ज्यादा कुछ नहीं है. महंगाई एक ऐसा मुद्दा है, जिसके साथ जनता भी खुद को जोड़ती है.
यही वजह है कि सत्तापक्ष दबी जुबान में ये तो मान रहा है कि महंगाई एक मुद्दा है, लेकिन बचाव में ये कह रहा है कि सरकार प्रयास कर रही है. सत्तापक्ष का ये कहना है कि ‘सरकार गरीबों की पूरी सुध ले रही है. लगातार इस बात के प्रयास हो रहे हैं कि जनता को ज्यादा से ज्यादा राहत दी जा सके.
केन्द्र सरकार देश के 80 करोड़ लोगों को कोरोना काल के लिए मुफ्त राशन दे रही है.सत्तापक्ष ने पिछली सरकार की नीतियों को भी महंगाई के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया. NDA के घटक दलों का कहना है कि मनमोहन सरकार की नीतियों की भी समीक्षा होनी चाहिए कि कहीं उन नीतियों की वजह से तो महंगाई इतनी बेलगाम नहीं हो गई?
इसके अलावा वर्तमान में कोरोना की वजह से हेल्थ सेक्टर पर मोटी रकम खर्च करनी पड़ रही है, जिसके लिए सरकार को रेवेन्यू जुटाना जरूरी हो गया है. जनता के पैसे से ही देश चलता है और वही पैसा देश की भलाई में खर्च होता है.
सत्तापक्ष और विपक्ष में इस मुद्दे पर जमकर टकराव होने के आसार हैं. इस बीच आर्थिक मामलों के जानकार भी वर्तमान स्थिति से हैरान हैं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ‘अर्थशास्त्र के सिद्धांत के मुताबिक, अगर डिमांड कम होती है और सप्लाई ज्यादा होती है तो महंगाई कम होती है. कोरोना काल में भी ऐसा होना चाहिए था.
देश में लोगों की आर्थिक स्थिति बिगड़ने की वजह से लोगों ने खर्च में कटौती की है. बाजार में चीजों की डिमांड कम हुई है, जबकि उत्पादन भरपूर होने से सप्लाई में कोई कमी नहीं आई है. बावजूद इसके महंगाई बढ़ना चौंकाता है. इस स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि अर्थशास्त्र के सारे नियम यहां बदल गए हैं’.