ऑड-ईवन योजना पर खुल गई दिल्ली सरकार की पोल

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दिल्ली में ऑड-ईवन नंबरों की गाड़ियां अलग-अलग तारीखों पर चलाने की योजना थोप कर दिल्ली सरकार ने केवल और केवल झूठी तारीफें बटोरने का ही काम किया है, इसकी पोल आखिरकार खुल ही गई है.मैं शुरू से ही इसका विरोध कर रहा हूं, लेकिन अब दिल्ली सरकार की पोल खोली है, सड़क परिवहन और हाईवे मंत्रालय के एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट यानी टेरी ने. क्या दिल्ली सरकार टेरी के आंकड़ों को झुठला पाएगी? और अब तो दिल्ली सरकार को यह भी बताना होगा कि अपनी योजना को कामयाब बताते वक्त उसने जो आंकड़ेबाजी की, वह झूठ का पुलिंदा क्यों नहीं था?

क्या कोई सरकार अपने लोगों से झूठ बोलकर पीठ थपथपा सकती है? दिल्ली के लोगों को आप की सरकार से इस बारे में खुलकर सवाल पूछने चाहिए. 10 मई को जारी किए गए टेरी के आंकड़ों के मुताबिक ऑड-ईवन फेज दो, यानी 30 अप्रैल तक घोषित की गई योजना के नतीजे फेज एक यानी जनवरी में लागू की गई योजना के नतीजों से बेहतर नहीं हैं.मैं पहले भी बता चुका हूं कि जनवरी की स्कीम से लोगों को इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं हुई थी, क्योंकि उस महीने में छुट्टियां ज्यादा थीं. जनवरी में घरों से बाहर लोग कम ही निकले. टेरी की रिपोर्ट ने अब इस बात पर मुहर लगा दी है.

अप्रैल के ऑड-ईवन में दिल्ली में कारों की संख्या में केवल 17 फीसद की कमी आई, जबकि जनवरी में दिल्ली में लागू किए गए ऑड-ईवन के दौरान राजधानी की सड़कों पर 21 फीसद कारें कम चलाई गई थीं. टेरी के मुताबिक फेज एक में पीएम 2.5 के स्तर में सात प्रतिशत की कमी आई थी, जबकि फेज दो में महज चार फीसद की ही कमी आई. टेरी का कहना है कि ऐसी योजना तभी चलाई जानी चाहिए, जब दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर बेहद बढ़ा हुआ हो. यानी इसे इमरजेंसी के तौर पर ही लागू किया जाना चाहिए. पूरे साल इस योजना को लागू रखने से कोई फायदा नहीं होने वाला.

टेरी का यह सुझाव भी सही है कि वाहनों के चलाए जाने पर पाबंदी से बेहद जरूरी ये है कि प्रदूषण के स्रोत नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड और अमोनिया के स्रोतों पर कड़ाई से अंकुश लगाया जाए.हो सकता है कि हर मामले की तरह दिल्ली सरकार टेरी की रिपोर्ट को भी उसे बदनाम करने की साजिश करार देकर खारिज कर दे. लेकिन उसके मुताबिक अगर फेज दो का ऑड-ईवन अच्छे नतीजे वाला था, तो फिर इस पर एक साल के लिए उसने रोक क्यों लगा दी है? अब सरकार कह रही है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम पूरी तरह दुरु स्त करके ही इस योजना को फिर लागू किया जाएगा.

यह भी अच्छी बात है, लेकिन अगर यह योजना ही अंतिम कारगर उपाय है, तो पब्लिक के लिए तो जब ये योजना लागू होगी, तब-की-तब देखा जाएगा, लेकिन दिल्ली सरकार के लोग इसे खुद पर हमेशा के लिए क्यों लागू नहीं कर रहे हैं? खुद तो वे इसका पालन बाकी के कार्यकाल तक कर ही सकते हैं.इससे मिसाल तो कायम हो ही सकती है. पूरी दिल्ली में दिल्ली सरकार और उसके लिए काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों के लाखों वाहन तो रोज दौड़ते ही हैं. दम है तो सरकार के मंत्री, अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए दिल्ली सरकार इस योजना को अनिवार्य करके दिखाए.

मिसाल कायम करने के लिए अगर सरकार ऐसा करेगी, तो पब्लिक तो बाद में खुद ही मान जाएगी. मेरा दावा है कि अगर हम दिल्ली में असरदार ट्रांसपोर्ट सिस्टम का विकास कर लें, तो सड़कों पर वाहनों की संख्या अपने आप कम हो जाएगी. दिल्ली की सड़कों पर सुबह-शाम और कई बार तो दिन भर जाम लगने से भी वायु प्रदूषण की समस्या बढ़ती है. रोजकरोड़ों रुपये का ईधन बर्बाद होता है, सो अलग. हजारों लोग कई-कई घंटों तक सड़कों पर जाम खुलने का इंतजार करने के लिए अभिशप्त हैं. अगर काम के घंटों के नुकसान के तौर पर इसकी गणना की जाए, तो चौंकाने वाले नतीजे आएंगे. दिल्ली जाम मुक्त हो जाए, तो श्रम के घंटों में बेतहाशा बढ़ोतरी हो सकती है.

सरकार को इन गंभीर मसलों की तरफ ईमानदारी से सोचना चाहिए, न कि सुर्खियां बटोरने के लिए कुछ भी आनन-फानन में लागू कर देना चाहिए.दिल्ली में कार खरीदने का क्रेज बहुत ज्यादा है. इसे कम करना थोड़ा मुश्किल काम है, लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाकर सड़कों का लोड तो कम किया ही जा सकता है. ऐसा नहीं है कि मैं वायु प्रदूषण के मामले में केवल दिल्ली सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर रहा हूं. क्योंकि बात मेरे, मेरे परिवार और मेरी दिल्ली के सभी लोगों की सेहत से जुड़ी है, लिहाजा अगर केंद्र सरकार भी इसमें कोताही बरतती है, तो उसे भी चौकन्ना होना होगा. विज्ञान प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन संबंधी स्थाई संसदीय समिति की मई महीने में ही रखी गई रिपोर्ट गंभीर सवाल उठा रही है. 

समिति के मुताबिक प्रदूषण से निपटने के मामले में पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का काम उम्मीद के मुताबिक नहीं है. दिसंबर, 2015 तक पर्यावरण मंत्रालय अपने बजट का केवल 35 प्रतिशत ही इस्तेमाल कर पाया था. इससे पता चलता है कि वह भी कितना गंभीर है और उसके पास योजनाओं की कमी है. इस स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव लाने की जरूरत है. दिल्ली सरकार को मेरी सलाह है कि वह केंद्र सरकार के खिलाफ मुंहजुबानी जहर उगलना बंद करे और मिल-जुल कर दिल्ली के लोगों की भलाई के लिए काम करे. खाली गाल बजाने से कुछ नहीं होगा. 

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