बुंदेलखंड के तालाबों में नहीं बचा पानी, स्थिति गंभीर

बुंदेलखंड देश का वह इलाका है जो हर साल पानी के संकट से जूझता है, यहां के बड़े हिस्से में लोगों को खरीदकर पानी पीना होता है। इस बार भी लगभग यही हालात बन रहे हैं, कई जल स्रोतों में बहुत कम पानी बचा है और कई हिस्सों के हैंडपंपों ने पानी देना ही बंद कर दिया है।

बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुल 14 जिलों को मिलाकर बनता है और इनमें से अधिकांश हिस्से में पानी का संकट रहना आम बात होती है। यही कारण है कि यहां से हर साल हजारों परिवार पलायन को मजबूर होते हैं।

इस इलाके में कभी लगभग 10 हजार तालाब हुआ करते थे, चौपरा और कुओं की गिनती ही नहीं है, इनका चंदेल और बुंदेला राजाओं ने निर्माण कराया था, मगर अब इनमें से बड़ी संख्या में तालाब मैदान में बदल चुके है।

हां नए तालाब और जल संरचनाएं विकसित करने की दावे जरूर हर साल होते हैं, इनकी सुनहरी कहानियां भी खूब आती हैं, मगर पानी का संकट यथावत बना रहता है।बुंदेलखंड के तालाबों पर हो रहे कब्जों के खिलाफ आवाज उठाने वाले पत्रकार धीरज चतुर्वेदी का कहना है कि बुंदेलखंड में इतनी संख्या में जलस्त्रोत है कि यहां पानी का संकट ही नहीं होना चाहिए, मगर इन जलस्त्रोतों को ही खत्म कर दिया गया।

भूमाफियाओं को प्रशासन का साथ मिला, परिणामस्वरुप योजनाबद्ध तरीके से कागजों में हेराफेरी की गई और तालाबों को जमीन में बदलकर उन्हें बेच दिया गया।वे आगे कहते है कि बुंदेलखंड कुछ लोगों के लिए दुधारु गाय बन गया है।

गर्मी शुरू होते ही तालाबों के संरक्षण की बात शुरू हो जाती है, बजट स्वीकृत होता है, बारिश आने के एक माह पहले तालाबों का काम भी शुरू हो जाता है और बारिश का पानी भरने पर किसी को पता ही नहीं चलता कि वास्तव में हुआ ही क्या है।

यह सब प्रशासन, अफसर और कतिपय सामाजिक कार्यकर्ताओं के गठजोड़ के कारण हो रहा है।स्थानीय जानकारों की माने तो बुंदेलखंड के लगभग हर गांव में तालाब हुआ करता था, इन तालाबों से जहां पानी की आपूर्ति होती थी वहीं कुछ वर्गों को रोजगार भी हासिल होता था, उदाहरण के तौर पर मछली पालन, सिंघाड़े की खेती आदि।

पानी कम होने पर लोग खाली जमीन पर खेती भी कर लिया करते थे। वक्त बदला और स्थितियों में बदलाव आया तो लेागों ने इन तालाबों पर कब्जा ही कर लिया।एक सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि गर्मी आते ही इस क्षेत्र की तस्वीर और तकदीर बदलने के नारे हर तरफ से सुनाई देने लगते हैं।

स्थानीय लोगों को लगता है कि वाकई में अब उनकी पानी की समस्या खत्म हो जाएगी, मगर एक गर्मी के बाद दूसरी गर्मी आते ही वे फिर उसी हाल में अपने को खड़ा पाते हैं। पानी का संकट कुछ लोगों के दौलत कमाने का जरिया बन चुका है और उनकी भूमिका ठीक उस जादूगर और मदारी जैसी होती है जो डमरु बजाएगा, लोगों को अपने जाल में फंसाएगा, लोग ताली बजाएंगे और वह आगे चला जाएगा।

तभी तो हजारों करोड़ खर्च होने के बाद भी यहां की पानी की समस्या खत्म नहीं हो पाई है।गर्मी का मौसम आया है और इस क्षेत्र में फिर पानी के संकट को लेकर तरह-तरह के अभियान चलाए जाने की योजनाएं बनने लगी हैं।

तालाबों के सुधार, गहरीकरण, सौंदर्यीकरण आदि पर जोर दिया जाएगा। बीते सालों में तालाबों पर किसने और कितना काम किया, इससे सभी आंखें मूंदे हुए हैं।पिछले अनुभव बताते है कि चाहे उत्तर प्रदेश हो या मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड सब तरफ सरकारी मद और अन्य रास्तों से आई रकम से बड़ी संख्या में तालाबों का निर्माण किया गया है।

तालाब बचाओ, पानी बचाओ अभियान भी चले, इतना ही नहीं तालाबों का सुधार और सौंदर्यीकरण भी हुआ, परंतु पानी सिर्फ बारिश और ठंड के मौसम में रहा। मार्च के बाद अधिकांश तालाब मैदानों में बदलते नजर आने लगेंगे।

Check Also

आरबीआई ने सभी क्रेडिट सूचना कंपनियों को दिया एक आंतरिक लोकपाल नियुक्त करने का निर्देश

आरबीआई ने सभी क्रेडिट सूचना कंपनियों को 1 अप्रैल, 2023 तक एक आंतरिक लोकपाल नियुक्त करने …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *