उत्तर प्रदेश विधान परिषद की 13 सीटों पर हुए मतदान में जबर्दस्त क्रास वोटिंग हुई. बसपा सबसे फायदे में रहीं जबकि भाजपा अपने दूसरे प्रत्याशी को जितवाने में विफल रही.राज्यसभा के द्ववार्षिक चुनावों के लिए होने वाले मतदान से ऐन एक दिन पहले परिषद के नतीजों ने राजनीतिक हलके में यह साफ संदेश दिया कि प्रमुख दल अपने विधायकों को एकजुट रखने में विफल रहे.
सत्ताधारी सपा के आठ, बसपा के तीन और कांग्रेस के एक उम्मीदवार ने जीत दर्ज की. भाजपा ने दो उम्मीदवार उतारे थे लेकिन उसके दूसरे प्रत्याशी दयाशंकर सिंह के लिए 17 अतिरिक्त वोट पार्टी नहीं जुटा पायी.परिषद की 13 सीटों के लिए हुए चुनाव में 14 प्रत्याशी मैदान में थे. ऐसे में क्रास वोटिंग की आशंका बलवती थी. छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों का महत्व यकायक बढ गया था.
परिषद में जीत के लिए हर प्रत्याशी को प्रथम वरीयता के 29 मतों की आवश्यकता थी. 80 विधायकों वाली बसपा ने तीन उम्मीदवार खडे किये थे. तीसरे उम्मीदवार की जीत के लिए सात अतिरिक्त वोट चाहिए थे जो बसपा ने जुटा लिये.विधानसभा के 403 सदस्यों में से सपा के 229, बसपा के 80, भाजपा के 41, कांग्रेस के 29 विधायक हैं. शेष विधायक छोटे दलों के या निर्दलीय हैं. कांग्रेस ने एक प्रत्याशी उतारा था और वह जीत गया.
परिषद के लिए सपा की ओर से यशवंत सिंह, बुक्कल नवाब, राम सुंदर दास निषाद, बलराम यादव, जगजीवन प्रसाद, शतरूद्र प्रकाश, कमलेश पाठक और रणविजय सिंह, बसपा की ओर से अतर सिंह राव, दिनेश चंद्र और सुरेश कश्यप, भाजपा के भूपेन्द्र चौधरी और कांग्रेस के दीपक सिंह विजयी रहे.
आठ सदस्यीय रालोद की तरफ से कांग्रेस को चार वोटों के समर्थन के बावजूद 29 सदस्यीय कांग्रेस के प्रत्याशी को प्रथम वरीयता के 26 मत मिले जबकि 41 सदस्यीय भाजपा का पहला प्रत्याशी प्रथम वरीयता के मतों से ही जीत गया और इसके दूसरे उम्मीदवार को 23 वोट मिले.