यूपी में भारतीय जनता पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह पर दांव लगा सकती है.यूपी में मिशन 2017 को पाने के लिए बीजेपी के पास कोई चेहरा नहीं है. इसलिए ये चर्चा शुरू हो गई है कि यदि बीजेपी सरकार बनाने की स्थिति में आती है तो उसका सीएम कौन होगा? बीजेपी को ऐसे चेहरे की तलाश है जिसे स्थानीय मुद्दों व जातीय समीकरणों का फायदा मिले.
बीजेपी सूत्रों की मानें तो इस पर फैसला तकरीबन हो गया है कि कल्याण सिंह यूपी में सीएम के रूप पेश किया जाए. इस बाबत अभी तक कल्याण सिंह सहमति नहीं ली गई है.वर्तमान परिस्थितियों में सीएम चेहरे को लेकर प्रदेश बीजेपी दो भागों में बंट गई है. एक गुट का कहना है कि बिहार में मत प्रतिशत बढ़ने के बाद भी इसलिए हार गए क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान हमारे पास सीएम चेहरा नहीं था.
वहीं, दूसरे गुट का कहना है कि पार्टी ने दिल्ली के चुनाव में सीएम के चेहरे के रूप में किरन बेदी को प्रस्तुत किया उसके बावजूद हार का सामना करना पड़ा. वहीं पार्टी के कुछ लोगों का ये भी कहना है कि असम में जीत सर्वानंद सोनोवाल की छवि, स्थानीय मुद्दों व जातीय समीकरणों के कारण हुई.पार्टी मुख्यालय पर इस समय वर्तमान कमेटी के आधे पदाधिकारियों की छुट्टी होने के साथ ही नए और युवा चेहरों को मौका देने की चर्चा जोरों पर है.
इस बीच बीजेपी सरकार एक ओर देश भर के राज्यपालों को बदलने जा रही है. दूसरी ओर उसके सामने मिशन 2017 में विजय हासिल करने के लिए एक ऐसे चहरे की तलाश थी जो आसानी से मतदाताओं को खींच सके.गौरतलब है कि अयोध्या विध्वंश में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
कल्याण सिंह को यूपी के चुनावी दंगल में उतारकर पार्टी न सिर्फ उनकी हिंदूवादी छवि को भुनाना चाहती है बल्कि पिछड़ी जाति के वोटों को अपनी ओर करने की भी योजना बना रही है.कल्याण सिंह 1991 में पहली बार यूपी के मुख्यमंत्री बने. उन्होंने दो बार यूपी की कमान संभालते हुए यूपी में बीजेपी की नींव को मजबूत की. 1997 में वह दोबारा मुख्यमंत्री बने थे लेकिन इसके बाद उन्होंने बीजेपी का दामन छोड़ दिया था.