कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसले में जैन समाज की संथारा प्रथा पर रोक लगा दी। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुनील अम्बवानी की खंडपीठ ने इसे आत्महत्या के बराबर माना है और संथारा करने वालों पर आत्महत्या व इसके लिए प्रेरित करने वालों पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि देश में धार्मिक स्वतंत्रता है, लेकिन इस तरह किसी को देह त्यागने की इजाजत नहीं दी जा सकती। बचाव पक्ष ने ऐसे कोई प्रमाण पेश नहीं किए हैं, जिससे इसका धार्मिक ग्रंथों में कोई उल्लेख मिलता हो।
ऐसे में इसे कानूनी नहीं माना जा सकता। यह याचिका 2006 से लंबित थी और इस पर सुनवाई पहले ही पूरी हो चुकी थी। सोमवार को सिर्फ फैसला सुनाया गया। वर्ष 2006 से पहले जयपुर के मालवीय नगर में एक बुजुर्ग महिला द्वारा संथारा लिए जाने और उसकी मृत्यु के बाद यह याचिका लगाई गई थी।निखिल सोनी की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि यदि सती प्रथा आत्महत्या की श्रेणी में आती है तो संथारा को आत्महत्या क्यों नहीं माना जा सकता।
जबकि बचाव पक्ष का कहना था कि यह एक धार्मिक प्रथा है और यह व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर है। इसमें उस पर किसी तरह का दबाव नहीं डाला जाता।संथारा जैन समाज की वह प्रथा है, जिसमें मरणासन्न व्यक्ति अन्न-जल त्याग देता है और मृत्यु होने तक मौन व्रत रख लेता है। जैन साधु और साध्वियों में यह प्रथा बहुत प्रचलित है और कई गृहस्थ भी संथारा लेते हैं। इसे संल्लेखना भी कहा जाता है।