नरेंद्र मोदी और प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में प्रेसिडेंट प्रणब मुखर्जी ए स्टेट्समैन बुक को लॉन्च किया। इस मौके पर मोदी ने कहा- मैं ये कह सकता हूं कि दिल्ली आया तो प्रणब दा की अंगुली पकड़कर आगे बढ़ने में मुझे काफी मदद मिली। पिछले तीन साल में राष्ट्रपतिजी से मेरी एक भी मुलाकात ऐसी नहीं रही, जिसमें उन्होंने पिता की तरह समझाया या गाइड न किया हो।
वे मेरे बिजी शेड्यूल पर कहते थे कि देखो मोदीजी आधा दिन तो आराम करना ही पड़ेगा। भाई इतना क्यों दौड़ रहे हो, कुछ कार्यक्रम कम करो। तुम अपनी तबीयत को संभालो। बता दें कि प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है। मोदी ने आगे कहा-हमने सामान्य से दिखने वाले राष्ट्रपति देखे हैं, लेकिन जब फोटोज के रूप में एक किताब छपती है, तो हमें पता चलता है कि देश के राष्ट्रपति (प्रणब मुखर्जी) एक बालक की तरह हंसते हैं।
चाहे किसी देश का बड़े से बड़ा राष्ट्रप्रमुख ही क्यों ना आए। उस फोटो को देखकर पता चलता है कि हमारे राष्ट्रपति का आत्मविश्वास कितना मजबूत है।हमें गर्व होता है। राष्ट्रपति के अंदर भी एक इंसान होता है। ये चीजें कैमरा से पता चलती हैं। जब महात्मा गांधी थे, तब शायद इतने कैमरा नहीं थे, लेकिन गांधी की दो तस्वीरें हैं। एक में वे झाड़ू लेकर सफाई कर रहे हैं और दूसरी में माइक्रोस्कोप से तारे देख रहे हैं।
इनसे गांधीजी के व्यक्तित्व को समझने में मदद मिलती है।बता दें कि प्रेसिडेंट प्रणब मुखर्जी ए स्टेट्समैन बुक में राष्ट्रपति की कई फोटोज शामिल हैं।मोदी ने कहा-ये बुक प्रणब दा को जानने के लिए, उनके निकट जाने के लिए, कभी-कभी तो लगता है उनके भीतर जाने के लिए एक अवसर दे रही है। मेरा सौभाग्य रहा है कि आदरणीय राष्ट्रपतिजी के साथ काम करने का अवसर मिला।
मैं जब भी अपने जीवन में देखता हूं तो एक अवसर आपातकाल में आया था। जब मैं राजनीतिक जीवन में नहीं था। सामाजिक जीवन से जुड़ा था। उस वक्त अलग-अलग विचार के लोगों के बीच काम करने का मौका मिला। तब मैं छोटा था, उस वक्त अलग-अलग लोगों से मिलने में मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।मैं गुजरात विद्यापीठ के वाइस चांसलर धीरूभाई देसाई के घर जाता था।
उनसे मिलता था। वे पक्के गांधीवादी थे। रवींद्र वर्मा, जार्ज फर्नांडिस जैसे लोगों से सीखने को मिला। जब सीएम बना तो बड़े गर्व से कहना चाहता हूं कि कांग्रेस के दिग्गज नेता नवल किशोर शर्मा से बहुत कुछ सीखने का मौका मिला।ये वक्त मेरे जीवन में बड़े बदलाव का था। मैं मानता हूं कि मेरे जीवन का यह सौभाग्य रहा कि मुझे प्रणब दा की अंगुली पकड़ के दिल्ली की जिंदगी में अपने आपको सेट करने में बहुत बड़ी मदद मिली। उनका बहुत बड़ा सपोर्ट रहा।
मैं एक ऐसा इंसान हूं कि मुझे काम जल्दी पूरा करने की इच्छा रहती है। एक बार मैंने किसी अखबार में (आप लोग इन्हें लीक कर ही लेते हैं) पढ़ा कि मैं अफसरों की मीटिंग ले रहा था। जब रात के 9 बजे और मीटिंग खत्म हुई। मैंने अफसरों से पूछा- अरे ये कैसे हुआ इतने जल्दी मीटिंग खत्म हो गई। कहने का मतलब ऐसी बिजी जिंदगी में पिछले तीन साल में मैं कई बार राष्ट्रपति जी से मिला।
मोदी ने कहा- पिछले तीन साल में राष्ट्रपति जी से मेरी एक भी मुलाकात ऐसी नहीं रही। जिसमें उन्होंने पिता की तरह और मैं बहुत अंतर्मन से ये कह रहा हूं.( यह कहते कहते मोदी भावुक हो गए) .कि जैसे कोई पिता अपनी संतान की देखभाल करता है। वैसे प्रणब दा कहते थे। देखो मोदीजी आधा दिन तो आराम करना ही पड़ेगा। भाई इतना क्यों दौड़ रहे हो, कुछ कार्यक्रम कम करो। तुम अपनी तबीयत को संभालो।
तब यूपी में चुनाव के दिन थे। कहते कि भाई जीत और हार तो चलती रहेगी, लेकिन कुछ शरीर की ओर भी देखोगे या नहीं? ये एक राष्ट्रपति के दायित्व का हिस्सा नहीं था, लेकिन उनके भीतर का एक इंसान ही है कि उन्हें अपने एक साथी की चिंता रहती है। प्रणब दा का ये काम हम सबके लिए प्रेरणा हो सकता है। मैं उनका आदरपूर्वक नमन करता हूं।