इंडियन नेवी की सेलबोट INSV तारिणी केपटाउन पहुंची। तारिणी सागर परिक्रमा पर निकली दुनिया की पहली ऐसी सेलबोट है, जिसकी सभी 6 क्रू-मेंबर महिलाएं हैं। तारिणी 10 सितंबर 2017 को पणजी से रवाना हुई थी। यह ऑस्ट्रेलिया के फ्रेमन्टल, न्यूजीलैंड के लिटलेटन और फॉकलैंड्स के पोर्ट स्टेनले होते हुए केपटाउन पहुंची। केपटाउन से इसी महीने सेलबोट भारत लौट आएगी।
INSV तारिणी दुनिया के कई सागरों को पार करते हुए 6 महीने बाद भारत लौटेगी। तारिणी पांच फेज में सागर परिक्रमा पूरी करेगी। सफर के दौरान राशन और मरम्मत के लिए तारिणी केपटाउन से पहले फ्रेमन्टल, लिटलेटन, पोर्ट स्टेनले में रुकी थी।तारिणी की कमान लेफ्टिनेट कमांडर वर्तिका जोशी के हाथों में है।
टीम में लेफ्टिनेंट कमांडर प्रतिभा जामवाल, पी. स्वाति, लेफ्टिनेंट एस. विजया देवी, बी. एेश्वर्या और पायल गुप्ता शामिल हैं।अब तक के सफर में सबसे मुश्किल सदर्न चिली के पास होर्नोस आइलैंड पर मौजूद केप हॉर्न पार करना रहा। केप हॉर्न पर ही अटलांटिक और पैसिफिक ओशन मिलते हैं। केप हॉर्न में तेज हवाएं, तेज बहाव और आइसबर्ग की वजह से इसे शिप्स का कब्रिस्तान कहा जाता है।
1914 में पनामा कैनाल खुलने के बाद केप हॉर्न के आसपास से शिप्स ले जाना कम कर दिया। तारिणी ने जनवरी में केप हॉर्न को पार किया था।केप हॉर्न को पार करने पर नरेंद्र मोदी ने क्रू मेंबर्स को बधाई दी थी। उन्होंने ट्वीट किया था, “अद्भुत खबर! खुशी हुई की INSV तारिणी ने केप हॉर्न का चक्कर पूरा कर लिया है। हम उनकी उपलब्धियों पर गर्व करते हैं।”
महादेई के बाद तारिणी नेवी की दूसरी सेलबोट है। इसे गोवा के एक्वेरियस शिपयार्ड लिमिटेड में तैयार किया गया। तारिणी को बनाने में फाइबर ग्लास, एल्युमिनियम और स्टील को इस्तेमाल किया गया।तारिणी में छह पाल लगे हैं, जो मुश्किल से मुश्किल हालात में भी सफर तय करने की ताकत दे रहे हैं। सेलबोट में लगे लेटेस्ट सेटेलाइट सिस्टम के जरिए क्रू से दुनिया के किसी भी हिस्से में संपर्क किया जा सकता है।
तारिणी के सारे ट्रायल 30 जनवरी 2018 को पूरे हुए थे। इसकी तकनीक विकसित करने में महादेई चलाने का अनुभव खासा काम आया है। मार्च 2016 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने तारिणी के निर्माण का आगाज किया था।सेलबोट का नाम ओडिशा में मशहूर तारा-तारिणी मंदिर के नाम पर रखा गया। संस्कृत में तारिणी का मतलब नौका के अलावा पार लगाने वाला है।