भारतीय सेना को अमेरिका के बीएई सिस्टम से मिली दो 155 एमएम/39 कैलिबर अल्ट्रा लाइट हॉविटजर्स (यूएलएच) तोपों का राजस्थान के पोखरण स्थित फायरिंग रेंज में परीक्षण किया जाएगा। करीब तीन दशक पहले भारत द्वारा स्वीडेन की कंपनी से खरीदी गयी बोफोर्स तोपों ने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया था। बोफोर्स तोपों की खरीद में दलाली लेने का आरोप लगा था।
एम-777 हॉविटजर्स तोपों के खरीद को लेकर अमेरिका से साल 2010 में बातचीत शुरू हुई थी। 26 जून 2016 को नरेंद्र मोदी सरकार ने 145 तोपों की खरीद की घोषणा की। फॉरेन मिलिट्री सेल्स (एफएमएस) के तहत सरकार से सरकार के बीच हुए 2900 करोड़ रुपये के इस सौदे पर नवंबर 2016 में अंतिम मुहर लगी। 1980 के दशक में स्वीडिश कंपनी से खरीदी गयीं बोफोर्स तोपों के बाद भारतीय सेना में कोई नई तोप नहीं शामिल की गयी थी।
बोफोर्स तोपों में दलाली के आरोप से आये राजनीतिक तूफान की वजह से सेना के तोपखाने से जुड़े तमाम सौदों पर एक तरह से रोक लग गयी थी जिसके कारण भारतीय सेना का तोपखाना अत्याधुनिक तोपों से महरूम था। भारतीय सेना साल 2020 तक 169 रेजिमेंट में 3503 तोपों को शामिल करना चाहती है। इन तोपों में भारत में निर्मित अत्याधुनिक तोपों भी शामिल होंगी। हालांकि भारतीय तोपों का निर्माण कार्य तय मियाद से पीछे चल रहा है।
जिन दो एम777 हॉविटजर्स तोपों का पोखरण में परीक्षण होगा उनसे विभिन्न प्रकार के आयुधों का इस्तेमाल करके देखा जाएगा। इन तोपों को भारतीय वातावरण में भारतीय आयुधों को दागने लायक बनाया गया है। अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की सेनाएं पहले ही एम777 हॉविटजर्स तोपों का प्रयोग कर रही हैं। इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में ये तोपों तैनात हैं।
इन दो एम777 हॉविटजर्स तोपों के बाद सितंबर 2018 में भारतीय सेना को तीन और एम777 हॉविटजर्स तोपों मिलेंगी। उसके बाद मार्च 2019 से लेकर जून 2021 तक हर महीने पांच नई एम777 हॉविटजर्स तोपें भारतीय सेना को मिलेंगी। सेना के सात तोपखानों को सेवा देने वाली ये तोपें 24 किलोमीटर से लेकर 40 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम होंगी। तोपों की मारक क्षमता इस बात पर निर्भर होगी कि उनमें कैसा आयुध प्रयोग किया जा रहा है।
25 एम-777 हॉविटजर्स तोपों को सीधे भारती सेना में शामिल कर लिया जाएगा। वहीं 145 में से 120 तोपों को भारत में महिंद्रा डिफेंस द्वारा असेंबल किया जाएगा। एम-777 हॉविटजर्स तोपों का आधुनिक डिजाइन उन्हें संकरे और पहाड़ी रास्तों पर ले जाने लायक बनाता है। पाकिस्तान और चीन से लगी भारतीय सीमा के भौगोलिक परिस्थितियों के देखते हुए ये तोपें काफी उपयोगी होंगी।