फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे पर कांग्रेस लगातार केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश में है। उसका कहना है कि यह डील महंगी है और इसमें घोटाला हुआ है। वहीं, मोदी सरकार का दावा है कि यह डील महंगी नहीं है। इसकी लागत में राफेल में तैनात होने वाली मिसाइलों की कीमत भी शामिल है।
सितंबर 2016 में भारत-फ्रांस के बीच 36 राफेल लड़ाकू विमानों के लिए डील हुई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह सौदा 7.8 करोड़ यूरो (करीब 58,000 करोड़ रुपए) में फाइनल हुआ। ऐसे में माना जा रहा है कि भारत को यह विमान सस्ता पड़ रहा है।
वहीं, फ्रांस का दावा है कि बाकी देशों के साथ पहले हुई डील के मुकाबले इस सौदे में हमने भारत को 25% की छूट दी है।रक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि फ्रांस ने 2015 में मिस्र को 24 राफेल बेचे थे। यह सौदा 5.9 अरब डॉलर में हुआ था। इसके बाद 2018 में कतर ने मय मिसाइल के 24 राफेल विमान खरीदे।
इसके लिए 7 अरब डॉलर में डील हुई। ब्राजील, लीबिया, मोरक्को और स्विट्जरलैंड भी फ्रांस से राफेल खरीद चुके हैं।राफेल से जुड़े करार की शर्तों को गोपनीय रखा गया है। ऐसे में फ्रांस और भारत दोनों ही विमान की सही कीमत नहीं बता रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि सितंबर 2019 में पहला राफेल भारत पहुंचेगा।
भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ाने के लिए राफेल को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।एनडीए सरकार का दावा है कि यूपीए सरकार के दौरान सिर्फ विमान खरीदना तय हुआ था। उस डील के मसौदे में स्पेयर पार्ट्स, हैंगर्स, ट्रेनिंग सिम्युलेटर्स, मिसाइल या हथियार खरीदने का कोई प्रावधान शामिल नहीं था।
फाइटर जेट का मेंटेनेंस काफी महंगा होता है। इसके स्पेयर पार्ट्स महीनों बाद मिल पाते हैं, जिसकी प्रक्रिया काफी लंबी होती है। दावा है कि यूपीए सरकार की डील में पायलट ट्रेनिंग के लिए अलग से सिम्युलेटर मिलने, उसके रखरखाव और मेंटेनेंस की जिम्मेदारी पर बात नहीं हुई थी।
मोदी सरकार ने राफेल की जो डील तय की है, उसमें राफेल के साथ मेटिओर और स्कैल्प मिसाइलें भी मिलेंगी। मेटिओर 100 किलोमीटर, जबकि स्कैल्प 300 किलोमीटर तक सटीक निशाना साध सकती हैं। इनमें ऑन बोर्ड ऑक्सीजन रिफ्यूलिंग सिस्टम भी लगा है।
सरकार का दावा है कि राफेल बनाने वाली ‘दसॉल्त’ कंपनी इसे भारत की भौगोलिक परिस्थितियों और जरूरतों के हिसाब से डिजाइन करेगी। इसमें लेह-लद्दाख और सियाचिन जैसे दुर्गम इलाकों में भी इस्तेमाल करने लायक खास पुर्जे लगाए जाएंगे। कांग्रेस इन दावों को झूठा करार देती है।
भाजपा का दावा है कि 2003 में वाजपेयी सरकार ने राफेल को खरीदने के लिए मंजूरी दी थी। 2004 से 2012 तक यूपीए सरकार ने राफेल को लेकर फ्रांस की दो पार्टियों से बात भी की, फिर इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। 2016 में मोदी सरकार ने यह डील फाइनल की।