झारखंड में 67 % बच्चे और 65 % महिलाएं हैं एनीमिया का शिकार : सर्वे

झारखंड में आयरन के सबसे बड़े भंडार हैं, लेकिन हैरत की बात यह कि मुख्यत: ‘आयरन’ की कमी के चलते होनेवाली बीमारी एनीमिया ने यहां बड़ी आबादी को अपनी गिरफ्त में ले रखा है। एनएफएचएस (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे)-5 के हाल में आये नतीजे बताते हैं कि झारखंड में छह महीने से लेकर 59 महीने (यानी पांच वर्ष से कम) तक की आयुवर्ग के 67 प्रतिशत बच्चे एनीमिया के शिकार हैं।

राज्य की 65.3 प्रतिशत महिलाएं और 30 प्रतिशत पुरुष भी खून की कमी वाली इस बीमारी की चपेट में हैं।हालांकि एनएफएचएस-5 की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार बीते पांच वर्षों में एनीमिया पीड़ित बच्चों के प्रतिशत में तीन प्रतिशत की कमी आयी है। वर्ष 2015-16 में एनएफएचएस-4 सर्वे में 70 प्रतिशत बच्चे एनीमिक पाये गये थे, जबकि ताजा सर्वे में 67 प्रतिशत बच्चों में यह शिकायत पायी गयी।

रिपोर्ट में बताया गया है कि 20 से 29 वर्ष की महिलाओं में एनीमिया की शिकायत सबसे ज्यादा है। ग्रामीण और आदिवासी बहुल इलाकों में ऐसी महिलाओं की तादाद सबसे ज्यादा पायी गयी है। एनएफएचएस-4 में राज्य में एनीमिया पीड़ित महिलाओं की तादाद 65.2 फीसदी थी, जो ताजा सर्वे यानी एनएफएचएस-5 में यह आंकड़ा 65.3 फीसदी है। 15 से 19 साल की किशोरियोंमें भी एनीमिया का असर पांच वर्षों में कम नहीं हुआ।

एनएफएचएस-4 में इस आयु वर्ग की 65 प्रतिशत किशोरियां एनीमिक थीं।एनएफएचएस-5 में यह आंकड़ा 65.8 प्रतिशत पर पहुंच गया है।इन दो सर्वे यानी पांच सालों के अंतराल में, एनीमिया के मामले में जिन जिलों की स्थिति सबसे खराब आंकी गयी, उनमें देवघर सबसे ऊपर है। यहां एनीमिक महिलाओं का प्रतिशत 55.3 से बढ़कर 70.1 पहुंच गया।

इसी तरह दुमका में यह प्रतिशत दुमका 63.7 से बढ़कर 73.4, गढ़वा में 60.1 से बढ़कर 62.7 और साहिबगंज में 51.2 से बढ़कर 63.6 हो गया। रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के 24 में से 10 जिलों में एनीमिया के मामले बढ़ गये। राज्य के आदिवासी बहुल कोल्हान और संताल परगना प्रमंडल में सबसे ज्यादा खराब स्थिति है। महिलाओं के एनीमिक होने का असर अन्य स्वास्थ्य सूचकांकों में भी दिखता है।

प्रसव के दौरान मृत्यु, कुपोषण, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की स्थिति में गिरावट जैसे परिणाम साफ दिखते हैं।एनएफएचएस के इन नतीजों की तस्दीक राज्य के अस्पतालों के आंकड़ों से भी जा सकती है। मसलन अप्रैल 2022 में जमशेदपुर स्थित महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में मेडिसिन में 6032 मरीज आये थे।

इनमें सबसे ज्यादा 912 मरीज टीबी के और 908 मरीज एनीमिया के थे।आंकड़े के मुताबिक राज्य में 38 प्रतिशत महिलाएं और 32 प्रतिशत पुरुष बॉडी मास इंडेक्स के हिसाब से या तो अत्यंत दुबले हैं या अत्यधिक वजन वाले हैं। इसी तरह पांच साल से कम उम्र के 40 प्रतिशत बच्चे या तो कुपोषित हैं या अपनी उम्र के हिसाब से बेहद ठिगने (कम ऊंचाई वाले) हैं।

इसी तरह 22 प्रतिशत बच्चे अपने कद के हिसाब से बेहद पतले हैं। राज्य के पांच वर्ष से कम आयु के 45 फीसदी बच्चों में ठिगनापन पाया गया, जबकि 43 फीसदे बच्चों में विटामिन ए की कमी पायी गयी। रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण और आदिवासी बहुल इलाकों में 15 से 19 वर्ष आयु वर्ग की किशोरियों में भी कुपोषण की गंभीर समस्याएं हैं।

रांची स्थित सीसीएल हॉस्पिटल के डॉ जितेंद्र कुमार बताते हैं कि एनीमिया मुख्य तौर पर शरीर में आयरन की कमी की वजह से होता है। लेकिन इसकी अन्य वजहें भी हो सकती हैं। मसलन लगातार खून बहने की वजह से, फोलिक एसिड, प्रोटीन, विटामिन सी और बी 12 की कमी से भी ऐसा हो सकता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि झारखंड के शिशुओं में कुपोषण की सबसे बड़ी वजहउन्हें पूरक आहार नहीं मिलना है। जन्म के छह महीने की आयु पूरी करने पर यह बच्चों को मिलना चाहिए, लेकिन राज्य में केवल सात प्रतिशत बच्चों को यानी 10 में सिर्फ एक बच्चे को ही आयु के अनुपात में समुचित आहार मिल पाता है।

राज्य में कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ राज्य सरकार ने पिछले साल से एक हजार दिनों का महाअभियान शुरू किया था। झारखंड सरकार का कहना है कि केंद्र से मिलने वाली मदद में कटौती के चलते इस अभियान में बाधा आ रही है। केंद्र प्रायोजित समेकित बाल विकास योजना (आइसीडीएस) के तहत झारखंड में बहाल 10,388 पोषण सखियों की सेवा बीते एक अप्रैल से समाप्त कर दी गई है।

केंद्र के निर्देश पर वर्ष 2015 में राज्य के छह जिले धनबाद, गिरिडीह, दुमका, गोड्डा, कोडरमा और चतरा में अतिरिक्त आंगनबाड़ी सेविका सह पोषण परामर्शी के रूप में इन पोषण सखियों की नियुक्ति हुई थी। इन्हें प्रतिमाह तीन हजार रुपये मानदेय दिए जा रहे थे। राज्य की महिला कल्याण एवं बाल विकास मंत्री जोबा मांझी का कहना है कि केंद्र ने वर्ष 2017 से इस मद में मानदेय की राशि देनी बंद कर दी है।

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