केंद्र सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में 16 पन्नों का हलफनामा दाखिल किया। इसमें सरकार ने कहा है कि रोहिंग्या मुसलमानों के पाकिस्तानी आतंकियों से रिश्ते हैं। ये भी कहा गया है कि ये इलीगल इमीग्रेंट्स हैं। इनके यहां रहने से देश की सिक्युरिटी पर गंभीर नतीजे हो सकते हैं।
कोर्ट 3 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई करेगा। सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें पेश कीं। इस बीच, राजनाथ सिंह ने कहा है कि जो भी फैसला होगा वो कोर्ट के मुताबिक होगा। हमें फैसले का इंतजार करना चाहिए।केंद्र में अपने एफिडेविट में कहा है कि रोहिंग्या मुस्लिम म्यांमार से भारत में गैरकानूनी तौर पर घुसे हैं।
लिहाजा, वो इलीगल इमिग्रेंट्स हैं।सरकार का कहना है कि रोहिंग्या मुसलमानों का यहां रहना देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरे पैदा कर सकता है। इनके पाकिस्तान में मौजूद आतंकी गुटों से रिश्ते हैं।हलफनामे के मुताबिक- फंडामेंटल राइट्स सिर्फ देश के नागरिकों के लिए होते हैं, ताकि वो भारत में जहां चाहें सेटल हो सकें।
इलीगल रिफ्यूजी सुप्रीम कोर्ट के सामने जाकर इन अधिकारों को पाने का दावा नहीं कर सकते।हलफनामे में सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों से पैदा होने वाले खतरों पर ज्यादा तफसील से कुछ नहीं बताया है। तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वो नेशनल सिक्युरिटी को होने वाले खतरों के बारे में एक सीलबंद लिफाफे में तमाम जानकारी देंगे।
हलफनामे में कहा गया है कि भारत स्टेटस ऑफ रिफ्यूजी कन्वेंशन (1951 और 1967) का हिस्सा नहीं है। ना ही इस पर भारत ने दस्तखत किए हैं। लिहाजा, इससे जुड़े कानून या शर्तें भी मानने के लिए भारत मजबूर नहीं है।इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने की। बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एएम. खानविलकर और जस्टिस डीवाय. चंद्रचूढ़ भी थे।
बेंच ने इस मामले के पिटीशनर नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (NHRC) को नोटिस जारी नहीं किया। जबकि 18 अगस्त को NHRC ने केंद्र को इस मामले में सबसे पहले नोटिस जारी किया था।म्यांमार से भारत में घुसे रोहिंग्या मुसलमानों की सबसे ज्यादा तादाद जम्मू में है। इसके अलावा ये हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान में भी हैं।