रेमडेसिविर इंजेक्शन की जमाखोरी और काला बाजारी रोकने में जुटी आईबी, पुलिस और प्रमुख एजेंसियां

आईबी से लेकर विभिन्न राज्यों की पुलिस और सभी प्रमुख कानून प्रवर्तन एजेंसियां ऐसे आपराधिक गिरोहों एवं पैडलर्स का पीछा कर रही हैं, जो कोरोनावायरस के इलाज में काम आने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन की जमाखोरी और काला बाजारी में शामिल हैं।

ऐसे गिरोहों का पर्दाफाश करने के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विशेष दस्तों का गठन किया गया है, जबकि महाराष्ट्र और गुजरात में कई जिलों के पुलिस कमिश्नर इंजेक्शन की जमाखोरी और काला बाजारी रोकने के लिए चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी), कानून एवं व्यवस्था, प्रशांत कुमार ने कहा हमारी एसटीएफ टीमों और जिला पुलिस दस्तों ने राज्य में कई मॉड्यूलों का भंडाफोड़ किया है। रेमेडेसिविर और यहां तक कि मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडर की जमाखोरी के आरोपी 46 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।

ध्यान देने वाली बात है कि उत्तर प्रदेश में कथित तौर पर रेमडेसिविर इंजेक्शन की कमी से कई रोगियों की मृत्यु हुई है।इस इंजेक्शन की काला बाजारी से लोग भारी मार्जिन कमा रहे हैं। इसकी मूल कीमत से पांच गुना कीमत पर इसे अवैध तरीके से बेचा जा रहा है। इस गोरखधंधे में कई जगह तो स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कर्मचारी भी शामिल पाए गए हैं।

पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी ने कहा हमने एक प्रमुख मेडिकल कॉलेज में चल रहे रैकेट का खुलासा किया हैं, जहां वार्डबॉय ब्लैक मार्केट में रेमडेसिविर बेच रहे थे। मेडिकल स्टाफ ने मरीजों को डिस्टिल्ड वॉटर इंजेक्शन दिया और इसके बदले में बचे हुए असली रेमडेसिविर इंजेक्शन 25,000 रुपये की कीमत पर बेच दिए गए।

अन्य निजी अस्पतालों में भी मरीजों के तीमारदारों या अटेंडेंट की ओर से इसी तरह की शिकायतें आई हैं। इस तरह की दवाओं के स्थानीय वितरकों और स्टॉकिस्टों की भागीदारी पर एडीजी, उत्तर प्रदेश, प्रशांत कुमार ने कहा कि कुछ केमिस्ट की दुकानों या कुछ स्टॉकिस्टों के बीच सांठगांठ से इनकार नहीं किया जा सकता है।

एडीजी ने आईएएनएस से कहा, हम विशिष्ट इनपुट्स की पुष्टि कर रहे हैं, जहां इन इंजेक्शनों के वितरण से संबंधित स्टॉकिस्ट जमाखोरी में शामिल हैं। एक बार मामला दर्ज होने के बाद हम ऐसे दोषियों के खिलाफ एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) के तहत कार्रवाई करेंगे।

लगभग 3,400 से 5,400 रुपये की लागत वाले रेमडेसिविर के प्रत्येक इंजेक्शन को ब्लैक मार्केट में 30,000 रुपये से 40,000 रुपये में बेचा जा रहा है। नागपुर में इस जीवन रक्षक दवा की तीव्र कमी से कीमतों में तेजी देखी गई है।

काला बाजार में 45,000 रुपये प्रति शीशी की कीमत पर रेमडेसिविर बेचने के आरोप में पुलिस ने शनिवार को नागपुर के बेलतारोडी इलाके में पांच लोगों को गिरफ्तार किया था।जाहिर तौर पर इस गोरखधंधे में शामिल लोग कई जगह तो इंजेक्शन के वास्तविक एमआरपी से दस गुना अधिक लाभ कमा रहे हैं।

सीबीआई के पूर्व संयुक्त निदेशक और सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक रजनीकांत मिश्रा ने कहा जिस तरह से इस प्रभावयुक्त दवा की आपूर्ति और मांग के बीच अचानक खाई चौड़ी हो गई है, वितरकों, स्टॉकिस्टों और बड़े खुदरा विक्रेताओं के शेयरों का तत्काल ऑडिट आवश्यक है।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकारी एजेंसियों को हर कीमत पर इस दवा से जुड़े अवैध धंधे से पर्दा उठाना होगा।मध्य प्रदेश के उज्जैन में इसी तरह की एक और चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां रेमेडेसिविर की कथित रूप से चोरी करने और ब्लैक-मार्केटिंग के आरोप में रविवार को तीन अस्पताल के कर्मचारियों सहित आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया।

राज्य में दवा की बड़े पैमाने पर जमाखोरी को देखते हुए, डीजीपी विवेक जौहरी ने इंजेक्शन की काला बाजारी की जांच के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है।भारत में कोरोनावायरस की दूसरी लहर अपने चरम पर है और पिछले कई दिनों से रोजाना तीन लाख 50 हजार के आसपास नए कोरोना मामले सामने आ रहे हैं।

इस बीच रेमडेसिविर, जिसका उपयोग गंभीर कोविड पॉजिटिवि रोगियों के इलाज के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता था, की मांग काफी बढ़ी हुई है।हाल यह है कि मरीजों के परिजन या तीमारदार अब यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनकी उपस्थिति में ही रोगियों को यह इंजेक्शन दिया जाए।

एक बैंक अधिकारी आदिल रिजवी, जो लखनऊ के एक निजी अस्पताल में भर्ती एक बैचमेट की देखभाल कर रहे हैं, उन्होंने कहा, “मैंने चिकित्सा अधीक्षक से अनुरोध किया कि मेरे सामने रोगी को रेमडेसिविर दिया जाए। इंजेक्शन इतना महंगा है कि मैं सिर्फ वार्डबॉय पर भरोसा नहीं कर सकता।

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