दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध बढ़ रहे हैं और ऐसे अपराधों से कड़ाई से निपटना चाहिए तथा अपराधियों के साथ कोई नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। उच्च न्यायालय ने यौन अपराध के एक दोषी तंजील आलम की सजा तीन साल से बढ़ाकर सात साल सश्रम कारावास कर दी। तंजील को 15 वर्षीय एक किशोरी के साथ बलात्कार करने का दोषी ठहराया गया है। यह घटना मई 2011 में हुई थी।
न्यायमूर्ति जीएस सिस्तानी और न्यायमूर्ति संगीता धींगरा सहगल की एक पीठ ने कहा, ‘अगर ऐसे अपराध होते हैं तो इनसे कड़ाई से निपटा जाना चाहिए और कोई नरमी नहीं दिखानी चाहिए।’ अदालत ने कहा कि दोषी को भारतीय दंड संहिता के तहत दी जाने वाली सजा उसके अपराध की गंभीरता के अनुसार होनी चाहिए और समाज पर इसका असर होना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘वर्तमान मामले में अपराध के समय पीड़ित की उम्र 16 साल से भी कम थी और कानून में अपराध के लिए सजा न्यूनतम सात साल के सश्रम कारावास की है जिसे तब ही कम किया जा सकता है जब इसके लिए कोई विशेष और पर्याप्त कारण हों।’ पीठ ने कहा कि यह उचित नहीं है कि अपराध के समय पीड़ित की उम्र को देखते हुए दोषी को न्यूनतम सजा से कम दंड दिया जाए।
नवंबर 2015 में निचली अदालत ने आलम को पीड़ित का अपहरण करने और उससे बलात्कार करने का दोषी ठहराया था। तब वह उत्तर पूर्वी दिल्ली में सीलमपुर पुलिस थाने के पास अपने पिता से मिलने जा रही थी। अदालत ने आलम को तीन साल की सजा सुनाई थी। दोषी ने आरोपों को गलत बताते हुए दावा किया कि लड़की अपनी मर्जी से उसके साथ गई थी क्योंकि वह उससे प्यार करती थी और विवाह करना चाहती थी।