लांस नायक हनुमनथप्पा कोमा से बाहर नहीं आ सके। मल्टी ऑर्गन फेल्योर के बाद उन्हें गुरुवार दोपहर हार्ट अटैक आया और उन्हें बचाया नहीं जा सका। डिफेंस मिनिस्टर मनोहर पर्रिकर और तीनों सेनाओं के चीफ ने दिल्ली में हनुमनथप्पा को श्रद्धांजलि दी। कांग्रेस के वाइस प्रेसिडेंट राहुल गांधी ने भी श्रद्धांजलि दी। उनके पार्थिव शरीर को कर्नाटक ले जाया जा रहा है, जहां शुक्रवार को अंतिम संस्कार किया जाएगा।
हनुमनथप्पा को उनके करीबी फाइटर बताते हैं। एक ऐसा शख्स जिसकी आवाज कड़क लेकिन अंदाज मीठा था।वो जानबूझकर कठिन पोस्टिंग मांगते थे। जम्मू-कश्मीर में 2008 से 2010 के बीच रहे। इसके बाद वो दो साल तक वो नॉर्थ-ईस्ट में पोस्टेड रहे। 13 साल के आर्मी कॅरियर में वे 10 साल मुश्किल हालात में रहे। कठिन जगहों पर पोस्टिंग मांगी। 10 मद्रास रेजीमेंट से उनकी पोस्टिंग अगस्त में सियाचिन में हुई।हनुमनथप्पा की पत्नी का नाम महादेवी और दो साल की बेटी का नाम नेत्रा है।
हनुमनथप्पा का नाम भगवान हनुमान के नाम पर रखा गया था।कर्नाटक में स्कूल जाने के लिए वह रोज 6 किलोमीटर पैदल चलते थे। खास बात यह है कि हनुमनथप्पा आर्मी में ही जाना चाहते थे। लेकिन सिलेक्ट होने के पहले तीन बार वह रिजेक्ट कर दिए गए थे।वह अपने गांव के लड़कों से कहते थे कि देश सेवा के लिए आर्मी में जाना चाहिए।आर्मी के अपने साथियों से वह योग करने को कहते थे।
हनुमनथप्पा की मौत के बाद सेना की और से लेफ्टनेंट जनरल एसडी. दुसान ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा कि लांस नायक हार्ट रेट बहुत तेज था जबिक उनका ब्लड प्रेशर काफी लो था।दिमाग में ऑक्सीजन की कमी हो गई थी।तीन फरवरी को आए एवलांच में हनुमनथप्पा अपने नौ और साथियों के साथ करीब 35 फीट बर्फ में दब गए थे।आठ फरवरी को उन्हें बर्फ से निकाला गया था, उस समय उनकी हालत काफी खराब थी। उनके बाकी नौ साथियों के शव मिले थे।
छह दिन बाद भी उनके बर्फ से जिंदा निकलने को चमत्कार कहा गया।शुरुआती इलाज के बाद नौ फरवरी को दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।उनकी हालत लगातार बिगड़ रही थी और वे कोमा में थे।कल उनके ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी हो गई।डॉक्टरों ने बताया था कि उनके दोनों फेफडों में निमोनिया हो गया है। इसके अलावा उनके शरीर के कई अंग काम नहीं कर रहे।आज सुबह 11:45 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, ‘वो हमें दुखी छोड़कर चले गए। हनुमनथप्पा की आत्मा को शांति मिले। आपमें जो जवान था, वो कभी नहीं मरेगा। गर्व है कि आपके जैसे बहादुर ने देश की सेवा की।’ममता बनर्जी ने ट्वीट करके लांस नायक के निधन पर दुख जताया। उन्होंने ट्वीट किया, ‘बहादुर जवान ने देश लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। उन्हें और उनके साथियों को सलाम।’राहुल गांधी ने भी उनके निधन पर दुख जताया। राहुल ने कहा, ‘हनुमनथप्पा वीरता और साहस की मिसाल हैं।’
कई घंटों तक 35 फीट बर्फ हटाने के बाद हनुमनथप्पा तक रेस्क्यू टीम पहुंची थी।33 साल के हनुमनथप्पा 125 घंटे से वहां थे। बाद में उनकी बॉडी में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पा रही थी।वे बेहोशी की हालत में मिले। उनकी पल्स नहीं मिल रही थी।उनके शरीर का पानी सूख चुका था। डिहाइड्रेशन के अलावा ठंड से हाइपोथर्मिया हो गया था।जम्मू-कश्मीर से दिल्ली लाए जाने के बाद उन्हें आर्मी रेफरल हाॅस्पिटल में भर्ती कराया गया।उनका हालचाल जानने के लिए मंगलवार को मोदी भी अस्पताल पहुंचे।
3 फरवरी को सियाचिन आर्मी कैम्प के पास सुबह साढ़े आठ बजे के करीब एवलांच आया था। अपने बेस कैम्प से पैट्रोलिंग के लिए निकले एक जेसीओ समेत 10 जवानों का ग्रुप बर्फ के नीचे दब गया था।दरअसल, ग्लेशियर से 800 x 400 फीट का एक हिस्सा दरक जाने से एवलांच आया था।यह हिस्सा ढह जाने के बाद बर्फ के बड़े बोल्डर्स बड़े इलाके में फैल गए।इनमें से कई बोल्डर्स तो एक बड़े कमरे जितने थे।इसी के बाद शुरू हुआ दुनिया के सबसे ऊंचे बैटल फील्ड सियाचिन ग्लेशियर में 19500 फीट की ऊंचाई पर रेस्क्यू ऑपरेशन।
आर्मी की 19वीं मद्रास रेजिमेंट के 150 जवानों और लद्दाख स्काउट्स और सियाचिन बैटल स्कूल के जवानों को 19600 फीट की ऊंचाई पर रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए तैनात किया गया।इनके साथ दो स्निफर डॉग्स ‘डॉट’ और ‘मिशा’ भी थे।आर्मी के सामने चैलेंज यह था कि उसे 800 x 1000 मीटर के इलाके में इंच-दर-इंच सर्च करना था।यहां 35 फीट तक ब्लू आइस जम चुकी थी। यह क्रॉन्क्रीट से भी ज्यादा सख्त होती है।सियाचिन के बेहद मुश्किल मौसम को झेलने के लिए ट्रेन्ड जवानों ने चौबीसों घंटे सर्च जारी रखी।दिन में टेम्परेचर माइनस 30 डिग्री और रात में माइनस 55 डिग्री चला जाता था।
इसके बावजूद जवान और दोनों खोजी डॉग डॉट और मिशा ऑपरेशन में लगे रहे।आर्मी ने इतनी ऊंचाई पर पेनिट्रेशन रडार भेजे जो बर्फ के नीचे 20 मीटर की गहराई तक मेटैलिक ऑब्जेक्ट्स और हीट सिग्नेचर्स पहचान सकते हैं।एयरफोर्स और आर्मी एविएशन हेलिकॉप्टर के इस्तेमाल में लाए जाने वाले रेडियो सिग्नल डिटेक्टर्स भी भेजे गए। इनसे ऑपरेशन में मदद मिली।तेज हवाओं के चलते बार-बार रेस्क्यू ऑपरेशन में अड़चनें आईं। छठे दिन हनुमनथप्पा मिल गए। बाकी 9 जवानों के शव भी मिले।
दरअसल, एवलांच से पहले बेस कैम्प को रेडियो मैसेज मिला था। आर्मी का मानना है कि यह मैसेज हनुमनथप्पा ने ही किया होगा।इस मैसेज की लोकेशन ट्रेस करते हुए टीम एक जगह पर पहुंची।स्निफर डॉग्स उस लोकेशन पर आकर रुक गए, जहां हनुमनथप्पा फंसे हुए थे। हीट सिग्नेचर्स ट्रेस करने वाले पेनिट्रेशन रडार ने भी यही लोकेशन ट्रेस की।इसके बाद एक लोकेशन फाइनल कर सोमवार शाम 7.30 बजे बर्फ को ड्रिल करने का काम शुरू हुआ।लांस नायक को मंगलवार सुबह 9 बजे धरती में सबसे ऊंचाई पर मौजूद सेल्टोरो रिज हेलिपैड से रवाना किया गया। उन्हें सियाचिन बेस कैम्प लाया गया।
सोशल मीडिया पर सियाचिन रेस्क्यू ऑपरेशन का एक फर्जी वीडियो वायरल हुआ था। आर्मी ने अपने फेसबुक पेज पर भी यही बात कही थी।इस वीडियो में एक जवान को बर्फ से बाहर निकाला जा रहा है।दावा किया गया था कि ये लांस नायक हनुमनथप्पा हैं। लेकिन आर्मी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में वीडियो को पुराना बताया है।हिमालयन रेंज में मौजूद सियाचिन ग्लेशियर वर्ल्ड का सबसे ऊंचा बैटल फील्ड है।
1984 से लेकर अबतक करीब 900 जवान शहीद हो चुके हैं। इनमें से ज्यादातर की शहादत एवलांच और खराब मौसम के कारण ही हुई है। सियाचिन से चीन और पाकिस्तान दोनों पर नजर रखी जाती है। विंटर सीजन में यहां काफी एवलांच आते रहते हैं।सर्दियों के सीजन में यहां एवरेज 1000 सेंटीमीटर बर्फ गिरती है। मिनिमम टेम्परेचर माइनस 50 डिग्री (माइनस 140 डिग्री फॉरेनहाइट) तक हो जाता है।जवानों के शहीद होने की वजह ज्यादातर एवलांच, लैंड स्लाइड, ज्यादा ठंड के चलते टिश्यू ब्रेक, एल्टिट्यूड सिकनेस और पैट्रोलिंग के दौरान ज्यादा ठंड से हार्ट फेल हो जाने की वजह होती है।
सियाचिन में फॉरवर्ड पोस्ट पर एक जवान की तैनाती 30 दिन से ज्यादा नहीं होती।ऑक्सीजन का स्तर पर भी यहां कम रहता है। यहां टूथपेस्ट भी जम जाता है। सही ढंग से बोलने में भी काफी मुश्किलें आती हैं।सैनिकों को यहां हाइपोक्सिया और हाई एल्टिट्यूड पर होने वाली बीमारियां हो जाती हैं।वजन घटने लगता है। भूख नहीं लगती, नींद नहीं आने की बीमारी। मेमोरी लॉस का भी खतरा।
हर रोज आर्मी की तैनाती पर 7 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। यानी हर सेकंड 18 हजार रुपए।इतनी रकम में एक साल में 4000 सेकंडरी स्कूल बनाए जा सकते हैं।यदि एक रोटी 2 रुपए की है तो यह सियाचिन तक पहुंचते-पहुंचते 200 रुपए की हो जाती है।