वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज लोकसभा में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का तीसरा आम बजट पेश करेंगी।कोरोना महामारी के फैलाव को रोकने के लिए देश में लगाए गए लॉकडाउन के कारण माइनस में गई अर्थव्यवस्था को धक्का लगाने का प्रयास किया जाएगा। बाजार में मांग बढ़ाने के लिए आम आदमी के हाथ में कैश उपलब्ध कराने का प्रयास भी होगा।
संभावना है कि वित्त मंत्री करदाताओं के लिए मानक कटौती में बढ़ोतरी करें। बजट में गांव, गरीब और किसान पर फोकस रहेगा।
29 जनवरी को पेश किए गए आर्थिक सर्वे में देश की अर्थव्यवस्था की माली हालत को उजागर किया गया है।
अर्थव्यवस्था का आकलन है कि वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था का संकुचन 7.7 रहेगा, लेकिन उसमें यह भी उम्मीद जताई गई है कि वर्ष 2021-22 में अर्थव्यवस्था की रफ्तार दुनिया में सबसे तेजी से 11% की दर से बढ़ेगी। इस लिहाज से सरकार को बड़े पैमाने पर सार्वजनिक निवेश करना होगा और बाजार में मांग बढ़ानी होगी।
बजट में सरकार का फोकस यही होगा कि माइनस में चल रही अर्थव्यवस्था को पॉजिटिव कैसे किया जाए, क्योंकि कोरोना के हालात अभी ज्यादा नहीं सुधरे हैं। हाल ही में सांख्यिकी मंत्रालय की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक कोर इंडस्ट्री में गिरावट का दौर जारी है।
कोरोना काल के दौरान सीमेंट, बिजली, कोयला, पेट्रोलियम सेक्टर में 10% की गिरावट रही और दिसम्बर महीने में 1.3 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। यदि कोर सेक्टर में बढ़ोतरी नहीं होगी तो देश की अर्थव्यवस्था का सकारात्मक आना और रोजगार उपलब्ध कराना मुश्किल होगा।
कोरोना काल से ठप पड़े उद्योगों के कारण हजारों लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। सरकार के सामने चुनौती यह भी है कि निवेश ऐसे क्षेत्रों में बढ़ाए, जिससे रोजगार को बढ़ावा मिले।
आर्थिक सर्वेक्षण में भी इस बात पर जोर दिया गया है कि लोगों की खर्च करने की क्षमता बढ़ाई जाए। लोगों के हाथों में नगदी उपलब्ध हो, लेकिन नगदी तभी उपलब्ध होगी जब लोगों को रोजगार मिलेगा।
सरकार को सार्वजनिक निवेश करना होगा जैसे कि ढांचागत विकास के लिए सरकार का लक्ष्य 111 लाख करोड़ रु पए खर्च करने का है। इसी तरह से अन्य क्षेत्रों में भी भारी निवेश करना होगा, तभी बात बनेगी। लोगों को कैश उपलब्ध कराने के लिए वित्त मंत्री स्टैंर्डड डिडक्शन में बढ़ोतरी कर सकती हैं।
अभी स्टैंर्डड डिडक्शन 50,000 का है। इसे बढ़ाकर 80,000 करने की संभावना है।कोरोना काल में स्वास्थ्य क्षेत्र का ढांचा काफी कमजोर दिखा। हॉस्पिटलों की कमी और कोरोना जैसी नई बीमारी से लड़ने में हमारा स्वास्थ्य क्षेत्र चरमरा गया था।
आर्थिक सर्वे में भी इस बात को उजागर किया गया है और सुझाव दिया गया है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में जीडीपी का 2 से 3% निवेश किया जाए। वर्तमान में 65% लोग अपनी जेब से पैसा खर्चा कर इलाज कराते हैं, जबकि विदेशों में ऐसा नहीं होता है।
भारतीय सदन में सुझाव दिया गया है कि लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, ताकि उनका जेब से कम खर्च हो और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध हो।
बजट में स्वास्थ्य बीमा और जीवन बीमा को एटीसी में शामिल करने और उसकी मानक छूट को भी बढ़ाने की घोषणा हो सकती है। वर्तमान में हेल्थ इंश्योरेंस पर छूट 25,000 तक की है। बजट में गांव, किसान और गरीब पर केन्द्रित किया जाएगा।
लॉकडाउन के दौरान जब प्रवासी मजदूर वापस अपने गांव की तरफ लौटे तो खेती ही उनका सहारा बनी। जब पूरी अर्थव्यवस्था नकारात्मक दर में जा रही है, केवल कृषि क्षेत्र ही ऐसा है, जिसमें 3.4 प्रतिशत की विकास दर देखी गई है।
इसलिए मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में कुछ और प्रोत्साहन की घोषणा कर सकती है। लॉकडाउन ने यह सबक सिखाया है कि गांव का आत्मनिर्भर बनना आवश्यक है। तीन कृषक कानूनों के खिलाफ किसानों के गुस्से को ठंडा करने के लिए भी कृषि क्षेत्र में बड़ी घोषणाएं हो सकती हैं।