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रोहतक गैंगरेप केस में 7 को फांसी

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रोहतक गैंगरेप केस में सोमवार को कोर्ट ने सात दोषियों को फांसी की सजा सुनाई। नौ आरोपियों में से एक ने सुसाइड कर लिया था। जबकि निर्भया गैंगरेप केस की तरह इस केस में भी एक नाबालिग है। उसका मामला जुवेनाइल कोर्ट में चल रहा है। फैसले पर महिला जज ने कहा- मैं उस लड़की की चीखें सुन सकती हूं, सजा में नरमी नहीं बरत सकती।4 फरवरी 2015 को रोहतक के गांव बहूअकबरपुर के खेतों में 28 साल की नेपाली लड़की की लाश मिली थी। लाश पर कपड़े नहीं थे।यह लड़की तीन साल से मानसिक रूप से बीमार थी।

रोहतक के चिन्योट कॉलोनी में किराए पर रहने वाली उसकी बड़ी बहन दो माह पहले उसे पीजीआई में इलाज कराने के लिए लाई थी।1 फरवरी को वह गांव से गुजर रही थी। तभी वहां एक ढाबे पर शराब पी रहे आरोपियों ने उसे पकड़ लिया और एक कमरे पर ले जाकर गैंगरेप किया।6 फरवरी को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला कि लड़की के साथ दरिंदगी की हदें पार की गई थीं।फोरेंसिक एक्सपर्ट ने उस वक्त कहा था कि 30 साल के कॅरियर में ऐसी दरिंदगी कभी नहीं देखी।

9 बदमाशों ने उससे गैंगरेप के बाद उसके प्राइवेट पार्ट में सीमेंट के टुकड़े, पत्थर डाल दिए। इससे लड़की की आंत फट गई थी।निर्भया केस की तरह इस नेपाली लड़की पर भी रॉड से हमला किया गया।बाद में ईंटों से मारकर लड़की का मर्डर कर दिया।इस केस में नेपाली मूल के नाबालिग 9वें आरोपी की सुनवाई जुवेनाइल कोर्ट में मंगलवार को होनी है।उसकी उम्र 14 से 16 के बीच बताई गई है।उस पर लड़की को फुसलाकर ले जाने, अननेचुरल सेक्स करने और मर्डर का मामला दर्ज है।पुलिस ने आठों आरोपियों के कुल 25 सैंपल डीएनए टेस्ट को भेजे थे।

इनमें सबसे ज्यादा सैंपल नाबालिग आरोपी के निकले।नाबालिग के वकील का कहना है कि सरकार कानून में जुवेनाइल पर एडल्ट क्रिमिनल्स की तरह केस चलाने की उम्र 16 साल भी कर देती है तो भी वह मेरे क्लाइंट पर लागू नहीं होगा, क्योंकि घटना के वक्त वह साढ़े 15 साल का था।इस केस में एडिशनल डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज सीमा सिंहल ने पदम, पवन, राजेश, सुनील, मनबीर, शीले और सरवर को फांसी की सजा सुनाई।कोर्ट ने सभी को आईपीसी की धारा 302, 120बी, 376डी, 120बी, 366, 120बी, 201, 120बी के तहत दोषी करार दिया।

वहीं, राजेश को धारा 377 के तहत भी दोषी पाया।यह केस 10 महीने पुराना है।केस में 7 महीने 8 दिन जांच हुई।57 लोगों की गवाही के बाद 68वें दिन कोर्ट ने फैसला सुनाया।दोषियों की सजा तय करने के लिए जज और उनका स्टाफ शनिवार और रविवार काम में जुटा रहा।‘मैं महिला हूं। उस लड़की की चीखें सुन सकती हूं और दर्द समझ सकती हूं, जो इन दरिंदों ने उसे दिया है। औरतों को लोग वीकर सेक्स (कमजोर कड़ी) समझते हैं। ज्यूडिशियल ऑफिसर होने के नाते मुझे जिम्मेदारी मिली है। मैं इंसान हूं और साथ में महिला भी। उस औरत के रोने-चिल्लाने की आवाज सुन सकती हूं, जिसके साथ जुर्म हुआ।’

‘सभ्यता जितनी आगे बढ़ी, जितनी तरक्की हुई, हम दिमागी रूप से उतने ही पीछे चले गए। समाज में बड़े स्तर पर जेंडर बायस (लिंग पूर्वाग्रह) है। मेल काउंटर पार्ट (पुरुष) समझते हैं कि इस तरह की हरकतों से औरतों को दबाया जा सकता है, लेकिन आज समाज को संदेश देना है कि औरतें वीकर सेक्स नहीं हैं।’‘वे दबने और झुकने से इनकार करती हैं। निर्भया या दामिनी बनने से भी इनकार करती हैं। उन्हें अपनी आईडेंटिटी, इंडिविजुअलिटी पर गर्व है और किसी भी कीमत पर इसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं। शर्मिंदगी औरतों को नहीं, उन मर्दों को होनी चाहिए, जो ऐसी हरकतें करते हैं।’

‘इस तरह के जुर्म से शरीर नहीं, आत्मा को चोट पहुंचती है। शरीर की तो नहीं, लेकिन इस फैसले से आत्मा के घाव मिटाने की कोशिश की है। बताने की कोशिश की है कि औरत बेबस नहीं है। अगर आज मैं इस फैसले में ढील रखती हूं तो यह मृतका के साथ मृत्यु के बाद भी अन्याय से कम नहीं होगा।

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