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जेलाें में क्षमता से 600 गुना तक ज्यादा कैदी रखे जाने के मामले में बोला सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने देश की जेलाें में क्षमता से 600 गुना तक ज्यादा कैदी रखे जाने के मामले में राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कैदियों के पास भी मानवाधिकार हैं। उन्हें जेलों में जानवरों की तरह नहीं रखा जा सकता। सरकार अगर उन्हें ठीक से नहीं रख सकती तो हमें कैदियों को छोड़ देना चाहिए।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पहले राज्यों को जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों की समस्या पर योजना बनाने के निर्देश दिए थे। कोर्ट मामले की अगली सुनवाई 8 मई को करेगी।मामले की सुनवाई जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने की। बेंच ने कहा प्रिजन रिफाॅर्म पर बात करने का क्या फायदा है, जब हम उन्हें (कैदियों को) जेल में ठीक से रख भी नहीं सकते।

यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे यह साफ है कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें कैदियों के मानवाधिकारों को लेकर जरा भी संजीदा नहीं हैं। वहीं, इससे यह भी पता चलता है कि अंडर ट्रायल रिव्यू कमेटियां अपनी जिम्मेदारी निभाने में फेल रही हैं।बेंच ने कहा हमने 6 मई 2016 और 3 अक्टूबर 2016 के अादेशों में दाे हफ्ते में कैदियों को लेकर प्लान मांग था, लेकिन नहीं दिया।

इसका मतलब था कि डीजीपी (प्रिजन) को अवहेलना का नोटिस देना चाहिए था। अफसाेस है कि हमने ऐसा नहीं किया।कोर्ट ने कहा है कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें नेशनल लीगल सविर्सेज अथॉर्टी के साथ मिलकर प्लान तैयार कर दो हफ्ते में सौंपें। इस बार अगर प्लान नहीं सौंपा गया तो बेंच नोटिस जारी करने के लिए मजबूर होगी।

बेंच ने कहा हमें न्याय मित्र से जानकारी मिली है कि देशा की 1382 जेलों में 150 से लेकर 600 फीसदी तक क्षमता से ज्यादा कैदी हैं।कुछ कैदी जमानत पर छूट सकते हैं, लेकिन उन्हें जमानती नहीं मिलता। वहीं, कुछ कैदी ऐसे हैं, जिन्हें बहुत पहले जमानत मिल जानी चाहिए थी, लेकिन नहीं मिल सकी।

सुनवाई के दौरान बेंच ने जेल में स्टाफ की कमी पर चिंता जताई। कहा कि 31 दिसंबर 2017 के आंकड़ों के मुताबिक जेलों में स्टाफ के 30 फीसदी पद खाली हैं।सुनवाई के दौरान सरकार ने बताया कि एडमिस्ट्रेशन ऑफ ओपन जेल्स एक्ट एंड रूल्स के ड्राॅफ्ट को 30 अप्रैल तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा।

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