कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने सरकार के इस तर्क को खारिज किया कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दर को संविधान में नहीं शामिल किया जा सकता.उन्होंने कहा कि पहले का एक उदाहरण है जहां कर की दर को संविधान में शामिल किया गया है और सरकार के पास असाधारण परिस्थितियों में नये कर लगाने का अधिकार है.चिदंबरम ने वित्त मंत्री अरुण जेटली के इस आरोप को खारिज किया कि कांग्रेस पार्टी ‘किसी दूसरे कारणों’ से जीएसटी विधेयक के पारित होने में अड़ंगा लगा रही है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी सरकार के साथ सहयोग करने को तैयार थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सोनिया गांधी की पिछले महीने हुई मुलाकात के बाद सरकार की ओर से कोई संदेश नहीं आया.
चिदंबरम ने कहा, ‘‘यदि सरकार शुरुआत से कांग्रेस की तीन प्रमुख आपत्तियों पर रचनात्मक दृष्टि से बातचीत करती तो अब तक विधेयक पारित हो चुका होता.’’उन्होंने कहा कि जीएसटी पर मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन की रिपोर्ट में कांग्रेस की तीन में से दो मांगों का समर्थन किया गया है. इसमें कहा गया है कि वस्तुओं की अंतर-राज्यीय आवाजाही पर एक प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क नहीं लगना चाहिए और जीएसटी की दर 18 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए.
जेटली के इस तर्क पर कि कर की दर को संविधान में शामिल नहीं किया जा सकता, उन्होंने कहा कि पहले ही भी ऐसा हो चुका है जब 2500 रुपये के पेशेवर कर की दर को संविधान में शामिल किया गया था.उन्होंने कहा, ‘‘यदि सरकार संविधान संशोधन विधेयक में एक सीमा का प्रावधान नहीं करती है तो इसका प्रावधान जीएसटी विधेयक में जरूर किया जाना चाहिए. दर का निर्धारण किए बगैर कोई कर नहीं लगाया जा सकता.’’
चिदंबरम ने कहा कि प्राकृतिक आपदा जैसी असाधारण परिस्थितियों में सरकार के पास एक नया कर लगाने का हमेशा से अधिकार रहा है. साथ ही आयकर एवं सीमा शुल्कों को भी जीएसटी में समाहित नहीं किया जा रहा है और विशेष परिस्थितियों में धन जुटाने के लिए इन करों की दरें बढाई जा सकती हैं.कांग्रेस की मांग के कारणों का जिक्र करते हुए चिदंबरम ने कहा कि कर की दर पर सीमा का प्रावधान संविधान संशोधन विधेयक में करना होगा ताकि कोई भी सरकार मनमाने ढंग से दर न बढ़ा सके.
उन्होंने कहा, ‘‘हमारा अनुभव रहा है कि कांग्रेस की सरकार समेत सरकारों की थोड़ा थोड़ा कर के दरें बढ़ाने की प्रवृत्ति रही है. जीएसटी एक प्रतिगामी अप्रत्यक्ष कर है और यह कहने का कोई औचित्य नहीं बनता कि इसे संविधान संशोधन विधेयक में शामिल नहीं किया जा सकता.’’
चिदंबरम ने कहा कि वह वित्त मंत्री अरुण जेटली की इस बात से सहमत है कि एक दोषपूर्ण जीएसटी लागू करने से बेहतर होगा कि जीएसटी विधेयक देर से ही पारित हो. साथ में उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा विधेयक ‘दोषपूर्ण’ है.
चिदंबरम ने ट्वीटर पर लिखा है, ‘‘वित्त मंत्री अरुण जेटली से सहमत हूं. एक दोषपूर्ण जीएसटी से बेहतर है इसका देर से लागू होना. मौजूदा जीएसटी विधेयक दोषपूर्ण है.’शनिवार को जेटली ने फिक्की की सालाना आम सभा में संकेत दिया था कि वस्तु एवं सेवाकर विधेयक का संसद के शीतकालीन सत्र में पारित होना संभव नहीं लगता और एक दोषपूर्ण विधेयक से बेहतर है कि विधेयक विलंब से आए.