भारत और अमेरिका प्रिंसिपल ऑफ मिलिट्री लॉजिस्टिक की शेयरिंग को लेकर होने वाले अहम समझौते के और करीब पहुंच गए हैं। यूएस डिफेंस सेक्रेटरी एश्टन कार्टर ने कहा कि समुद्र में चीन के बढ़ते कदम को रोकने के लिए यह समझौता अहम है। इससे दोनों देश मिलिट्री सर्विसेस के लिए एक दूसरे की जमीन, एयर और नेवल बेस का यूज कर सकते हैं।
यूएस डिफेंस सेक्रेटरी और मनोहर पर्रिकर ने मंगलवार को बातचीत के दौरान कहा है कि दोनों देश इस एग्रीमेंट को लेकर राजी हैं।कार्टर ने कहा कि जल्द ही इस समझौते को फाइनल कर लिया जाएगा।कार्टर ने कहा, ” इससे पहले नई दिल्ली को इस बात की चिंता थी कि इस समझौते से उसकी ऑटोनॉमी इफेक्टेड होगी। लेकिन इन चिंताओं को दूर कर लिया गया है।मोदी सरकार ने इंडियन ओशिन और साउथ चाइना सी में बढ़ रही चीन की सक्रियता को देखते एग्रीमेंट को लेकर पॉजिटिव रिस्पांस दिया है।
उन्होंने चेताया कि जब चीन भी पाकिस्तान का करीबी सहयोगी बन चुका है। ऐसे में यह एग्रीमेंट काफी अहम होगा।भारत चाहता है कि यूएस की बोइंग और लॉकहीड मार्टिन जैसी डिफेंस कम्पनियों से टेक्नोलॉजी शेयरिंग में पेंटागन की तरफ से आने वाली दिक्कतें दूर की जाएं।ये कंपनियां भारत को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का क्लेम तो करती हैं, लेकिन पेंटागन के कानूनों के चलते ऐसा नहीं हो पाता।
अमेरिकी डिफेंस एडमिनिस्ट्रेशन पहले ही यह साफ कर चुका है कि वह भारत से मिलिट्री रिलेशन चाहता है ताकि चीन को कंट्रोल में रखा जा सके।खास बात यह है कि कार्टर ने ही भारत के साथ मिलिट्री रिलेशन बढ़ाने के लिये पेंटागन में एक स्पेशल सेल बनाई है।इंडिया और यूएस दोनों नए एग्रीमेंट पर राजी हैं।एग्रीमेंट के तहत दोनों देशों की मिलिट्री एक दूसरे की लैंड, एयर और नेवल बेस का सप्लाई, रिपेयर और रेस्ट के लिए यूज कर सकते हैं।
अभी तक अमेरिकी ट्रूप को इंडिया आने के लिए भारत सरकार से परमिशन लेनी होती थी। दूसरे देशों के साथ भी भारत का यही समझौता है।हालांकि कि अभी तक एग्रीमेंट का ड्राफ्ट फाइनल नहीं किया गया है। भारत इसमें अपनी ट्रेशिनल ऑटोनॉमी खत्म होने की चिंता जता रहा है।भारत वर्ल्ड का एक बड़ा आर्म्स इंपोर्टर है। वह देश में ही सॉफेस्टिकेटेड वैपन बनाना चाहता है। इस एग्रीमेंट से उसे हेल्प मिलेगी।न्यू जनरेशन के वैपन्स को लेकर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से हेल्प मिलेगी जिसमें एयरक्राफ्ट करियर, जेट इंजन और पायलटों के डिस्प्ले में मदद मिलेगी।
पर्रिकर और कार्टर सोमवार को करवाड़ नेबल बेल पर आईएनएस विक्रमादित्य पर गए थे।दरअसल पर्रिकर भी अपने अमेरिकी दौरे के दौरान अमेरिका के बड़े मिलिट्री वारशिप ड्वाइट एसनहावर पर जाने वाले पहले डिफेंस मिनिस्टर बने थे।इसी के बाद पर्रिकर ने कार्टर को भी भारत आने और इंडियन वारशिप INS विक्रमादित्य पर चलने का ऑफर किया था।