बिहार में महागठबंधन की सरकार से नाता तोड़ बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने के नीतीश कुमार के फैसले से नाराज चल रहे जेडीयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव बिहार दौरे पर आ रहे है. शरद यादव नीतीश के बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने के फैसले बाद से पहली बार बिहार में होंगे और जनता से संवाद करेंगे. शरद यादव के बिहार दौरे के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं.
जेडीयू ने बिहार में शरद यादव के दौरे और कार्यक्रम को पार्टी विरोधी गतिविधि बताया है. वहीं बिहार में बुधवार से शुरू हुई आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की जनादेश अपमान यात्रा के दौरान शरद यादव का बिहार में जनता से सीधा संवाद करना कहीं ना कहीं राज्य की सत्ताधारी जेडीयू-बीजेपी के लिए सिरदर्द बन सकता है.
मीडिया में चल रही खबरों की मानें तो जेडीयू अपने पूर्व अध्यक्ष शरद यादव पर को बड़ा फैसला ले सकती है.आपको बता दें कि शरद यादव बिहार में तीन दिन तक करीब सात जिलों में दो दर्जन से भी अधिक जगहों पर वह जनता से सीधा संवाद करेंगे. हालांकि राज्य की सत्ताधारी जेडीयू के नेताओं ने अपने पूर्व अध्यक्ष के इस कार्यक्रम से किनारा किया हुआ है.
बिहार जेडीयू के अध्यक्ष ने वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा है कि उनका या उनकी पार्टी का इस कार्यक्रम से कोई लेना-देना नहीं है. उनके इस पूरे दौरे को पार्टी के खिलाफ बताते हुए वशिष्ट नारायण सिंह ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी ये गतिविधियां अगर जारी रहीं तब पार्टी भविष्य में कोई भी निर्णय ले सकती है.
इसका मतलब साफ़ है कि नीतीश ने देर-सवेर अब शरद से राजैनतिक सहयोगी का संबंध विच्छेद करने का अब मन बना लिया है.आपको बता दें कि बुधवार को जेडीयू ने शरद के करीबियों के हटाने का काम शुरू कर दिया. इसका एक नजारा सबसे पहले तब दिखा जब पार्टी के महासचिव अरुण श्रीवास्तव को इस आधार पर निलंबित कर दिया गया कि उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के निर्देश के बाबजूद राज्य सभा चुनाव में अपनी मर्जी से पोलिंग एजेंट बहाल किया.
अरुण, शरद के करीबी हैं, ये बात किसी से छिपी नहीं है.शरद पार्टी छोड़ेंगे या पार्टी उनके खिलाफ कार्रवाई कर उनको निलंबित करेगी, ये इस बात पर निर्भर करता है कि नीतीश कुमार, शरद यादव की राज्य सभा की सदस्यता पर कितना उदार नजरिया रखते हैं. अगर नीतीश, पुराने संबंधों की आड़ में शरद के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई करते हैं तब शरद राज्य सभा के सदस्य बने रह सकते हैं
दरअसल सब जानते हैं कि भले शरद ने, बीजेपी के साथ नीतीश के एक बार फिर जाने को अपने मनमर्जी करने का मुख्य आधार बनाया हो लेकिन पिछले साल राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद लिए जाने के बाद वो नीतीश और उनके हर करीबी से खफा हैं.