नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स समिट के अाखिरी दिन डायलॉग ऑफ इमरजिंग मार्केट एंड डेवलपिंग कंट्रीज कॉन्फ्रेंस को एड्रेस किया। मोदी ने कहा आतंकवाद से मुकाबले के लिए मिलकर कदम उठाने की जरूरत है। साइबर सुरक्षा और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में हमें एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए। कॉन्फ्रेंस में मेंबर देशों के लीडर्स ने विकासशील देशों में बढ़ रहे मार्केट पर चर्चा की।
मोदी आज चीन के प्रेसिडेंट शी जिनपिंग से भी मिलेंगे। दोनों लीडर्स के बीच बाइलेट्रल बातचीत होगी। सिक्किम के डोकलाम एरिया में गतिरोध के बाद दोनों नेता पहली बार मिलेंगे। बता दें कि सोमवार को ब्रिक्स देशों की तरफ से जारी ज्वाइंट डिक्लरेशन में पाकिस्तान में एक्टिव आतंकी संगठनों का जिक्र किया गया था और सभी तरह के आतंकवाद की निंदा की गई थी।
मोदी ने कॉन्फ्रेंस में कहा अगला दशक ब्रिक्स देशों के लिए बेहद अहम है, हमारी विकास नीति का आधार सबका साथ सबका विकास है।मोदी ने ये भी कहा दुनिया को हरा-भरा बनाने और क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) के खतरे को कम करने के लिए भी एक साथ काम करने की जरूरत है।
-उधर, इंडियन फॉरेन मिनिस्ट्री के ऑफिशियल्स के मुताबिक शियामेन में मोदी-जिनपिंग की बाइलेट्रल मीटिंग सुबह 10 बजे शुरू होगी। इस दौरान व्यापार घाटे, आतंकवाद समेत डोकलाम विवाद पर भी चर्चा हो सकती है। बता दें कि यह विवाद 72 दिनों तक चला था। 28 अगस्त को दोनों देशों ने डोकलाम एरिया में आमने-सामने तैनात अपने सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला किया था।
16 जून को डोकलाम विवाद तब शुरू हुआ था, जब भारतीय सैनिकों ने इलाके में सड़क बना रहे चीनी सैनिकों को रोक दिया था। भारत के साथ ही भूटान भी इस मामले में चीन के खिलाफ था। भारत-चीन ने डोकलाम से अपने सैनिक भले ही हटा लिए हों, लेकिन बीजिंग ने यह साफ तौर पर कहा है कि इलाके में उसकी सेना पेट्रोलिंग करती रहेगी।
चीन के पोर्ट सिटी शियामेन में 9वीं ब्रिक्स समिट 3 सितंबर को शुरू हुई थी।ब्रिक्स के 5 सदस्य देशों (ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन, साउथ अफ्रीका) की तरफ से सोमवार को जारी डिक्लरेशन में कहा गया था हम तालिबान, लश्करे-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीके-तालिबान, हक्कानी नेटवर्क, आईएसआईएस, हिज्ब उत-तहरीर, अलकायदा, ईस्टर्न तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट और उज्बेकिस्तान के इस्लामिक मूवमेंट द्वारा क्षेत्र में फैलाई जा रही हिंसा के चलते बिगड़े सुरक्षा हालात पर चिंता जताते हैं।”
हम आतंकवाद के सभी रूपों, इससे जुड़े ड्रग ट्रैफिकिंग, मनी लॉन्ड्रिंग और दुनिया समेत ब्रिक्स देशों में हुए सभी आतंकी हमलों की आलोचना करते हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हम इंटरनेशनल कोऑपरेशन बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। इसमें देशों की संप्रभुता का खयाल रखना चाहिए, किसी भी देश के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं दिया जाना चाहिए।
ब्रिक्स देश यूएन की जनरल असेंबली की तरफ से कॉम्प्रिहेंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेरेरिज्म (अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर समग्र समझौते) को जल्द ही अंतिम रूप दिए जाने और इसे मंजूर किए जाने की भी मांग करते हैं। ब्रिक्स देश आतंकवाद से मुकाबले और इसके लिए की जा रही फाइनेंसिंग को रोकने के लिए व्यापक नजरिया अपनाएं।
शियामेन में सोमवार को इंडियन फॉरेन मिनिस्ट्री की तरफ से प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की गई। इसमें ब्रिक्स डिक्लरेशन की जानकारी दी गई। फॉरेन मिनिस्ट्री में सेक्रेटरी (ईस्ट) प्रीति सरन ने कहा आतंकवाद पर आप दोहरा रवैया नहीं अख्तियार कर सकते, इससे निपटने के लिए हमें आज साथ आने की जरूरत है। ब्रिक्स लीडर्स ने देशों से आतंकी नेटवर्क को फाइनेंसिंग और अपने क्षेत्रों में आतंकी कार्रवाईयों को रोकने के लिए कहा है।
पहली बार डिक्लरेशन में आतंकी संगठनों की खास लिस्ट का जिक्र किया गया है। डिक्लरेशन के 7 पैराग्राफ्स में आतंकवाद की निंदा की गई। पीएम मोदी ने ब्रिक्स लीडर्स की रेसट्रिक्टेड ( restricted) सेशन में एक कॉन्फ्रेंस होस्ट करने की पेशकश भी की है।ब्रिक्स के ज्वाइंट डिक्लरेशन में नई दिल्ली की पहल पर पाक के आतंकी गुटों का जिक्र होना भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत मानी जा रही है।
इस डिक्लरेशन को काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि चीन कई बार जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर पर यूएन द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने की दिशा में अड़ंगा लगा चुका है।इससे पहले, ये माना जा रहा था कि समिट में मोदी पाकिस्तान में आतंकवाद को सुरक्षित ठिकाना मिलने का मुद्दा उठा सकते हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से बयान जारी कर इसका संकेत दिया जा चुका है।
डिक्लरेशन में भले ही जैश-ए-मोहम्मद और तालिबान जैसे आतंकी संगठनों का नाम आया हो, लेकिन चीन अब भी आतंकी मसूद अजहर पर अपना रवैया बदलने को तैयार नहीं है। चीन की फॉरेन मिनिस्ट्री के स्पोक्सपर्सन गेंग शुआंग ने कहा जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हक्कानी नेटवर्क का नाम ब्रिक्स के ज्वाइंट डिक्लरेशन में इसलिए आया क्योंकि ये संगठन इस इलाके में हिंसा फैलाते हैं।
इस बयान के मायने ये हुए कि चीन पहले भी जैश सरगना मसूद अजहर पर यूएन के बैन के खिलाफ था और अब भी है। हालांकि, वो उसके संगठन जैश को हिंसा फैलाने वाला बता रहा है। बता दें कि चीन यूएन सिक्युरिटी काउंसिल का परमानेंट मेंबर है। मसूद अजहर को भारत समेत बाकी देश तो बैन करना चाहते हैं, लेकिन चीन नहीं। भारत के प्रपोजल पर वो हर बार वीटो इस्तेमाल करता है।
मोदी ब्रिक्स समिट के खत्म होने के बाद मंगलवार को ही म्यांमार निकल जाएंगे। वे वहां तीन शहरों का दौरा करेंगे। भारत म्यांमार के साथ स्ट्रैटजिक और इंडस्ट्रियल रिश्ते मजबूत करने में जुटा है, क्योंकि भारत के लिए साउथ-ईस्ट एशियाई देशों में जाने के लिए म्यांमार एक ‘गेटवे’ जैसा है। दूसरी ओर, चीन के साथ म्यांमार की बेरुखी बढ़ती जा रही है।
ब्रिक्स प्रोग्रेसिव अलायंस है। जब भी इससे जुड़े देश साथ बैठें तो आतंकवाद पर बात होनी ही चाहिए। टेरेरिज्म बाइलेट्रल नहीं, ग्लोबल इश्यू है। इससे इकोनॉमी, पीस और डेवलपमेंट पर भी असर पड़ता है। मोदी के इस मुद्दे को उठाने पर सभी देशों ने समर्थन भी किया है। हालांकि, इससे चीन के रुख में कोई बदलाव नहीं आएगा। ये मुद्दा हर मंच पर उठाया जा रहा है। अब ये ट्रेडिशनल मुद्दा बन चुका है।
सिंह ने आगे कहा चीन किसी भी हालत में भारत का साथ नहीं देगा। वह पाकिस्तान का ही साथ देगा क्योंकि उससे उसके अपने हित जुड़े हैं। अमेरिका भी पाकिस्तान को सिर्फ हिदायतें देता है, लेकिन जैसे ही उसके अपने हितों पर असर पड़ता है उसे भी ग्लोबल टेरेरिज्म नजर आने लगता है। रूस भी भारत का सीधे तौर पर साथ नहीं दे रहा है। वह भी इस्लामाबाद और बीजिंग के साथ सुपर पावर ट्राइएंल बना रहा है। इसलिए इस मुद्दे पर वह खुलकर साथ नहीं रहा।
सिंह के मुताबिक डोकलाम विवाद सिर्फ ब्रिक्स मीटिंग को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए सुलझाया गया है। डोकलाम विवाद सुलझने को अभी बड़ी डिप्लोमेटिक जीत मान लेना देश को नुकसान पहुंचा सकता है। केंद्र सरकार को रिजल्ट ओरिएंटेड काम करने चाहिए, ना कि सिर्फ प्रचार करने का मसाला तैयार करना चाहिए।
चीन की धरती पर उसकी इच्छा के खिलाफ आतंकवाद का मुद्दा उठा देना बड़ी जीत नहीं है। अगर ब्रिक्स देश आतंकवाद के खिलाफ कोई रिजॉल्यूशन लाते हैं तो हमारी बड़ी जीत होगी। अगर सभी देश ये कहते हैं कि संयुक्त रूप से आतंकवाद के खिलाफ जंग लड़ेंगे तो हमारी जीत होगी।