तीन तलाक पर सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को होने की संभावना है। पार्टी अब इस मुद्दे को 2019 तक होने वाले 15 राज्यों के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में और जोर-शोर से उठा सकती है। इससे उसे मुस्लिम कम्युनिटी की खासकर आधी आबादी और यूथ्स का सपोर्ट मिल सकता है। फैसले से बीजेपी को लोकसभा की 218 सीटों पर फायदा होने के आसार हैं।
बीजेपी प्रेसिडेंट अमित शाह ने हाल ही में 2019 चुनाव की तैयारी को लेकर सभी राज्यों के बड़े नेताओं, ऑफिशियल्स और सांसदों के साथ बैठक की थी। उन्होंने कहा था कि 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी का 360 प्लस सीटें जीतने का लक्ष्य है। पार्टी नेता उन सीटों पर अभी से काम करना शुरू कर दें। खासकर जहां पिछले चुनाव में पार्टी की हार हुई थी।
इस लिहाज से यह फैसला काफी अहम है क्योंकि लोकसभा की 543 सीटों में से 145 सीटें ऐसी हैं, जिन पर 11 से 20 फीसदी मुस्लिम आबादी है। 35 सीटें ऐसी हैं जिन पर मुस्लिम आबादी 30% से ज्यादा है।देश में सबसे ज्यादा 9 लोकसभा सीटें पश्चिमी बंगाल में हैं, जहां 30% से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में 8, केरल में 4, असम में 4, बिहार में 3 ऐसी सीटें हैं। यानी, कोर्ट के तीन तलाक पर फैसले से बीजेपी को 218 सीटों पर फायदा हो सकता है।
वहीं, जिन 15 राज्यों में 2019 से पहले या साथ में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, उनमें 8 राज्य ऐसे हैं, जहां 5% से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। इन 15 राज्यों में कुल 1747 विधानसभा सीटें हैं, इनमें करीब 166 सीटें मुस्लिम बहुल हैं। यानी करीब 10.52% सीटों पर मुस्लिम आबादी अहम भूमिका निभाती है।ट्रिपल तलाक पर फैसले से बीजेपी को आने वाले विधानसभा चुनावों में इन सीटों पर भी मुस्लिम वोटर्स का साथ मिल सकता है।
फिलहाल, जिन दो प्रमुख राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, उनमें गुजरात और कर्नाटक शामिल हैं। गुजरात में 34 सीटें और कर्नाटक में 40 मुस्लिम बहुल सीटें हैं।तीन तलाक को बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में घोषणा पत्र में शामिल किया था। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से भाजपा ये मुद्दा लगातार उठाती रही।
इसका मुस्लिम समाज खासकर महिलाओं और युवाओं ने समर्थन किया। इस मुद्दे को भाजपा ने असली हवा यूपी विधानसभा चुनाव से पहले दी।शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी ने लखनऊ में रामनवमी के दिन की। कहा था कि हम मुस्लिम बहनों को उनका हक दिलवा कर रहेंगे। इसके बाद पूरे यूपी चुनाव में ट्रिपल तलाक का मुद्दे छाया रहा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम महिलाओं को एक साथ तीन बार तलाक से जो ‘आजादी’ मिली, उसकी शुरुआत 39 साल पहले 1978 में इंदौर से ही हुई थी।यहां की शाह बानो को उनके वकील पति मो. एजाज अहमद खान ने ट्रिपल तलाक दे दिया था और दूसरी शादी कर ली थी।पति के इस तरीके से तलाक दिए जाने को शाह बानो ने कोर्ट में चुनौती दी और भरण-पोषण का दावा कर दिया।
देश में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी मुस्लिम महिला ने ट्रिपल तलाक को चुनौती दी थी।कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ने के बाद फैसला शाह बानो के पक्ष में आया था और सुप्रीम कोर्ट ने उनका 119 रुपए का भरण-पोषण का दावा मंजूर किया था।कोर्ट में जीती शाह बानो को समाज और सरकार ने हरा दिया। शाह बानो के पक्ष में फैसला आते ही मुस्लिम समाज ने विरोध शुरू कर दिया।
मोदी के प्रधामंत्री के बाद सरकार की तरफ से कहा गया था कि ट्रिपल तलाक के प्रावधान को संविधान के तहत दिए गए समानता के अधिकार और भेदभाव के खिलाफ अधिकार के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। लैंगिक समानता और महिलाओं के मान सम्मान के साथ समझौता नहीं हो सकता।अक्टूबर, 2016 को विधि आयोग ने 16 सवालों की सूची प्रकाशित की, जिसमें एक समान नागरिक संहिता पर लोगों की राय मांगी गई।जनता से पूछा गया था कि क्या ट्रिपल तलाक को खत्म करना चाहिए।