सीएम योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर और डिप्टी सीएम केशवप्रसाद मौर्य की पिछली बार जीती फूलपुर लोकसभा सीट इस बार सपा-बसपा ने एक होकर भाजपा से छीन लीं। यह पहला मौका है जब 27 साल से भाजपा के गढ़ गोरखपुर में सपा-बसपा मिलकर जीती है। सबसे पहले फूलपुर के नतीजे आए। यहां सपा के नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल जीत गए।
वहीं, गोरखपुर में भी सपा के प्रवीण निषाद जीत गए। दोनों सीटों पर पिछली बार से करीब 12% कम वोटिंग हुई थी। हार के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा-ये जनता का फैसला है। हम सभी को इसे मानना चाहिए। अति-आत्मविश्वास और आखिरी समय में सपा-बसपा की राजनीतिक सौदेबाजी के कारण हम हारे।
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की रिकाॅर्ड जीत के बाद योगी आदित्यनाथ को पीएम कैंडिडेट बताने वालों को झटका। मोदी-अमित शाह के सामने अब योगी झुके रहेंगे। अगले लोकसभा चुनाव में कैंडिडेट्स की पसंद केंद्रीय नेतृत्व पर ज्यादा निर्भर रहेगी।ये 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हैं।
अगर पूरे प्रदेश में सपा-बसपा तालमेल करते हैं और कांग्रेस भी अगर उनके साथ आ जाती है तो बीजेपी के लिए पिछली बार की 71 सीटों की रिकॉर्ड जीत को दोहराना बेहद मुश्किल होगा।अगर 2014 के नतीजों में सपा-बसपा के वोटों को मिला दें तो बीजेपी की सीटें 71 से घटकर 37 और सपा-बसपा की सीटें बढ़कर 41 हो जाती हैं।
इसमें भी अगर कांग्रेस के वोट मिला दें तो बीजेपी की सीटें 71 से घटकर 24 ही रह जाती हैं।यूपी से सबक लेते हुए अन्य राज्यों में गैर-भाजपाई दल एक हो जाएं तो बीजेपी के मिशन 2019 को चुनौती दे सकते हैं।दोनों उपचुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। सोनिया-राहुल की परंपरागत सीटों को छोड़कर उसके पास राज्य में बसपा-सपा से तालमेल करने के अलावा विकल्प नहीं है।
लोकसभा चुनाव के पहले सपा-बसपा गठबंधन को तोड़ना। इन दोनों में कमजोर कड़ी बसपा ही है। वह पिछले लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल पाई थी। मायावती को पुरानी फाइलें दिखाकर भाजपा बसपा को सपा से अलग होने पर विवश कर सकती है।