महाराष्ट्र में शिवसेना बनाम शिंदे सेना की लड़ाई अब शिवसेना पर कब्जे की लड़ाई में बदलती दिखाई दे रही है। शिवसेना के 55 विधायकों में से दो तिहाई यानि 37 से ज्यादा विधायकों के साथ आ जाने से गदगद एकनाथ शिंदे अब यह दावा कर रहे हैं कि पार्टी के 40 से ज्यादा विधायक उनके साथ हैं और आगे पार्टी के और भी विधायक उनके साथ जुड़ सकते हैं।
उद्धव ठाकरे पर हिंदुत्व को छोड़ने का आरोप लगाते हुए शिंदे अब बाला साहेब ठाकरे की विरासत, शिवसेना और उसके चुनाव चिन्ह तक पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं।वहीं महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार में शामिल एनसीपी के सुप्रीमो शरद पवार ने भी गुरुवार को शिवसेना के सुर में सुर मिलाकर इस राजनीतिक बवाल के लिए सीधे तौर पर भाजपा को जिम्मेदार ठहराया लेकिन जिस भाजपा पर यह आरोप लगाया जा रहा है।
वह अब भी इसे शिवसेना का आंतरिक मसला बताकर इस लड़ाई के अंतिम नतीजे का इंतजार कर रही है।दरअसल शिवसेना में मचे इस घमासान को लेकर भाजपा का अब तक यही स्टैंड रहा है कि सत्ता के लिए हिंदुत्व को छोड़ने वाली शिवसेना में देर-सबेर यह तो होना ही था।
भाजपा अब भी महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार को अस्वाभाविक गठबंधन करार देते हुए यही कह रही है कि महाराष्ट्र की जनता ने भाजपा-शिवसेना गठबंधन को जनादेश दिया था लेकिन उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के मोह में उन्हें धोखा देकर कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिला लिया।
लेकिन अजित पवार प्रकरण में हाथ जला चुकी भाजपा इस बार कोई जल्दबाजी करने के मूड में नहीं है, इसलिए वो शिवसेना बनाम शिंदे सेना के बीच में जारी लड़ाई के आखिरी नतीजे का इंतजार कर रही है। भाजपा को एकनाथ शिंदे के ऑफर पर उद्धव ठाकरे के आखिरी फैसले का भी इंतजार है, जिसमें शिंदे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को एनसीपी-कांग्रेस का साथ छोड़ कर फिर से भाजपा के साथ आने की सलाह दी थी।
दरअसल पार्टी के कई नेताओं का यह मानना है कि अगर सरकार और पार्टी, दोनों हाथ से जाते नजर आई और बचाने का कोई रास्ता नहीं दिखा तो उद्धव ठाकरे गठबंधन के पुराने साथी की तरफ भी जा सकते हैं।यही वजह है कि उद्धव ठाकरे, संजय राउत, शरद पवार और कांग्रेस नेताओं के तीखे हमलों और आरोपों के बावजूद भाजपा आलाकमान फिलहाल शांत है।