अयोध्या विवाद मामले में मध्यस्ता को लेकर सुप्रीम कोर्ट आज सुना सकता है फैसला

सुप्रीम कोर्ट आज अयोध्या विवाद का मामला मध्यस्थ को भेजा जाए या नहीं, अपना फैसला सुना सकता है। बुधवार को हुई सुनवाई में बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस बेंच में पांच जज- चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।

पिछली सुनवाई में जस्टिस बोबडे ने कहा था हमने इतिहास पढ़ा है। हम इतिहास जानते हैं। अतीत में जो हो चुका है, उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। उन्होंने कहा कि एक बार मध्यस्थता प्रक्रिया शुरू होने के बाद इसकी रिपोर्टिंग नहीं की जानी चाहिए।

जबकि जस्टिस चंद्रचूड़ का मानना था कि एक बार मध्यस्थता शुरू हो जाती है तो इसके बाद हम किसी चीज को बांध नहीं सकते। संविधान पीठ ने सभी पक्षकारों से मध्यस्थता पैनल के लिए नाम देने के लिए कहा था ताकि जल्द ही आदेश निकाला जा सके।

इससे पहले 26 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में मध्यस्थ के जरिए विवाद का समाधान निकालने पर सहमति जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि एक फीसदी गुंजाइश होने पर भी मध्यस्थ के जरिए मामला सुलझाने की कोशिश होनी चाहिए।

अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट को बुधवार को ही तीन नाम सुझाए थे। इसमें पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जेएस खेहर और पूर्व जस्टिस एके पटनायक के नाम दिए गए।

बुधवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस एसए बोबडे ने कहा यह दिमाग, दिल और रिश्तों को सुधारने का प्रयास है। हम मामले की गंभीरता को लेकर सचेत हैं। हम जानते हैं कि इसका क्या असर होगा। हम इतिहास भी जानते हैं।

हम आपको बताना चाह रहे हैं कि बाबर ने जो किया उस पर हमारा नियंत्रण नहीं था। उसे कोई बदल नहीं सकता। हमारी चिंता केवल विवाद को सुलझाने की है। इसे हम जरूर सुलझा सकते हैं।सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर हो रही है।

अदालत ने सुनवाई में केंद्र की उस याचिका को भी शामिल किया है, जिसमें सरकार ने गैर विवादित जमीन को उनके मालिकों को लौटाने की मांग की है।इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर 2010 को 2:1 के बहुमत से 2.77 एकड़ के विवादित परिसर के मालिकाना हक पर फैसला सुनाया था।

यह जमीन तीन पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला में बराबर बांट दी गई थी। हिंदू एक्ट के तहत इस मामले में रामलला भी एक पक्षकार हैं।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए।

बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।इस फैसले को निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट में यह केस तभी से लंबित है।

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