अरूणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में बहाल किए गए नबाम तुकी से राज्यपाल ने आज 16 जुलाई तक विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा। हालांकि तुकी ने कहा कि उन्हें सदन में बहुमत साबित करने के लिए कुछ और वक्त चाहिए। कार्यालय पहुंचने के बाद उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि वह कार्यकारी राज्यपाल तथागत राय से प्रस्तावित शक्ति परीक्षण टालने का अनुरोध करेंगे क्योंकि यह इतने कम समय में संभव नहीं है।
राज्यपाल ने एक संदेश में तुकी को सूचित किया कि उच्चतम न्यायालय के फैसले का पालन करते हुए उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कल ही तत्काल बहाल कर दिया गया। उन्होंने उनसे विधानसभा का सत्र तत्काल बुलाने और 16 जुलाई तक अपना बहुमत साबित करने को कहा। कांग्रेस सरकार की अगुवाई करने वाले तुकी की सरकार जनवरी में राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा की विवादास्पद भूमिका के बाद गिर गयी थी।
इस संदेश में कहा गया है कि शांतिपूर्ण कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए विश्वास मत हासिल करने की कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जानी चाहिए तथा बहुमत ध्वनिमत से नहीं बल्कि मत-विभाजन से साबित किया जाना चाहिए। राजभवन की एक विज्ञप्ति के अनुसार तथागत राय ने इस बात पर बल दिया कि सदन में वीडियोग्राफी समेत पूरी कार्यवाही केंद्र सरकार बनाम हरीशचंद्र सिंह रावत मामले में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के सिलसिले में उच्चतम न्यायालय के छह मई के आदेश के निर्धारित मापदंड के अनुसार ही होनी चाहिए।
विज्ञप्ति के अनुसार इस आशय का नोट विधानसभा सचिवालय को भेज दिया गया है।तुकी आज शाम यहां पहुंचे। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद कल नई दिल्ली स्थित अरूणाचल भवन में राज्य के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाल लिया था। अपने कार्यालय पहुंचने वाले विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया ने भी कहा कि सत्र बुलाने के लिए कम से कम 10-15 दिन का समय चाहिए।
रेबिया ने संवाददाताओं से कहा, ‘मुझे राज्यपाल का आदेश मिला है जिसमें सरकार से 16 जुलाई तक शक्ति परीक्षण करने को कहा गया है लेकिन भौगोलिक स्थिति, खराब मौसम और राज्य में संचार संबंधी असुविधा को ध्यान में रखते हुए यह व्यावहारिक रूप से असंभव है।’ विधानसभा अध्यक्ष ने सभी कांग्रेस सदस्यों से राज्य के सर्वांगीण विकास के लिए तुकी के हाथ मजबूत करने की अपील भी की।
भाजपा और केंद्र को एक बड़ा झटका देते हुए कल उच्चतम न्यायालय ने अरूणाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार बहाल करने का आदेश दिया था। उसने राज्यपाल राजखोवा के सभी फैसलों को खारिज करते हुए कहा था कि घड़ी की सुई पीछे घुमायी जाए। शीर्ष अदालत ने राजखोवा के फैसलों को संविधान का उल्लंघन बताया था।