रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे को लेकर कांग्रेस द्वारा लगाए गये आरोप को शर्मनाक करार दिया है और कहा कि एक पारदर्शी प्रक्रिया के बाद इस सौदे को अंतिम रूप दिया गया था. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि 36 राफेल विमानों के लिए अंतिम समझौते पर सीसीएस की मंजूरी के बाद हस्ताक्षर किए गए.
संप्रग सरकार 10 वर्षों तक राफेल विमान के खरीद प्रस्ताव पर बैठी रही.बता दें कि कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि एक कारोबारी को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री ने पूरा सौदा ही बदल डाला. इसके बाद संवाददाताओं से बातचीत के दौरान सीतारमण ने कहा कि इस सौदे को लेकर कलह सशस्त्र बलों के लिए नुकसानदायक होगी.
आगे उन्होंने कहा कि वायुसेना की फौरी जरूरत ही इस करार को करने की अहम वजह थी.उन्होंने कहा कि 36 राफेल विमानों के लिये अंतिम करार पर सितंबर 2016 में दस्तखत किये गये. इससे पहले भारत और फ्रांस के बीच पांच दौर की लंबी चर्चा हुई और इसे सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने भी मंजूरी दी थी.
बता दें कि 2002 में भारतीय वायुसेना को मजबूती प्रदान करने के लिए ये फैसला लिया गया था. राफेल विमान खरीदना उस वक्त की सरकार की प्राथमिकता में शामिल थी. इसके लिए राष्ट्रीय रक्षा अकादमी ने वार्ता शुरू की थी. 2004 में यूपीए सरकार ने 126 राफेल विमान को खरीदने का फैसला लिया.
मगर अगले दस सालों तक इस खरीद प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिली.मंत्री ने कहा कि 2014 में जब भाजपा सरकार सत्ता में आई तब इस प्रस्ताव पर उसने सक्रियता दिखाई. अप्रैल 2015 में पीएम मोदी इस मसले पर बातचीत के लिए पेरिस गये और इसके लिए उचित प्रक्रिया का पालन किया गया.
सितंबर 2016 में रक्षा मंत्री के मौजूदगी में 36 राफेल विमानों के लिये अंतिम करार पर दस्तखत किये गये. इस करार पर फ्रांस के डीजीए और भारत के एयर स्टाफ के भारतीय उप प्रमुख ने दस्तखत किये थे. हालांकि, मंत्री ने इस बारे में नहीं बताया कि हस्ताक्षर कहां किये गये. इतना ही नहीं, इस सौदे में सरकार ने कितने पैसे खर्च किये, इसकी अभी जानकारी नहीं दी गई है.