भारत के बेंगलुरु में पानी की किल्लत का खतरा सबसे ज्यादा होगा : यूएन की रिपोर्ट

आज वर्ल्ड वॉटर डे है। यूएन की एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि आने वाले समय में ब्राजील के साओ पाउलो और भारत के बेंगलुरु में पानी की किल्लत का खतरा सबसे ज्यादा होगा। जहां केपटाउन और साओ पाउलो में ये खतरा सूखे की वजह से पैदा होगा, वहीं बेंगलुरु में ये परेशानी खुद इंसानों की खड़ी की गई है।

पानी से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था वॉटरएड की रिपोर्ट बताती है कि किस तरह दुनिया के लाखों लोग रोज पानी की कमी से लड़ रहे हैं। वॉटरएड की स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स वॉटर 2018: द वॉटर गैप रिपोर्ट के मुताबिक, युगांडा, नाइजर, मोजांबिक, भारत औऱ पाकिस्तान उन देशों में शुमार हैं जहां सबसे ज्यादा लोग ऐसे हैं जिन्हें आधे घंटे का आना-जाना किए बगैर साफ पानी नसीब नहीं हो पाता।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 16.3 करोड़ लोग साफ पानी के लिए तरस रहे हैं। पिछले साल ये आंकड़ा 6 करोड़ 30 लाख लोगों का था।आंकड़ा बढ़ने की वजह ये है कि वो लोग जिन्हें अपने घर तक पानी लाने में आधे घंटे लगते हैं, उन्हें यूएन के नियमों के मुताबिक पानी की पहुंच वाले लोगों की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता।

इरीट्रिया, पापुआ न्यू गिनी और युगांडा ऐसे तीन देश हैं जहां घर के करीब साफ पानी की उपलब्धता सबसे कम है। युगांडा में महज 38% लोगों तक पानी की पहुंच है।पानी पर बेहतरीन काम करने वाले टॉप 4 में मोजाम्बिक शामिल है। इसके बावजूद वह सबसे कम पानी की पहुंच के मामले में दुनिया के टॉप 10 देशों में शुमार है।

गरीबी-अमीरी की खाई भी पानी की उपलब्धता में अंतर पैदा कर रही है। नाइजर में 41% गरीबों तक ही पानी पहुंच पा रहा है, जबकि अमीरों में यह आंकड़ा 72% है। माली में 45% और 93% के साथ यह अंतर देखने को मिलता है।वॉटरएड इंडिया के मुख्य कार्यकारी, वी.के. माधवन का कहना है दुनियाभर में बगैर साफ पानी के गुजारा करने वाले 84.4 करोड़ लोगों में से 16.3 करोड़ अकेले भारत में मौजूद हैं।

मतलब साफ है कि भारत का अपने लोगों तक साफ पानी पहुंचाने का सीधा असर वैश्विक लक्ष्य की सफलता पर पड़ेगा।सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना को दुरुस्त करने के साथ ही 2022 तक भारत के 90% गांवों में पाइपलाइन से पानी पहुंचाने का जो लक्ष्य रखा है, उसे अच्छा कदम कहा जा सकता है। पिछले 15 सालों में भारत 30 करोड़ लोगों तक साफ पानी पहुंचाने में कामयाब रहा है।

यूएन वर्ल्ड वॉटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2018 में कहा गया है कि बड़ी तादाद में बन रहे बांधों के चलते लोगों का विस्थापन हो रहा है। साथ ही सीमित मात्रा में खाद्य सुरक्षा आई है।वर्ल्ड कमीशन ऑन डैम्स ने अपनी स्टडी में कहा है कि भारत में बड़े पैमाने पर चल रहे वॉटर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के चलते विस्थापन, मिट्टी का कटाव, पानी का जमाव जैसी समस्याएं आ रही हैं।

बता दें कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा भूजल का उपयोगकर्ता है। इसके बाद अमेरिका, ईरान और पाकिस्तान का नंबर आता है। ये सभी देश मिलकर दुनिया का 67% भूजल का इस्तेमाल करते हैं।वर्ल्ड वॉटर डे से एक दिन पहले सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की एक मैगजीन में बैंगलोर को उन 10 शहरों में जगह दी गई है, जहां जल्द ही लोगों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ेगा।

डाउन टू अर्थ नाम की मैगजीन में दावा किया गया है कि बीते कुछ सालों में बिना प्लानिंग के शहरीकरण और गांवों में अतिक्रमण की वजह से बेंगलुरु के 79% तालाब खत्म हो चुके हैं। वहीं मानवनिर्मित इन्फ्रास्ट्रक्चर 1973 के 8% के आंकड़े से बढ़कर 77% हो गया।सीएसई ने बताया है कि बीते दो दशकों में बेंगलुरु का वॉटर टेबल (जमीन का जलस्तर) 10-12 मीटर से बढ़कर 76-91 मीटर तक नीचे चला गया है।

वहीं, बीते 30 सालों में पानी निकालने के लिए खुदे हुए कुंओं की संख्या 5 हजार से बढ़कर 4.5 लाख पहुंच गई है।मैगजीन में बताया गया है कि केपटाउन की तरह 10 शहर ऐसे हैं जहां भविष्य में हालात बिगड़ सकते हैं। ये शहर हैं साओ पाउलो, बेंगलुरू, मेक्सिको सिटी, नैरोबी, कराची, काबुल, इस्तांबुल, बीजिंग, ब्यूनोस आयर्स और सना।

2012 में शहर की जनसंख्या 90 लाख थी। 2018 में ये आंकड़ा 1 करोड़ 10 लाख पहुंच गया है। पानी के स्त्रोतों पर दबाव बढ़ा है।2031 तक जनसंख्या अनुमानित 2 करोड़ पहुंच जाएगी।2018 में प्रति व्यक्ति/प्रतिदिन 100 लीटर पानी मौजूद है। कर्नाटक सरकार के मुताबिक, 2031 तक प्रति व्यक्ति एक दिन में सिर्फ 88 लीटर पानी ही इस्तेमाल कर पाएगा।

जनसंख्या के बढ़ने से पिछले कुछ सालों में बेंगलुरु के आसपास के करीब 100 गांव खत्म हुए। इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ने से पेड़-पौधों की कमी से बारिश के पैटर्न में भी बदलाव दर्ज किया गया।बेंगलुरु में पानी की कमी की एक बड़ी वजह इसे इकट्ठा करने का कोई पुख्ता इंतजाम ना होना है।फैक्ट्रियों के कचरे से तालाबों में खराब होती पानी की क्वालिटी इसकी कमी की बड़ी वजह होगी।

रिपोर्ट के मुताबिक, 1970 में बेंगलुरु के 300 तालाबों में से अब सिर्फ 180 के लगभग तालाब ही बचे हैं। इनमें से भी सिर्फ 85% पानी ही साफ और सिंचाई के लायक बचा है।पानी की आपूर्ति अभी बोरवेल के जरिए होती है। जितनी मांग बढ़ेगी उतना ग्राउंडवॉटर लेवल में कमी आएगी।बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, बेंगलुरुवासी पीने लायक पानी में से आधा बर्बाद कर देते हैं।

बीते साल अप्रैल में कर्नाटक में पानी की भारी कमी के चलते सरकार ने किसानों को नहरों और जलाशयों से पानी ना निकालने की अपील की थी।कर्नाटक के जल संसाधन मंत्री एमबी पाटिल ने कहा था कि बांध के स्तरों को देखते हुए बेंगलुरु के पास सिर्फ 60 दिन के पीने का पानी ही बचा है।इसके अलावा पिछले 4 सालों से गर्मी के मौसम में बेंगलुरु में पानी की किल्लत पैदा हुई है।

Check Also

आरबीआई ने सभी क्रेडिट सूचना कंपनियों को दिया एक आंतरिक लोकपाल नियुक्त करने का निर्देश

आरबीआई ने सभी क्रेडिट सूचना कंपनियों को 1 अप्रैल, 2023 तक एक आंतरिक लोकपाल नियुक्त करने …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *