एयर इंडिया से जुड़े एक बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है। विमान में चढ़ने वाले यात्रियों की पहचान के लिये उपयोग किया जाने वाला उपकरण ‘बायोमीट्रिक फेशियल रिकग्निशन डिवाइस’ खरीदी गई थी। ज़ी न्यूज के पास मौजूद एक्सक्लूसिव रिपोर्ट के मुताबिक यह जरूरत सिर्फ इसलिये पैदा की गई थी, ताकि कमीशन के रूप में रिश्वत ली जा सके। इस संबंध में 24 फरवरी 2006 को एयर इंडिया प्रार्थना प्रस्ताव भी जारी किया था और इस टेंडर के लिए कनाडा की क्रिप्टोमेट्रिक्स सहित 20 कंपनियों ने आवेदन किया था। रिपोर्ट के मुताबिक इस टेंडर को हासिल करने के लिये क्रिप्टोमेट्रिक्स ने नाजिर कारीगर नाम के एक व्यक्ति के ज़रिए एयर इंडिया के अधिकारियों को रिश्वत दी थी।
नाजिर कारीगर एक कनाडा में रह रहे एक अप्रवासी भारतीय उद्योगपति हैं। एयर इंडिया के के अधिकारियों से कारीगर की मिलीभगत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसके पास एयर इंडिया के इस टेंडर की पूरी कॉपी 28 दिसंबर 2005 को यानि सार्वजनिक होने के करीब दो महीने पहले से ही मौजूद थी। इस दौरान टेंडर की प्रक्रिया में क्रिप्टोमेट्रिक्स को आगे रखने के लिए 4 लाख 50 हजार डॉलर की रिश्वत नाजिर कारीगर के मुंबई के अकाउंट में दी गई। मामले में रिश्वत के लेन-देन के लिये भी कॉन्ट्रैक्ट किया गया था, जिसके मुताबिक 40 लाख डॉलर यानी 26 करोड़ 64 लाख रुपये की रिश्वत तत्कालीन उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल को देना थी।
साथ ही यह भी लिखा था कि जैसे-जैसे डील आगे बढ़ेगी उसी हिसाब से रिश्वत के पैसे भी पहुंचाए जाते रहेंगे। हालांकि ये डील अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पाई। हालांकि सिर्फ दस्तावेजों में नाम होने से यह स्पष्ट नहीं होता है कि वह व्यक्ति सौ फीसदी दोषी है, लेकिन इससे संदेह जरूर उत्पन्न हुआ है।’ज़ी न्यूज’ के पास इस घोटाले से जुड़े सैकड़ों कागजात हैं, जिनका गहराई से अध्ययन किया जा रहा है। ऐसे में अभी कई और अहम जानकारियां सामने आ सकती हैं। नाजिर कारीगर ने इस पूरे रिश्वतकांड में मध्यस्थ की भूमिका निभाई है। नाजिर कारीगर ने प्रफुल्ल पटेल से मुलाकात करके रिश्वत पहुंचाने का भी दावा किया है।
यह डील करीब 10 करोड़ 50 लाख डॉलर यानी करीब 698 करोड़ रुपये की थी, जिसका 30 प्रतिशत हिस्सा नाजिर कारीगर के जरिये एयर इंडिया के अधिकारियों और पीपी (प्रफुल्ल पटेल) को दिया जाना था। क्रिप्टोमेट्रिक्स ने नाजिर कारीगर के बैंक खाते में 4 लाख 50 हजार अमेरिकी डॉलर भी किए थे, जिनकी बदौलत क्रिप्टोमेट्रिक्स को टेंडर की प्रक्रिया में चुन लिया गया। नाजिर कारीगर और एयर इंडिया के बाद इस कांड में तीसरा महत्वपूर्ण किरदार क्रिप्टोमेट्रिक्स कनाडा के वाइस प्रेसिडेंट रॉबर्ट बेल का है। रॉबर्ट और कारीगर के बीच ई-मेल के जरिये काफी बातचीत हुई थी, उसी से यह पूरा खुलासा हुआ है।
एक और बड़ा नाम मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर हसन गफूर का है जो उस समय एयर इंडिया के सुरक्षा निदेशक थे। जब यह टेंडर जारी किया गया तब वासुदेवन तुलसीदास एयर इंडिया के सीएमडी और कैप्टन मैस्करैनस एयर इंडिया के डिप्टी डायरेक्टर (सुरक्षा) थे। कनाडा के ओन्टोरियो की सुपीरियर कोर्ट ऑफ जस्टिस का फैसला भी इस मामले का एक और महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जिसमें नाजिर कारीगर को एयर इंडिया के अधिकरियों को रिश्वत देने का दोषी पाया गया। फैसले में भारत के तत्कालीन उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल का भी जिक्र है, हालांकि रिश्वत उन तक पहुंची या नहीं अभी ये साफ नहीं है।
कोर्ट के फैसले में भी खुलासा हुआ है कि क्रिप्टोमेट्रिक्स ने नाजिर कारीगर के जरिये रिश्वत पहुंचाई थी, ताकि उसे फेशियल रिकग्निशन डिवाइस का टेंडर मिल सके। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि नाजिर ने क्रिप्टोमेट्रिक्स को यह डील तब ऑफर की थी, जब ऐसा कोई टेंडर बना ही नहीं था। और तो और यह भी तय नहीं था कि एयर इंडिया को इस डिवाइस की जरूरत भी है या नहीं। कोर्ट के मुताबिक नाजिर कारीगर कनाडा की कंपनी क्रिप्टोमेट्रिक्स के वाइस प्रेसिडेंट रॉबर्ट बेल के साथ डील कर रहे थे। कोर्ट के सामने ई-मेल के जरिये हुई बातचीत को सबूत के तौर पर पेश भी किया गया है।
कोर्ट में रॉबर्ट बेल द्वारा दी गई गवाही के मुताबिक जून 2005 में नाजिर कारीगर ने उनसे संपर्क किया था और कहा था कि उसकी कंपनी ने भारत में बड़े पैमाने पर बिजनेस किया है। साथ ही यह भी बताया था कि एयर इंडिया में बहुत से अधिकारी उसे जानते हैं और एयर इंडिया इस समय फेशियल डिटेक्शन डिवाइस की तलाश कर रही है और जल्दी ही इस संबंध में एक टेंडर निकालने वाली है। इसके बाद सितंबर 2005 में नाजिर कारीगर और उनके सहयोगी मेहुल शाह ने रॉबर्ट बेल से ओटावा में मुलाकात की और वहां ये डील हुई कि एयर इंडिया से जितना भी पैसा मिलेगा। क्रिप्टोमेट्रिक्स कंपनी उसका 30 प्रतिशत हिस्सा नाजिर कारीगर और उसके साथियों को दिया जाएगा।
इसके बाद 19 जनवरी 2006 को यानि टेंडर जारी होने के पहले ही एयर इंडिया के सुरक्षा निदेशक गफूर और उनके साथी कैप्टन मैस्करेनस कनाडा में क्रिप्टोमेट्रिक्स कंपनी के ऑफिस का दौरा कर चुके थे। इसके बाद नाजिर कारीगर के अनुरोध पर क्रिप्टोमेट्रिक्स ने क्रिप्टोमेट्रिक्स इंडिया के नाम से एक कंपनी बनाई गई और उसका एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर नाजिर कारीगर को बनाया गया, ताकि एयर इंडिया के अधिकारियों को शेयर के रूप में रिश्वत दी जा सके। इसके बाद 16 अप्रैल 2006 को मुंबई में हुई एक मीटिंग में रॉबर्ट बेल और नाजिर कारीगर ने ये तय किया था कि एयर इंडिया के कौन-कौन से अधिकारियों को कितने शेयर दिए जाएंगे।
पूरे मामले में एक और अहम जानकारी यह है कि 21 जून 2006 को नाजिर कारीगर ने क्रिप्टोमेट्रिक्स को एक ई-मेल लिखा था जिसमें कहा गया था कि कैप्टन मैस्करेनस और एमएमडी (मटेरियल्स मैनेजमेंट डिपार्टमेंट) पैसा देखना चाहते हैं और अगले ही दिन उन्हें पैसों की जरूरत है। उसी दिन दो लाख डॉलर नाजिर कारीगर के मुंबई के अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए गये। हालांकि फैसले में यह भी लिखा है कि इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि रिश्वत का पैसा नाजिर कारीगर के अकाउंट से एयर इंडिया के अधिकारियों तक पहुंचा या नहीं। 3 अगस्त 2006 तक क्रिप्टोमेट्रिक्स प्लान के मुताबिक शॉर्टलिस्ट हो चुकी थी। इसके बाद कारीगर ने क्रिप्टोमेट्रिक्स को एक ई-मेल लिखा, जिसमें उसने कहा कि सीएमडी (चेयरमेन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर ऑफ एयर इंडिया) न्यू यॉर्क में हैं और उन्हें 5 हजार डॉलर चाहिए, उन्होंने ये भी कहा कि सीएमडी और कैप्टन शेयर के लिये दबाव बना रहे हैं।
12 सितंबर 2006 के टेंडर कमिटी के नोट से यह खुलासा हुआ कि 20 कंपनियों में से सिर्फ दो कंपनियां ही शॉर्टलिस्ट की गईं हैं। ये दो कंपनियां आईपीसीओएन (कनाडा) और क्रिप्टोमेट्रिक्स (कनाडा) शामिल थीं। उल्लेखनीय है कि आईपीसीओएन भी नाजिर कारीगर की ही कंपनी थी। नाजिर कारीगर की इस कंपनी ने फर्जी तरीके से टेंडर के लिए आवेदन किया ताकि बोली लगाने वालों में क्रिप्टोमेट्रिक्स ही एकमात्र कंपनी ना रह जाए। कनाडा की आईपीसीओएन कंपनी ने पहले टेंडर के लिए 16.95 यूएस डॉलर प्रति यात्री के लिहाज से रेट तय किया था, जबकि क्रिप्टोमेट्रिक्स ने इसी के लिये 14 यूएस डॉलर प्रति यात्री के हिसाब से रेट तय किया।
इसी तरह दूसरे टेंडर के लिये आईपीसीओएन ने 21 यूएस डॉलर प्रति यात्री के हिसाब से रेट तय किया जबकि क्रिप्टोमेट्रिक्स कनाडा ने सिर्फ 2.10 यूएस डॉलर प्रति यात्री के हिसाब से रेट तय किया। आईपीसीओएन के दाम जानबूझकर क्रिप्टोमेट्रिक्स की तुलना में ज्यादा रखे गये, ताकि टेंडर क्रिप्टोमेट्रिक्स को मिल सके। एयर इंडिया के टेंडर कमिटी नोट में लिखा है कि टेंडर क्रिप्टोमेट्रिक्स कनाडा को दिया जाना चाहिये, क्योंकि उन्होंने कम दाम तय किया है। इस पूरे मामले में क्रिप्टोमेट्रिक्स कनाडा को टेंडर दिये जाने का विरोध भी हुआ था। ज़ी न्यूज के पास एयर इंडिया की चीफ विजिलेंस ऑफिसर मंजरी कक्कड़ की लिखी हुई चिट्ठी है।
जिसमें साफतौर पर क्रिप्टोमेट्रिक्स को टेंडर दिये जाने पर सवाल उठाए गए हैं और ये कहा गया है कि उन्हें यह टेंडर दिया ही नहीं जाना चाहिए था। इसमें लिखा गया है कि भारत सरकार की कंपनी ईसीआईएल (इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) टेंडर की बर्खास्तगी और एक्जिट क्लॉज की जरूरतें पूरी ना होने की वजह से बाहर कर दिया गया। जबकि क्रिप्टोमेट्रिक्स ने 30 अगस्त 2006 को एयर इंडिया के सीएमडी को लिखे खत में साफ तौर पर बर्खास्तगी और एग्जिट क्लॉज को मानने से इनकार कर दिया था। लेकिन इसके बावजूद क्रिप्टोमेट्रिक्स की बोली स्वीकार कर ली गई यानि रिश्वत की वजह से भारत सरकार की कंपनी के बजाय क्रिप्टोमैट्रिक्स को टेंडर के लिये शॉर्टलिस्ट कर दिया गया।
कनाडा की अदालत के इस फैसले में सबसे बड़ा नाम पूर्व उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल का है। फैसले के पेज नंबर 8 में लिखा है कि 20 अप्रैल 2007 को नाजिर कारीगर ने एक ई-मेल भेजा था जिसमें उसने लिखा था कि उसकी पीपी से मुलाकात हुई है। नाजिर कारीगर ने अपने इस ई-मेल में ये भी लिखा था कि इस डील को लेकर उसकी प्रफुल्ल पटेल के साथ चर्चा हुई है और इस प्रोजेक्ट को तुरंत ही मंजूर कर दिया जाएगा। कोर्ट के फैसले के अनुसार यही बात नाजिर कारीगर ने 15 मई 2007 को मुंबई में कनाडा के महावाणिज्य दूतावास के सामने कही। कारीगर ने यह भी कहा कि क्रिप्टोमेट्रिक्स ने एक एजेंट के जरिये प्रफुल्ल पटेल को रिश्वत दी है।
ताकि उसे एयर इंडिया का कॉन्ट्रैक्ट मिल सके। इसका मतलब क्रिप्टोमेट्रिक्स ने नाजिर कारीगर पर इस बात का दबाव बनाया हुआ था कि वह या तो डील को जल्द से जल्द हस्ताक्षर करवाए या पैसे वापस कर दे। इस समय क्रिप्टोमेट्रिक्स ने पैसा दांव पर लगा दिया था और उसके हाथ में कुछ नहीं था। ऐसे में क्रिप्टोमेट्रिक्स ने नाजिर को छोड़कर किसी दूसरे मध्यस्थ की तलाश भी शुरू कर दी थी।इसके बाद क्रिप्टोमेट्रिक्स ने इमर्जिंग मीडिया ग्रुप यानी ईएमजी के सीईओ शैलेश गोविंदिया से संपर्क किया और उनके जरिये इस डील को फिक्स करने की कोशिश की। शैलेश गोविंदिया ने इसके लिए बाकायदा प्लान बनाया, जो अपने आप में प्रफुल्ल पटेल पर बहुत बड़े सवाल खड़े कर रहा है।
इस पूरे मामले पर ज़ी न्यूज को भेजी लिखित सफाई में प्रफुल्ल पटेल ने आरोपों को पूरी तरह से बकवास बताया और तर्क दिया कि यह डील कभी हुई ही नहीं थी। यहां तक कि टेंडर भी खत्म कर दिया गया था। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे टेंडर एयर इंडिया ही देखती है, इनकी फाइल मंत्रालय नहीं आती है। उनके मुताबिक कुछ वर्ष पहले नाजिर कारीगर गिरफ्तार हुए थे और यह खबर आई थी, तो उन्होंने खुद प्रधानमंत्री से इस मामले में सीबीआई जैसी किसी एजेंसी से जांच करवाने की मांग की थी। प्रफुल्ल पटेल के मुताबिक प्रधानमंत्री ने वापस उन्हें खत लिखा और कहा कि वो इस मामले में प्रफुल्ल पटेल की भूमिका को लेकर पूरी तरह संतुष्ट हैं और ऐसे टेंडर का उनके मंत्रालय से कोई लेना-देना नहीं है।
प्रफुल्ल पटेल के मुताबिक नाजिर कारीगर ने उनके और कुछ दूसरे लोगों के नाम का गलत इस्तेमाल किया। ताकि वो अपनी कंपनी से धोखाधड़ी कर सके। प्रफुल्ल पटेल ने अदालत के फैसले का हवाला दिया है और कहा है कि इस मामले में उनकी भूमिका साबित नहीं होती है। प्रफुल्ल पटेल अपनी सफाई में कह रहे हैं कि ऐसे किसी फैसले में उनका या उनके मंत्रालय का कोई हस्तक्षेप नहीं रहता है। लेकिन इन दस्तावेजों में एक और चिट्ठी है जो इंडियन एयरलाइंस के तत्कालीन सीएमडी और एयर इंडिया के बोर्ड मेंबर सुनील अरोड़ा ने जून 2005 में कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी को लिखी थी। इसके मुताबिक एयर इंडिया की बोर्ड मीटिंग मजाक बन गई है।
मुख्य मुद्दों पर नागरिक उड्डयन मंत्री या उनके ओएसडी केएन चौबे खुद फोन पर या निजी तौर पर निर्देश देते हैं और किसी भी मुद्दे पर सुझाव नहीं लिए जाते हैं। मामले में एयर इंडिया के तत्कालीन सीएमडी वासुदेवन तुलसीदास का भी नाम है। उन्होंने भी ज़ी न्यूज को लिखित सफाई दी है, जिसके मुताबिक उन्होंने इस बायोमीट्रिक आईडेंटिफिकेशन सिस्टम का विरोध किया था। तुलसीदास के मुताबिक उन्होंने नाजिर कारीगर या किसी भी व्यक्ति से न्यूयॉर्क में या कहीं किसी दूसरी जगह पर कोई पैसा नहीं लिया है। तुलसीदास का यह भी कहना है कि उन्होंने शेयर हासिल करने के लिए किसी के भी ऊपर दबाव नहीं बनाया।
प्रफुल्ल पटेल ने इस मामले में अपनी किसी भी तरह की भूमिका से इनकार किया है। लेकिन क्या उन्होंने इस मामले की जांच करवाई। ये मामला उनके कार्यकाल में सामने आया था। लेकिन उन्होंने इसे लेकर अपने स्तर पर कोई जांच क्यों नहीं करवाई? प्रफुल्ल पटेल ने प्रधानमंत्री को लिखे खत में यह दलील दी कि ये डील शुरुआती स्तर पर ही खत्म कर दी गई थी, लेकिन दस्तावेज बताते हैं कि टेंडर की प्रक्रिया में कंपनी का चुनाव कर लिया गया था। सवाल यह है कि क्या प्रफुल्ल पटेल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सामने सही तथ्य रखे थे? इस मामले में दो मध्यस्थों का जिक्र है और दोनों ही प्रफुल्ल पटेल का नाम लेकर रिश्वत मांग रहे थे। क्या ये सिर्फ एक इत्तेफाक हो सकता है? प्रफुल्ल पटेल के अलावा एयर इंडिया के कई अधिकारियों का नाम भी इस मामले में सामने आया।