रोटोमैक कम्पनी के मालिक विक्रम कोठारी एक विवाह समारोह में शामिल होने कानपुर कैंट पहुंचे थे, तो समारोह स्थल के बाहर मीडियाकर्मियों ने उनसे पांच हजार करोड़ के ऋण हासिल करने से सम्बन्धित सवाल करने चाहे, लेकिन कोठारी बिना रुके आगे बढ़ते गए. उन्होने एक हाथ से न्यूज चैनलों के माइक हटाए और दूसरे हाथ से मोबाईल फोन कान से लगाकर मीडिया को नजरअंदाज करने की कोशिश की.
इसके बाद वे गाड़ी में बैठकर वहां से निकल गए. उन्होने भले ही अपनी कार पर काले शीश चढ़ा रखे हों और इन शीशों के पीछे उन्होंने अपना चेहरा छिपा लिया हो, लेकिन मीडिया में सुर्खी बने उनके पांच हजार करोड़ का एनपीए उनका पीछा छोड़ने वाला नहीं था.कोठारी ने 30 सेकेण्ड का अपना बयान रिकॉर्ड कराकर जारी कर दिया है.
इस वीडियो में वे मीडिया रिपोर्टों को गलत साबित करते हुए कह रहे हैं कि उनके बैंक लोन का मामला एनसीएलटी के समक्ष विचाराधीन है और वे देश छोड़कर कहीं नहीं जा रहे हैं. आखिर में ये बोलते भी सुनाई पड़ रहे हैं कि उनका भारत महान है.कोठारी रोटोमैक पेन कंपनी के प्रवर्तक हैं.
सूत्रों के मुताबिक कोठारी पर इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ इंडिया और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया समेत कई सार्वजनिक बैंकों को नुकसान पहुंचाने का आरोप है. कानपुर के कारोबारी कोठारी ने पांच सार्वजनिक बैंकों से 800 करोड़ रुपए से अधिक का ऋण लिया था.
सूत्रों के अनुसार कोठारी को ऋण देने में इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन ओवरसीज बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने नियमों के पालन में ढिलाई की. स्थानीय मीडिया की रपटों के अनुसार कंपनी के प्रवर्तक ने उनके विदेश भाग जाने की आशंकाओं को आधारहीन करार दिया है.
कोठारी ने कहा मैं कानपुर का वासी हूं और मैं शहर में ही रहूंगा. हालांकि कारोबारी काम की वजह से मुझे विदेश यात्राएं भी करनी होती हैं.कोठारी ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया से 485 करोड़ रुपए और इलाहाबाद बैंक से 352 करोड़ रुपए का ऋण लिया था. उन्होंने ऋण लेने के साल बाद कथित तौर पर ना तो मूलधन चुकाया और ना ही उस पर बना ब्याज.
पिछले साल ऋण देने वाले बैंकों में शामिल बैंक ऑफ बड़ौदा ने रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड को जानबूझकर ऋणचूक करने वाला (विलफुल डिफॉल्टर) घोषित किया था.इस सूची से नाम हटवाने के लिए कंपनी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की शरण ली थी.
जहां मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.बी.भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने कंपनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे सूची से बाहर करने का आदेश दिया था.न्यायालय ने कहा था कि ऋण चूक की तारीख के बाद कंपनी ने बैंक को 300 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति की पेशकश की थी, बैंक को गलत तरीके से सूची में डाला गया है.
बाद में रिजर्व बैंक द्वारा तय प्रक्रिया के अनुसार एक प्राधिकृत समिति ने 27 फरवरी 2017 को पारित आदेश में कंपनी को जानबूझ कर ऋण नहीं चुकाने वाला घोषित कर दिया. यह जानकारी ऐसे समय सामने आयी है जब महज एक सप्ताह पहले पंजाब नेशनल बैंक में करीब 11,400 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी खुलासा हुआ है.