केजरीवाल सरकार को तगड़ा झटका लगा है, क्योंकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उस संशोधन विधेयक पर अपनी मंजूरी देने से इनकार कर दिया, जिसके तहत दिल्ली सरकार के 21 संसदीय सचिवों के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर करने का प्रावधान किया था. उधर निर्वाचन आयोग भी इस माह के आखिर तक इस मामले में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजने वाला है. ऐसी स्थिति में अब आम आदमी पार्टी के उन 21 विधायकों की सदस्यता खतरे में पड़ गई है, जिन्हें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने मंत्रियों का संसदीय सचिव बनाया था.
गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा सदस्यता अधिनियम में सरकार के नौ पदों को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखा गया है.
इनमें मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव का पद भी शामिल है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता संभालने के एक माह बाद ही अपने 21 विधायकों को मंत्रियों का संसदीय सचिव बना दिया था, तभी से भाजपा और कांग्रेस इसे मुद्दा बना हुए थे. इसी बीच दिल्ली सरकार ने दिसम्बर 2015 में विधानसभा में दिल्ली विधानसभा सदस्यता अधिनियम में संशोधन का विधेयक पारित किया और उसे मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के पास भेज दिया.
उपराज्यपाल ने विधानसभा से पारित संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज दिया. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस संशोधन विधेयक को अपनी मंजूरी देने से इनकार कर दिया. इसकी पुष्टि आज राजनिवास ने भी कर दी है. राजनिवास का कहना है कि उसने राष्ट्रपति के यहां से आई फाइल को दिल्ली सरकार के विधि सचिव के पास भेज दिया है. उधर इन 21 संसदीय सचिवों के खिलाफ निर्वाचन आयोग में भी याचिका दायर की गई थी,
इसकी सुनवाई के दौरान आयोग ने संसदीय सचिवों को नोटिस भी जारी कर दिया था. सूत्रों के मुताबिक निर्वाचन आयोग इस माह तक अपना फैसला कर राष्ट्रपति को भेज देगा. इस मामले में अंतिम फैसला निर्वाचन आयोग को ही लेना है. उधर दिल्ली सरकार का कहना है कि उसे अभी औपचारिक रूप से इसकी जानकारी नहीं है, जब फाइल आ जाएगी, उसके बाद ही कोई टिप्पणी की जा सकती है.