Empty your cup – Purify Our Mind प्याला तभी काम में लिया जा सकता है जब वह खाली हो।
हम में से अधिकांश लोगों के मन बहुत सारी बातों से भरे पड़े हैं- सुखद और दुखद अनुभवों से, ज्ञान से, व्यवहार के नियमों और रीति-रिवाजों से और इसी प्रकार की अन्य चीजों से। हमारा मन कभी खाली नहीं रहता। जबकि सृजन उसी मन में हो सकता है जो पूरी तरह से खाली हो।
शायद आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया हो कि जब आप कोई चीज कहीं रखकर भूल जाएं या किसी बात को याद करने की कोशिश करें तो वह लाख कोशिश करने पर भी याद नहीं आती, जुबान पर नहीं आती। लेकिन जब आप कभी किसी और काम में मग्न हों या फुर्सत से बैठे हों तो वह चीज अनायास ही याद आ जाती है।
जब आप किसी समस्या का सामना कर रहे हों चाहे वह गणितीय समस्या हो या मनोवैज्ञानिक, तब कभी कभी ऐसा होता है कि आप उस समस्या के बारे में खूब सोचते हैं, उस विषय पर जुगाली किये चले जाते हैं, परन्तु आपको उस समस्या का निदान नहीं मिल पाता। थक-हार का आप उसे छोड़ देते हैं, उससे हट जाते हैं, टहलने निकल जाते हैं और तब उस खालीपन में, फुर्सत में, उस समस्या का हल निकल आता है।
तो यह कैसे होता है? आपका मन उस समस्या को लेकर अपनी सीमा में बहुत अधिक क्रियारत या सक्रिय या गतिशील हो जाता है लेकिन उसे समस्या का समाधान नहीं मिलता तो आप उस समस्या को उठाकर एक ओर रख देते हैं। इससे आपका मन काफी हद तक शांत हो गया, काफी हद तक खाली हो गया। और तब, उस मौन में, उस खालीपन में समस्या का समाधान संभव हो पाया।
इसी प्रकार जब कोई पल पल अपने भीतरी परिवेश के प्रति, भीतरी क्रियाओं प्रतिक्रियाओं के प्रति, भीतरी स्मृतियों के प्रति, गहन मानसिक गतिविधियों के प्रति और व्यग्रताओं के प्रति जब मृतप्राय हो पाता है, उन्हें उठाकर एक ओर रख देता है। तब उसमें एक रिक्तता या खालीपन आ जाता है, इस खालीपन में ही कुछ नवीन सहज घटित हो सकता है।