इतिहास को बनते देखा है रामलीला मैदान ने । शायद इसकी नियति ही कुछ ऐसी है । अन्ना के आन्दोलन से पहले भी इस मैदान ने काफी कुछ देखा है । सरकार ने अन्ना को जयप्रकाश नारायण पार्क नही दिया , शायद सरकार को डर था कि कही अन्ना को जयप्रकाश नारायण की छवि ना मिल जाय , लेकिन आज से 36 साल पहले लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने भी अपनी रैली की हुंकार इसी मैदान से भरी थी। यह मैदान इससे पहले भी कई महापुरुषो के क्रांति की गवाही देता है । जिसमें महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरु , सरदार बल्लम भाई पटेल, मोहम्मद अली जिन्ना सरीखे लोगो की पहली पसंद रहा है । वैसे यह मैदान सबसे पहली बार ब्रिटिश कॉल में 1882-1883 में सैनिक शिविर लगाने के मकसद से इस्तेमाल किया गया था । उसके बाद 1932 में इसमें सबसे पहली बार रामलीला का आयोजन किया गया । तब से ये राम लीला के मैदान के रुप में मशहूर हुआ।
ऐसा नहीं कि ये मैदान सिर्फ राम लीला के लिये ही मशहूर है । बल्कि यहां पर आजादी के बाद से कई महान रैली कै आयोजन भी हुआ।
इक नज़र आजादी के बाद से अब तक
1987-राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की रैली उस वक्त सरसंघसरचालक गुरु गोवलकर ने सम्बोधिक किया था।
1952- जनसंघ के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर के आंदोलन को सम्बोधित किया जिसमें दिल्ली से लेकर कश्मीर तक काफी उथल पुथल हुई
1961-ब्रिट्रेन की महारानी ऐलिजाबेथ और ड्यूक ऑफ इनडेनबर्ग का इसी मैदान से सम्बोधन
26 जनवरी 1963 – सुर सम्राग्री लता मंगेशकर ने पं0 नेहरु की मौजूदगी में गाया । ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंख में भर पानी , और नेहरू की ऑखो में पानी था
1965- में भारत- पाक युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिया जय जवान जय किसान का नारा इसी मैदान से ।
1972- बांग्लादेश जीत के बाद इंदिरा गांधी ने यही से की विजय रैली
25 जून 1975- इमरजेंसी की शुरुवात से ठीक पहले जयप्रकाश नारायण का इंदिरा गांधी के खिलाफ सैनिक विद्रोह का आह्नान
1977- इंदिरा के खिलाफ जनता पार्टी की रैली , मोरार जी देसाई , बाबू जगजीवन राम , चौधरी चरण सिंह , अटल बिहारी बाजपेयी एक मंच पर।
1991-92- भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में चले राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी गतिविधियो का गवाह
जून 2011- स्वामी रामदेव का कालेधन के खिलाफ अनशन
अगस्त 2011- अन्ना हजारे का जनलोकपाल विधेयक के लिये अनशन
ये अब तक की रामलीला मैदान की नियति रही है । यानि की रामलीला मैंदान में सिर्फ बुराइयो का प्रतीक रावण ही नहीं जलाया जाता । समय समय पर कई और रावणो का दहन हुआ है । जो देश को दीमक की तरह चाटने में लगे पड़े थें । आने वाले कल में अन्ना के आंदोलन का भी इतिहास कुछ इसी तरह से गवाही देगा । उन सारी जगहों का जहां से अन्ना ने अपनी आवाज बुलंद की हैं । इसके प्रतीक के रुप में ना सिर्फ राम लीला मैदान होगा, बल्कि छत्रसाल स्टेडियम , इंडिया गेट, और तिहाल जेल भी इसकी याद दिलायेगा ।
सर्वेश मिश्रा
टी.वी. रिपोर्टर