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why tulsi is not offered to lord ganesha । गणेश पूजा में नहीं प्रयोग करते तुलसी के पत्ते जानें

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why tulsi is not offered to lord ganesha : हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा की प्रधानता है, इतना ही नहीं ईश्वर की आराधना करने से जुड़े भी कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं जिनका पालन करना अत्यंत आवश्यक माना गया है। हिन्दू धर्म प्रकृति से काफी नजदीकी रखता है, शायद इसलिए पुष्प, पल्लव, जल आदि का पूजा पद्धति में काफी महत्व है।सनातन परंपरा में ऐसे बहुत से मानदंड हैं जिनका पालन करना अनिवार्य है, इनमें पूजा के दौरान प्रयोग की जाने वाली वस्तुएं और पूजा का समय मुख्य तौर पर शामिल हैं।

हिन्दू मान्यताओं में 33 करोड़ देवी-देवताओं का जिक्र है, जिनकी आराधना करने का विधान भी दूसरे से काफी हद तक अलग है। ऐसा माना जाता है देवी-देवताओं को विशिष्ट वस्तुओं का चढ़ावा बहुत भाता है, वहीं बहुत कुछ ऐसा भी है जो उनकी पूजा के दौरान उपयोग नहीं किया जाता।एक बार किशोर गणेश जी तप में लीन थे, उनके आकर्षक स्वरूप को देखकर तुलसी उन पर मोहित हो गईं और उनसे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। गणेश जी ने यह कहकर तुलसी के विवाह प्रस्ताव को नकार दिया कि वे ब्रह्मचारी हैं।

इस पर तुलसी क्रोधित हो गईं और उन्होंने गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे। गणेश जी ने भी तुलसी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा।असुर के साथ अपने विवाह की बात सुनकर तुलसी ने गणेश जी से माफी मांगी, गणेश जी ने कहा कि वे श्राप तो वापस नहीं ले सकते इसलिए तुलसी का विवाह शंखचूड़ नामक राक्षस से होगा लेकिन इसके बावजूद वे श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु की प्रिय होंगी और कलयुग में मोक्ष प्राप्त करने का माध्यम बनेंगी।

श्राप देने और श्राप से बचने का मार्ग दिखाते हुए श्रीगणेश ने कहा “लेकिन मेरी पूजा में कभी भी तुलसी के पत्तों का प्रयोग नहीं किया जाएगा”।गणेश जी को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती और इसके पीछे का कारण हम आपको बता चुके हैं, अब जानते हैं शिवलिंग पर कलश के द्वारा तो जल चढ़ाया जाता है लेकिन शंख से जल चढ़ाना क्यों वर्जित है।आपने देखा होगा अन्य सभी देवी-देवताओं पर शंख से जल चढ़ाना शुभ माना जाता है लेकिन भगवान शिव पर कभी शंख से जल ना चढ़ाए जाने के पीछे का कारण शिवपुराण में दर्ज है।

शिवपुराण के अनुसार शंखचूड़ नाम का एक महापराक्रमी असुर, दैत्यराज दंभ का पुत्र था। दंभ ने विष्णु की आराधना कर ऐसे पुत्र का वरदान मांगा था जो तीनों लोकों पर विजय स्थापित करे, जिसे कोई ना हरा पाए।शंखचूड़ भी जब बड़ा हुआ तब उसने पुष्कर में रहकर ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उनसे अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया। ब्रह्मा जी ने उन्हें कृष्ण कवच देकर तुलसी से विवाह करने की भी आज्ञा प्रदान की।

ब्रह्माजी की आज्ञा पाकर शंखचूड़ ने तुलसी से विवाह संपन्न कर लिया। ब्रह्मा और विष्णु, दोनों के ही वरदान से शंखचूड़ महापराक्रमी और अजेय हो गया था। तीनों लोक पर असुर शंखचूड़ का राज था, स्वयं विष्णु भी शंखचूड़ को नियंत्रित नहीं कर पा रहे थे।, वे स्वयं देवताओं की मदद कर पाने में अक्षम पड़ने लगे थे।

सभी देवता त्राहिमाम करते हुए भगवान शिव के पास पहुंचे। भोलेनाथ जानते थे कि जब तक तुलसी का पतिव्रत धर्म और श्रीकृष्ण कवच शंखचूड़ के पास है, तब तक उसका बाल भी बांका नहीं किया जा सकता। इसलिए भगवान शिव सबसे पहले ब्राह्मण का रूप धरकर शंखचूड़ के पास गए और उससे दान में श्रीकृष्ण कवच ले लिया। इसके बाद स्वयं महादेव ने शंखचूड़ का रूप धरकर तुलसी के शील का हरण किया।

इससे तुलसी का पतिव्रत धर्म भी टूट गया और श्रीकृष्ण कवच भी छिन गया। इसी दौरान भगवान शिव ने शंखचूड़ को भस्म कर दिया और उसकी हड्डियों से शंख का निर्माण हुआ।शंखचूड़, विष्णु का परम भक्त था इसलिए विष्णुजी और माता लक्ष्मी को शंख का जल प्रिय है। लेकिन शिव जी ने शंखचूड़ का वध किया था इसलिए शिवलिंग या शिव की मूर्ति पर कभी शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता।

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