Shahi snan at Maha Kumbh । साधु-संत शाही स्नान के लिए क्यों करते हैं खूनी संघर्ष जाने

Kumbhamela

Shahi snan at Maha Kumbh : हमारे भारत की बहुतेरी व्यवस्थायें धर्मों पर आधारित हैं. आपको अपने आस-पास अनेकों साधु तन पर केसरिया रंग का कपड़ा लपेटे दिख जायेंगे.साधुओं के बारे में आप केवल इतना ही जानते हैं कि वो संसार की मोह-माया से दूर, तामसिक भोजन से परहेज, धन-दौलत के लिए वैराग्य भाव और घुमक्कड़ प्रवृत्ति के होते हैं.

लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि शाही स्नान के लिए साधु ख़ूनी भिड़ंत को अंजाम देने से भी परहेज नहीं करते. कुंभ के मेले के दौरान शाही स्नान का बहुत महत्त्व होता है. यहां एक बात गौर करने लायक है कि जिन साधुओं को आप शांत और धैर्यवान समझते हैं, वो इस शाही स्नान के दौरान किसी भी तरह की सीमा लांघ सकते हैं.

शाही स्नान के दौरान होने वाले ख़ूनी संघर्षों का अपना ही एक इतिहास रहा है. वर्ष 1310 में महाकुंभ के दौरान महानिर्वाणी अखाड़े और रामानंद वैष्णवों अखाड़े के बीच ख़ूनी वारदात घटित हुई थी और इसके अलावा 1398 में अर्धकुंभ में तैमूर लंग के आक्रमण से कई लोग जान गवां चुके हैं.

1760 में शैव सन्यासियों और वैष्णवों के बीच भी ख़ूनी दंगल हुआ जिसमें कई साधुओं की जानें गई. अब प्रश्न तो ये उठता है कि आखिर क्यों करते हैं साधु शाही स्नान के दौरान लड़ाई? क्यों सारा वैराग्य केवल व्यक्तिगत या संस्थागत हो कर रह जाता है?

कुंभ के मेले के दौरान शाही स्नान किया जाता है और ये केवल साधु-संत ही करते हैं. इसमें कई अखाड़े जिनसे साधु जुड़े होते हैं वो भी भाग लेते हैं. फ़िलहाल 13 अखाड़ों को शाही स्नान करवाने की योग्यता हासिल है.

कई साधुओं का कहना है कि शाही स्नान एक उपलब्धि है, एक मान है, सम्मान है, जो साधु को प्रकृति द्वारा प्राप्त होता है. इसके अलावा एक मान्यता ये भी है कि मध्यकाल में मुस्लिम शासकों के अत्याचार से निपटने के लिए नागाओं की फौज खड़ी हुई थी जिन्होंने अपनी सारी सुख-सुविधाएं त्याग कर धर्म की स्थापना के लिए बिगुल बजाया.

इस फौज ने कई दिग्गजों को परास्त कर एक धार्मिक और सशक्त मार्ग प्रशस्त किया. इसके दौरान ही राजाओं को भी इनसे खतरा महसूस होने लगा.इनका साहस देखते हुए पृथ्वीराज चौहान ने धार्मिक झंडे और राष्ट्र ध्वज दोनों को अलग-अलग कर दिया. साथ में इनके कार्यों और दायित्वों को भी परिभाषित किया.

इसी के साथ राजा ने अपने एक दिन की संपदा संतों के हवाले कर उन्हें आदर दिया. इसी आदर और वैभव को शाही स्नान का नाम दिया गया है. और शाही स्नान के दौरान उस वैभव का अहसास साधु आज भी करता है.अब अखाड़े एक तरह से साधुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. फ़िलहाल तो अखाड़े काफ़ी सहज हो चुके हैं, लेकिन निर्मल अखाड़े को स्नान के लिए सबसे ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है जिसके चलते ऐसी घटनाएं होती रहती हैं.

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