वैदिक परंपरा और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार का पुत्र पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है जब वह अपने जीवित माता – पिता की सेवा करे और उनके मरने के बाद उनकी बरसी पर तथा पितृपक्ष पर उनका विधिवत श्राध्द करे. अश्विन महीने के अमावस्या तक को महालया पक्ष या पितृपक्ष कहा जाता है. 12 जो सितम्बर 27 से सितम्बर तक चलेगा, जिसमे लोग पितरों को पिंडदान कर के पुरखो को मोक्ष प्राप्ति की कामना के साथ उनका आशीर्वाद प्राप्त कर रहे है.
वैसे तो पिंडदान देश में कई जगहों पर किया जाता है, लेकिन प्रयाग सभी पिंडदान का खास महत्त्व है धर्म शास्त्रियों के अनुसार राजा भागीरथ 60 अपने हजार पुरखो को तारने के लिए स्वर्ग से धरती पर गंगा लेकर आये और गंगा जल तिलांजलि कर उनके मोक्ष का मार्ग प्रशस्त किया. तब से लेकर आज तक पितरों की मुक्ति के लिए गंगा तट पर पिंड दान तर्पण की परम्परा चली आ रही है. पुरखो की तिथि पर विशेष अनुष्ठान दानकर संतान उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है. पक्ष पित्र 15 सभी दिनों के लिए त्रिवेणी तट पर श्राद्ध के लिए देश भर सभी लोग आये है. जो पिंड दान कर पुरखो को मोक्ष प्राप्ति की कामना के साथ उनका आशीर्वाद प्राप्त कर रहे है.
त्रिवेणी तट पर पिंडदान बिना मोक्ष नहींसंगम में पिंड दान का विशेष महत्त्व है. वर्षो से लोग अपने पुरखो को मोक्ष दिलाने के लिए तीर्थराज आते है. तीर्थराज प्रयाग भगवन विष्णु का मुख काशी, उनकी नाभि और जोड़ा गया उनकी, चरण है.यही वजह है की शाहजहाँ तक ने अपनी माँ का श्राध्द कर्म तट पर आकर किया. जिसके दस्तावेज आज भी सहेज कर रखे गए है. राकेश पांडे का कहना है की छ्त्रपति शिवाजी ने दारागंज के एक पंडा परिवार के यहां रुक कर पितरो को तिजांजलि दी, लेकिन इस बात का लिखित प्रमाण नही मिल पाया है.
दक्षिण दिशा की ओर पिंडदान
पक्ष पित्र में पुरखे संतति के दरवाजे तक आते है. जहां पर उनका पूजा अर्चना होती है. वह सुख सौभाग्य की बारिश होती है. जब की पूजा न होने से पिटर नाराज होकर शाप दे देते है. जिससे मुक्ति का उपाय नहीं है. दक्षिण दिशा की ओर मुह कर के पितरो को याद करके दान देने से कुंडली दोष पित्र का निवारण हो जाता है. श्राध्द में गोदान चंडी लवण आदि वस्तुओ का दान किया जाता है.
अश्विन माह में श्राध्द क्यों?
अक्सर लोगो के मन में यह सवाल उठता है की अश्विन मॉस के कृषण पक्ष को ही श्राध्द कर्म के लिए क्यों उपयुक्त माना गया है?दरअसल शास्त्रों में इसे विज्ञानं सम्मत भी माना गया है. श्राध्द 5 के भेदों सभी पावर्णश्राध्द भी है. इसलिए अमावस्या का श्राध्द पितरो के दैनिक भोजन के समान है. परन्तु अश्विन का पक्ष पित्र हमारे विशिष्ट सामाजिक उत्सवो की भांति हमारे पितरो का सामूहिक महापर्व है भगवान विष्णु कहते है की तिल मेरे पसीने से उत्पन हुए है. इसलिए तर्पण, दान होम और सभी दिया जोड़ा गया तिल का दान अक्षय होता है. बताया जाता है की एक तिल का दान स्वर्ण 32 के सेर तिल के बराबर होता है. कुश के मूल में ब्रह्मा मध्य में विष्णु और शनि का वास होता है | इसलिए धार्मिक कार्यो के लिए यह माना जाता है गंगा नदी में स्नान और तर्पण करने से पितरो को देव योनि मिल जाती है.
प्रयाग में पिंड दान करने से सात पीढ़ी के पितरो को मुक्ति मिल जाती है. धर्म के शास्त्र अनुसार प्रयाग 54 की विधियों सभी विष्णु पद प्रथम है. जिसके दर्शन से मात्र पितरो को नरायण रूप प्राप्त होता है पित्र 10 सभी वस्तुओ का दान करने का महत्व मना जाता है. जैसे गो दान, भूमिदान, तिलदान, स्वर्णदान धृतदा, गुडदान, रजतदान, लवणदान. इन वस्तुओ के दान करने से पितरो की आत्मा को शांति मिलाती है |