लिव इन रिलेशनशिप एक प्राचीन भारतीय परंपरा

लिव इन रिलेशनशिप पर हमेशा से बहस चलती रही है। आधुनिक समाज में प्रेमी-प्रेमिका के शादी से पहले एक साथ एक छत के नीचे रहने की बात अब आसानी से स्‍वीकार की जाने लगी है, लेकिन इस पर यह आरोप लगता रहा है कि यह पश्चिमी देशों और संस्‍कृति की नकल है। लेकिन इस देश की रीति-रिवाजों व परंपरओं पर गौर करें तो हम पाते हैं कि यहां के कुछ समाजों में भी लिव इन रिलेशनशिप का चलन रहा है और आज भी है। यह अलग बात है कि हमारे देश में यह एक सामाजिक परंपरा रही है, जिसमें परिवार और पंचायतों की मर्जी भी शामिल होती थी।

राजस्‍थान का नाता प्रथा
* राजस्‍थान का नाता प्रथा ऐसी ही एक प्रथा है, जिसमें शादी की ही तरह साथ रहने की आजादी हासिल होती है। इसमें शादी जैसे सभी रीति-रिवाज होते हैं और इनसे उत्‍पन्‍न संतान को सामाजिक मान्‍यता भी मिलती है।

* इसमें पुरुषों और महिलाओं को अपनी पंचायत की मंजूरी के बाद कभी भी अपने साथी को बदलने का अधिकार और सहूलियत प्राप्त है।

* इसके तहत एक महिला अपने पति को छोड़कर किसी दूसरे मर्द के साथ कभी भी जा सकती है। इसके लिए उसके नए पति द्वारा उसके पुराने पति को एक निश्चित रकम देनी पड़ती है।

* नाता प्रथा की वजह से विधवाओं व परित्‍यक्‍ता स्त्रियों को सामाजिक जीवन जीने का अवसर प्रदान करना था।

आज भी है कायम

आज भी राजस्थान में यह अनोखी परंपरा कायम है। नाता परंपरा के तहत कोई भी विवाहित महिला या पुरुष आसानी से तलाक लेकर और पूर्व निर्धारित राशि अदा करके दूसरी शादी कर सकता है। इसमें महिला और पुरुष दोनों को निश्चित राशि अदा करके कभी भी अपने जीवन-साथी को बदलने की आजादी है। इसके लिए उन्हें सिर्फ पंचायत को बताना होता है। पंचायत के सामने वे पहली शादी से हुए बच्चे के पालन-पोषण और अदा की जाने वाली धनराशि आदि मुद्दों पर अपनी परेशानी रखते हुए राहत की मांग कर सकते हैं। नाता परंपरा में ब्राह्मण, राजपूत और जैन को छोड़कर बाकी सभी जातियों में विशेषकर गुर्जरों में यह परंपरा लोकप्रिय है।

कलर्स टीवी की ‘बालिका वधु’ तो आपको याद होगी
कलर टीवी पर बालिका वधु में भी नाता प्रथा के तहत आनंद की सहेली फूली का विवाह उसके देवर से दिखाया गया है। फूली बचपन में ही विधवा हो गई थी, जिसके बाद उसके ससुराल वालों ने उसे निकाल दिया था, लेकिन बड़ी होने पर सही ससुराल वाले अपने छोटे बेटे के लिए फूली का हाथ मांगने उसके मायके पहुंचे थे। फूली के देवर की पत्‍नी भी उसे छोड़कर जा चुकी थी। इस तरह देखते हैं कि नाता प्रथा दो उजड़ चुके लोगों को फिर से सामाजिक रूप से जीवन जीन का अवसर प्रदान करती है।

प्रेमी-प्रेमिका के साथ जीवन जीने का बेहतर विकल्‍प
यदि किसी स्‍त्री या पुरुष का किसी से प्रेम हो, लेकिन उसकी शादी उससे न होकर किसी अन्‍य से घरवाले जबरदस्‍ती करा दें तो वह नाता प्रथा का उपयोग अपने प्रेमी या प्रेमिका के साथ रहने के लिए करता है। शादी के बाद भी यदि किसी शादीशुदा महिला या पुरुष को किसी और से प्यार हो जाए तो वह एक निश्चित रकम अदा करके अपने नए प्यार के साथ जा सकता है। झटपट शादी की सुविधा पश्चिमी राजस्थान में आज भी खूब हो रही है। यह एक शादी में जीवन भर घुट-घुट कर रहने से कहीं अच्‍छा है।

वर्तमान की एक घटना
पश्चिम राजस्‍थान के के सिहाना गांव का एक पुरुष अपनी शादी से खुश नहीं था। इसके लिए उसने नाता परंपरा के माध्यम से दूसरी शादी करने की योजना बनाई। उस आदमी ने एक दलाल को पकड़ा और अपनी विवाह की इच्छा जताई। दलाल ने एक ऐसी महिला का नाम उसे सुझाया, जिसके पति ने उसे घर से निकाल दिया था। वह महिला अपने पांच साल के बेटे के साथ अपने मां-बाप के साथ रह रही थी। उसके मां-बाप बेहद गरीब थे।

दलाल ने दूसरी शादी करने के लिए तैयार उस आदमी को उस महिला से मिला दिया। शुरुआती बातचीत के बाद उन दोनों में शादी करने की सहमति बन गई और तय शर्तो के अनुसार उस आदमी ने 80 हजार रुपये देकर पंचायत की मंजूरी के बाद शादी कर लिया। इस राशि में से उसे उस दलाल को एक तिहाई रकम देनी पड़ी और बाकी की रकम महिला के माता-पिता को महिला के बच्चे के पालन-पोषण करने के लिए दिए गए। इस प्रकार उस महिला की शादी भी हो गई और उसके बच्चे के पालन-पोषण का सहारा भी मिल गया, अन्यथा ऐसी शादियों में अमूमन बच्चे या तो अनाथ हो जाते हैं या फिर नए पिता की प्रताड़ना सहते रहते हैं।

तलाक के लिए कानूनी झंझट से मुक्ति
नाता प्रथा की वजह से महिलाओं और पुरुषों को बड़ी आसानी से तलाक मिल जाता है और उनका पुनर्विवाह भी हो जाता है। इसमें उन्‍हें अदालती झंझटों से मुक्ति मिल जाती है।

नाता प्रथा बन रहा है व्‍यापार
नाता परंपरा के तहत औरतों की अदला-बदली तेजी से उभरते हुए व्यापार का रूप ले चुकी है। अब तो यह गांवों की सीमा से बाहर निकलकर कस्‍बों तक फैल चुकी है। यहां शादी की जोड़ी मिलाने वाले दलालों की पूरी फौज खड़ी हो चुकी है। इसमें दलाल को 30 फीसदी तक का अच्छा-खासा कमीशन मिल जाता है। लेकिन इस कमीशन के चलते कई धूर्त दलाल महिलाओं को होने वाले पति से भारी भरकम रकम मांगने के लिए उकसाते हैं ताकि उनका कमीशन बढ़ जाए। इससे कई महिलाओं का जीवन आगे जाकर नरक बन जाता है।

पत्नियों को नियंत्रित करने का हथियार

अधिकांश पुरुष पत्नियों को नियंत्रण में रखने और उन्‍हें दबाने के लिए इस परंपरा की आड़ लेते हैं। बार-बार में पत्नियों को छोड़ देने और दूसरी शादी करने की धमकी दी जाती है ताकि उन पर लगाम लगाई जा सके।

नाता के आड़ में महिलाओं को बेचने व पत्नियों की अदला-बदली का काम
इस परंपरा के तहत शादीशुदा महिलाओं को जबरन बेचने की कुछ घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं। कई पुरुष पत्नियों की अदला-बदली के लिए भी इस परंपरा की आड़ ले रहे हैं और अपनी यौन पिपासा शांत कर रहे हैं। वर्तमान में पंचायतों के पास नियंत्रण की माकूल व्‍यवस्‍था नहीं होने के कारण एक अच्‍छी परंपरा कई मामलों में आज महिलाओं के शोषण का हथियार बन चुकी है।

इंडिया हल्ला बोल

 

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