Biography of Harivansh Rai Bachchan । हरिवंश राय बच्चन की जीवनी

उन्हीं दिनों की बात है, किसी महीने की सरस्वती में एक रंगीन चित्र छपा था-एक बूढ़े मुस्लिम की तस्वीर थी, चेहरे से शोक टपकता था; नीचे छपा था-उमर ख़य्याम। रुबाइयात के किस भाव को दिखाने के लिए यह चित्र बनाया गया था, इसके बारे में कुछ नहीं कह सकता, इस समय चित्र की कोई बात याद नहीं है, सिवा इसके कि एक बूढ़ा मुस्लिम बैठा है और उसके चेहरे पर शोक की छाया है।

हम दोनों भाइयों ने चित्र को साथ-ही-साथ देखा और नीचे पढ़ा उमर ख़य्याम। मेरे छोटे भाई मुझसे पूछ पड़े भाई, उमर ख़य्याम क्या है? अब मुझे भी नहीं मालूम था कि उमर ख़य्याम के क्या माने हैं। लेकिन मैं बड़ा ठहरा, मुझे अधिक जानना चाहिए। जो बात उसे नहीं मालूम है, वह मुझे मालूम है, यही दिखाकर तो मैं अपने बड़े होने की धाक उस पर जमा सकता था। मैं चूकने वाला नहीं था।मेरे गुरुजी ने यह मुझे बहुत पहले सिखा रखा था कि चुप बैठने से ग़लत जवाब देना अच्छा है।

सामान्य बोलचाल की भाषा को काव्य भाषा की गरिमा प्रदान करने का श्रेय निश्चय ही सर्वाधिक बच्चन का ही है। इसके अतिरिक्त उनकी लोकप्रियता का एक कारण उनका काव्य पाठ भी रहा है। हिन्दी में कवि सम्मेलन की परम्परा को सुदृढ़ और जनप्रिय बनाने में बच्चन का असाधारण योग है। इस माध्यम से वे अपने पाठकों-श्रोताओं के और भी निकट आ गये।

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